कबीर जन्मोत्सव समिति द्वारा 4 से 11 जून तक बनारस में एक सप्ताह तक चलने वाला यह महत्वपूर्ण आयोजन कबीर की परंपरा को याद करते हुए मुख्यतः बुनकर समाज की समस्या पर केंद्रित है।
वाराणसी (उत्तरप्रदेश)। कबीर जयंती के अवसर पर कबीर जन्मोत्सव समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘ताना-बाना कबीर का’ चल रहा है। 4 से 11 जून, 2023 तक आयोजित कार्यक्रम केपहले दिन 4 जून को कबीर के ज्न्म स्थल बनारस के नाटी इमली स्थित बुनकर बस्ती में हुआ।
इससे पूर्व कबीर जन्मोत्सव समिति द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की रूपरेखा के संदर्भ में 4 जून को दोपहर 1 बजे एक प्रेस वार्ता का आयोजन भी किया गया। प्रेस वार्ता में फादर आनन्द ने भिन्न-भिन्न स्थानों पर होने वाले कार्यक्रमों के बारे में विस्तार से बताया। इस दौरान फादर आनन्द, फजलुर्रहमान अंसारी, मनीष शर्मा और श्रेया ने बताया कि एक सप्ताह तक चलने वाला यह महत्वपूर्ण आयोजन कबीर की परंपरा को याद करते हुए मुख्यतः बुनकर समाज की समस्या पर केंद्रित होगा।

आयोजन के पहले दिन दिन 4 जून को नाटी इमली स्थित बुनकर बस्ती में कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में ‘बुनकर साझा मंच’ के फजलुर्रहमान अंसारी, ‘बुनकर उद्योग मंडल’ के जुबैर आदिल, ‘मां गंगा निषादराज सेवा समिति’ के हरिश्चंद्र बिंद और मेहनतकश पत्रिका की श्रेया रहीं। इस कार्यक्रम में सरदार भोलू हाफिज, श्री बुल्लू राजा, प्रेमलता इत्यादि शामिल रहीं।
श्री फजलुर्रहमान ने कहा कि कबीर केवल संत महात्मा ही नहीं थे, बल्कि मूलतः वे बुनकर थे। आज कबीर के नाम पर दुनिया भर में भारत की और बनारस की पहचान है, लेकिन उनकी परम्परा का वाहक बुनकर समाज आज भयावह स्थितियों में जी रहा है। उसमें पलायन बढ़ रहा है, लेकिन उन्हें बांटने के लिए हिन्दू बुनकरों का एक समुदाय खड़ा कर उन्हें बाँटने और साम्प्रदायिकता की राजनीति की जा रही है।
श्री ज़ुबैर आदिल ने कहा कि कबीर ने सदैव सद्भाव और भाईचारे की बात की। ‘ऐसी बानी बोलिये मन का आपा खोया …।’ का उदाहरण देकर उन्होंने कहा कि हमें अपने काम से जुड़कर अपने ईमान पर रहना चाहिए और सबके साथ समान व्यवहार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार बुनकरी में किसको कुशल बनाने की बात करती है? हम बुनकर के बच्चे तो पुश्तैनी एक हुनर के साथ विकसित हुए हैं।
श्री हरिश्चंद्र बिंद ने कहा कि हम मल्लाहों को नदी के जीवों की पहचान करना और नदी की गहराई नापना कोई वैज्ञानिक नहीं सिखा सकता। हम अनुभव के ज्ञान से सच्चा ज्ञान जानते हैं। ठीक उसी तरह बुनकर को धागा और कपड़े के बारे में कोई किताब नहीं सिखा सकती। सरकारें हमें तोड़कर कौन-सा स्किल सिखाएंगी।
श्रेया ने कहा सरकारें बुनकरी उद्योग को छोटा और बीमार उद्योग प्रचारित कर बड़े कॉरपोरेट घरानों को खड़ा करना चाहती है और बुनकरों को कमज़ोर करना चाहती है। सरकार बुनकरों को क्या सब्सिडी देगी। बुनकरों को जानबूझकर कमज़ोर करके उन्हें सब्सिडी का मोहताज कर सरकार कॉरपोरेट को कई एकड़ ज़मीन यूँ ही दे देती है। यह समझना होगा कि असल सब्सिडी तो कॉरपोरेट को मिल रही है। देखा जाय तो बुनकरी उद्योग सर्वाधिक स्वनिर्भर उद्योग है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं मान्या चित्रा सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि हमारी बुनियादी ज़रूरत दरअसल कौन पैदा करता है? किसान अन्न उपजाकर हमारा पेट भरता है और बुनकर कपड़ा बुनकर हमारा तन ढंकता है। बुनकरों के पास बुनकरी की शिक्षा पुस्तैनी है। वे पहले से ही शिक्षित हैं और उन्हें ज्ञानी माना जाना चाहिए। लेकिन समाज में उन्हें उपेक्षा की दृष्टिकोण से देखा जाता है। आज बुनकरी को बर्बाद कर दिया गया है। हमें तय करना है कि हम किसके साथ खड़े हों।
कार्यक्रम का संचालन कम्युनिस्ट फ्रंट के मनीष शर्मा ने किया।
कबीर जन्मोत्सव समिति द्वारा जारी विज्ञप्ति