भोपाल गैस त्रासदी अस्पताल को कोविड अस्पताल बनाने के चलते एक गैस पीड़िता की मौत

In this Friday, Nov. 20, 2009 photograph, a physiotherapist holds the leg of a seven year old child at a clinic run by a non governmental organization to cater to victims of the gas tragedy in Bhopal, India. The Bhopal industrial disaster killed about 4,000 people on the night of Dec. 3, 1984. The death toll over the next few years rose to 15,000, according to government estimates. A quarter century later, many of those who were exposed to the gas have given birth to physically and mentally disabled children. (AP Photo/Saurabh Das)
रासायनिक रिसाव ने हजारों लोगों की जान ली
भोपाल गैस त्रासदी में जीवित बचे लोगों के लिए काम करने वाले एनजीओ द्वारा संचालित क्लिनिक में सात साल के बच्चे का इलाज करते हुए फिजियोथेरेपिस्ट. 1984 को हुए रासायनिक रिसाव ने एक ही रात में हजारों लोगों की जान ली. साथ ही आगे के कई वर्षों में विषाक्त गैस के असर से अन्य हजारों की जान गई है. मध्य प्रदेश सरकार द्वारा राज्य की राजधानी भोपाल के मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) को कोविड-19 के लिए समर्पित अस्पताल में बदलने के निर्णय से भारत के एक सबसे कमजोर समुदाय पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है. बीएमएचआरसी 500 बिस्तरों वाला एक सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल है. इसे 1984 की भोपाल गैस त्रासदी में बचे पहली, दूसरी और तीसरी पीढ़ी के लोगों की देखभाल के लिए स्थापित किया गया था.
लेकिन 23 मार्च को राज्य के लोक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के एक निर्देश के अनुसार बीएमएचआरसी ने मौजूदा रोगियों के लिए सभी स्वास्थ्य देखभाल बंद कर दी है. केवल चार रोगियों को छोड़कर, जिन्हें उनकी गंभीर स्थिति के कारण वहां से हटाया नहीं किया जा सका था, अन्य सभी रोगियों को अस्पताल से बाहर निकाल दिया गया. अस्पताल से निकाले गए रोगियों में से एक 68 साल मुन्नी बी भी थीं. 9 अप्रैल को चिकित्सा देखभाल के अभाव में उनकी मौत हो गई.3 दिसंबर 1984 की आधी रात को, चालीस टन से अधिक जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट एक कीटनाशक संयंत्र से लीक हो गई और भोपाल की हवा जहर में बदल गई. रिसाव के तत्काल बाद हजारों लोगों की मौत हो गई. जहरीली गैस के असर से बाद के सालों में हजारों अन्य लोगों की भी मौत हुई. भोपाल गैस त्रासदी अभी भी दुनिया की सबसे घातक औद्योगिक आपदा है. पीढ़ियों बाद भी रिसाव से बचे लोगों में कैंसर और जन्म दोष की दर में वृद्धि जारी है.
पिछले तीन हफ्तों में कोविड-19 को लेकर मध्य प्रदेश की प्रतिक्रिया से पता चला है कि राज्य महामारी से निपटने के लिए तैयार नहीं है. बीएमएचआरसी को बंद करने का राज्य का बड़ा फैसला इसी पैटर्न को दिखाता है. एक्टिविस्टों के मुताबिक, इसने गैस रिसाव में बचे लोगों को बिना किसी स्वास्थ्य सुविधा के अधर पर लाकर छोड़ दिया है और अभी तक बीएमडब्ल्यूआरसी में कोविड-19 मामले के संदिग्ध या पुष्टि रोगी किसी का भी इलाज नहीं किया गया है. रिसाव में बचे लोग पहले से ही कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली से पीड़ित हैं और उनमें से अधिकांश अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में रहने को मजबूर हैं. यह कारक उनमें नोवल कोरोनवायरस के संपर्क में आने का खतरा बढ़ा देता है. इस परिदृश्य में मुन्नी बी की कहानी रिसाव में जीवित बचे लोगों पर लादी जा रही असीम हृदय विदारक स्थिति को बयान करती है.
गैस रिसाव में जीवित बचे लोगों के साथ काम करने वाले भोपाल ग्रुप ऑफ इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की एक कार्यकर्ता, रचना ढींगरा ने मुझे बताया कि जब बीएमएचआरसी को बदलने का आदेश जारी किया गया था, “लगभग तुरंत, मेरा फोन बजने लगा.” उन्होंने कहा कि घबराए हुए परिवारों ने उन्हें बुलाया और कहा कि “रोगियों को जबरन छुट्टी दी जा रही है.” उन्होंने बताया, जब मैंने फोन किया तो मुझे महसूस हुआ कि वे उन रोगियों को भी डिस्चार्ज करने की कोशिश कर रहे थे जो वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे. हमने इसे अदालत में चुनौती देने का फैसला किया.” ढींगरा ने मुझसे कहा, “स्वास्थ्य का अधिकार, समान रूप से इलाज किया जाना और जीवन का अधिकार गैस त्रासदी के बचे लोगों के लिए काफी निकटता से जुड़ा हुआ है.”
7 अप्रैल को ढींगरा और मुन्नी बी ने सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने के लिए कहा. याचिका के अनुसार, अस्पताल में “86 रोगियों को जबरन छुट्टी दे दी गई है.” याचिका ने राज्य सरकार के आदेशों को चुनौती दी और कहा कि अस्पताल संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के उल्लंघन कर रहा है जो क्रमशः समानता के अधिकार और जीवन के अधिकार की गारंटी देते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को इसके बजाय मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर पीठ से संपर्क करने को कहा. मामला अभी तक सुनवाई के लिए नहीं आया है.
अदालत से तारीख मिलने के इंतजार में ही मुन्नी बी की मौत हो गई. 11 मार्च को उनकी एक सर्जरी हुई थी और वह आईसीयू में थीं. उनका बेटा दिहाड़ी मजदूर है जो काजी कैंप में रहता है. यह कैंप रिसाव वाली फैक्ट्री के पास है और 1984 की त्रासदी में सबसे बुरी तरह प्रभावित झुग्गी-झोपड़ी है. मुन्नी बी के अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान वह एक बार भी उनसे मिलने नहीं जा सका क्योंकि वह बीएमएचआरसी से बहुत दूर रहता है. 25 मार्च को लॉकडाउन शुरू होने के बाद देश भर के लाखों दिहाड़ी मजदूरों की तरह ही उसकी माली हलात और भी डांवाडोल हो गई. ढींगरा ने बताया, “परिवार तेजी से खाने के लिए मोहताज होता जा रहा था और बीएमएचआरसी के डॉक्टरों ने बी के बेटे को गुर्दा रोग विशेषज्ञ नेफ्रोलॉजिस्ट की व्यवस्था करने के लिए कहा. परिवार को यह तक पता नहीं था कि उस शब्द का क्या मतलब है.”
मुन्नी बी की मृत्यु के अगले दिन, ढींगरा ने मुझसे कहा, “हम चाहते हैं कि भर्ती हुए मरीजों की देखभाल के लिए तत्काल राहत दी जानी चाहिए, आकस्मिक सेवाओं को फिर से शुरू किया जाना चाहिए और 23 मार्च के आदेश को किनारे कर दिया जाना चाहिए.” उन्होंने कहा कि मुन्नी बी की मृत्यु हो गई क्योंकि उन्हें “चिकित्सकीय देखभाल से दूर रखा गया था.”ढींगरा ने मुझे बताया कि मुन्नी बी की मौत और मामले की धीमी गति के बाद उन्होंने भोपाल गैस पीड़ितों के मेडिकल पुनर्वास के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त निगरानी समिति को सतर्क किया.निगरानी समिति के एक सदस्य पूर्णेंदु शुक्ला ने मुझे बताया कि वह भोपाल गैस पीड़ितों की देखभाल की कमी के बारे में चिंतित थे. “पिछले दस दिनों से हम कोशिश कर रहे हैं कि अस्पताल को आकस्मिक और रोगी सेवाओं के लिए खोला जा सके.” उन्होंने कहा कि यह केवल उनके हस्तक्षेप के बाद ही था कि चार मरीज जो गंभीर हालत में थे, उन्हें रहने दिया गया. शुक्ला ने कहा, “जब शहर में अन्य अस्पताल हैं, तो मुझे आश्चर्य है कि बीएमएचआरसी को कोविड देखभाल के लिए क्यों चुना गया.”
शुक्ला शहर के कई अस्पतालों का जिक्र कर रहे थे जिन्हें कोविड-19 देखभाल के लिए पहचाना गया है. इसमें ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज, गांधी मेडिकल कॉलेज और एक निजी मेडिकल कॉलेज चिरायु शामिल हैं. शुक्ला का तर्क इस तथ्य के प्रकाश में अधिक प्रासंगिक हो जाता है कि जब बीएमएचआरसी ने सभी मौजूदा रोगियों को बाहर निकाल दिया था तब से अस्पताल पूरी तरह से खाली पड़ा है.
यह चिन्हित किया जाना चाहिए कि स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार मध्य प्रदेश में कोविड-19 के 443 सकारात्मक मामले सामने आ चुके हैं और 33 लोगों की मौत हो चुकी है. सूचनाओं के अनुसार भोपाल में 10 अप्रैल तक 112 पुष्ट मामले देखे गए हैं. कई मामले सरकारी अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारियों और स्वास्थ्य विभाग से आते हैं. वर्तमान में राज्य सरकार के सभी अधिकारी चिरायु में भर्ती हैं. स्वास्थ्य अधिकारों पर काम करने वाली एक स्वयंसेवी संस्था स्वास्थ्य अधिकार मंच के सह-संयोजक अमूल्य निधि ने सरकारी अधिकारियों द्वारा सरकारी अस्पताल के ऊपर एक निजी अस्पताल को दी गई इस वरीयता पर सवाल उठाया. “दोनों चिकित्सा संस्थानों- एम्स और जीएमसी- ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि वे कोविड मामलों के इलाज के लिए तैयार हैं. जब हमारे कोविड अस्पताल खाली हैं तो सरकारी कर्मचारियों को निजी अस्पतालों में भर्ती क्यों किया जाता है?” निधि ने कहा, “सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी जिन लोगों की है, अपनी पर आने पर वे निजी अस्पतालों का चयन करते हैं.”
कोढ़ में खाज वाली बात यह कि बीएमएचआरसी को इस तरह बंद किया गया है जिससे किसी को भी लाभ नहीं हो रहा. “पिछले 18 दिनों से उन्होंने गेट पर बाउंसर रखे हैं,” ढींगरा ने बताया और कहा कि उन्होंने आईसीयू में मरीजों को हटाने की हर कोशिश की. “उनमें से एक की मौत हो गई है और अन्य लोग गंभीर हैं. यह पूरी कवायद कोविड के लिए की गई थी लेकिन इसका उपयोग इसके लिए नहीं किया जा रहा है. वे उन लोगों को मौत के घाट उतार रहे हैं जिन्होंने पहले से ही बहुत पीड़ा झेली हैं. ”
बीएमएचआरसी आईसीएमआर के अंतर्गत आता है. स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव, मुख्यमंत्री कार्यालय और इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के कार्यालय को ईमेल किए गए सवालों का कोई जवाब नहीं मिला है. जवाब आने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.भोपाल के बुजुर्ग ऐक्टिविस्ट अब्दुल जब्बार, जिन्होंने गैस त्रासदी में बच गए लोगों के लिए अभियान चलाने में अपना सारा जीवन लगा दिया, ने मुझसे एक बार कहा था कि इस शहर को “दिल तुड़वाने की आदत है.” नवंबर 2019 में उनका निधन हो गया. जब्बार और मुन्नी बी उस पीढ़ी के आखिरी लोग थे जो पहले जहर से और फिर सरकारी उदासीनता के अनकहे दुखों से परेशान रहे. आने वाले हफ्तों में भोपाल में कार्यकर्ता और परिवार इस बात को लेकर चिंतित हैं कि अगर जीवित बचे लोगों के लिए बीएमएचआरसी को तुरंत दोबारा नहीं खोला गया तो महामारी गैस रिसाव से बचे लोगों को बहुत नुकसान पहुंचाएगी.
कारवां से साभार