पुरानी धारणाएं और महिला श्रमिकों की चुनौतियाँ

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महिलाएं किसी भी तरह और किसी भी परिस्थिति में बेहतर ‘एडजस्ट’ कर सकती हैं, जैसी धारणा ने दक्षिण एशिया के तेज फैशन उद्योग में हाशिए पर रहने वाली महिलाओं को कम वेतन व अनिश्चित परिस्थितियों में काम करवाने का आधार बनाया।

बांग्लादेश में जारी जुझारू संघर्ष के बीच 2 नवंबर को ‘बांग्लादेश श्रम (संशोधन) विधेयक, 2023’ बांग्लादेश संसद में पारित किया गया, जिसमें मातृत्व अवकाश को 112 दिन, यानी 16 सप्ताह, से बढ़ाकर 120 दिन कर दिया गया। भारत में आज, कानूनी तौर पर, 26 सप्ताह का अवकाश मिलता है। 2017 से पहले भारत में भी यह 16 सप्ताह का था। बांग्लादेश के श्रमिक कानून सुधारों की दृष्टिकोण से यह एक महत्वपूर्ण कदम था।

बांग्लादेश के रेडीमेड कपड़ा उद्योग के श्रमिक अपनी न्यूनतम मजदूरी, जो की केवल 8300 टका है, बढ़ाने के लिए आंदोलित हैं। इस उद्योग में 35000 कारखाने हैं और 4 मिलियन से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें से अधिकांश महिला श्रमिक हैं।

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न्यूनतम वेतन बढ़ाने की मांग के साथ-साथ, बेहतर काम करने की परिस्थिति की भी मांग उठाई जा रही है, जो खास तौर से महिलाओं के लिए बहुत खराब है। उन्हें अपनी नौकरी जारी रखने के लिए अपनी गर्भावस्था को स्थगित करना पड़ता है। यौन उत्पीड़न एक गंभीर समस्या के बतौर उठकर आया, और वेतन में भेदभाव जैसी मांग हड़ताल में सामने आई।

साथ ही यह भी समझने की भी जरूरत है कि यह हड़ताल केवल न्यूनतम वेतन की मांग या व्यावसायिक स्थिति में सुधार से कहीं अधिक क्यों है। और यह, विशेष रूप से, महिला श्रमिकों के लिए इतनी महत्वपूर्ण क्यों है। हालाँकि यह बांग्लादेश की समसामयिक खबरों के आलोक में लिखा जा रहा है, यह भारत में महिला श्रमिकों के विषय में भी उतना ही सच है।

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ऐतिहासिक रूप से महिलाओं के श्रम की दुनिया को पित्रसत्तात्मक सोच को हथियार बनाकर आकार दिया गया है, चाहे वह घर के अंदर हो या बाहर। यह बांग्लादेश के परिधान या वस्त्र उद्योग के लिए उतना ही सही है जितना भारत में विभिन्न ऐसे उद्योग, जहां भारी संख्या में महिलाओं को कम वेतन पर काम कराया जाता है।

ऐसे कई विचार बचपन से सच के बतौर स्थापित किए जाते है, जो महिलाओं के श्रम को कम मूल्यवान आकलन करने में सहयोग करती है। जैसे यह बात कि महिलाएं ही है जो सिलाई करती है। इस बात को स्कूली शिक्षा से लेकर ‘विवाह सामग्री’ की गुणवत्ता निर्धारण करने का पैमाना बनाने के माध्यम से सदियों से एक साधारण सच के बतौर स्थापित किया गया।

यह धारणा कि महिलाएं किसी भी तरह और किसी भी परिस्थिति में बेहतर ‘एडजस्ट’ कर सकती हैं, इस धारणा को दक्षिण एशिया के फ़ास्ट फैशन उद्योग में हाशिए पर रहने वाली महिलाओं को कम वेतन और अनिश्चित परिस्थितियों में काम करवाने का आधार बनाया गया।

यही आधार बना रेडीमेड कपड़ा उद्योग को सस्ती कीमत पर अपना कार्यबल बनाए रखने, और मुनाफा बढ़ाने में। जब तक इस ‘आधार’ से न जूझेंगे तब तक महिलाओं के काम की परिस्थिति में बदलाव लाना संभव नहीं।

‘संघर्षरत मेहनतकश’ पत्रिका अंक-51 में प्रकाशित

https://mehnatkash.in/2023/12/12/dhanbad-zomato-workers-struggling-with-the-situation/

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