अब उत्तराखंड में 1000 दिनों के लिए श्रम कानून स्थगित

कारखाना अधिनियम और औद्योगिक विवाद अधिनियम में बड़ा बदलाव
अयोध्या मंदिर निर्माण के शोर और कोरोना/लॉकडाउन की आड़ में उत्तराखंड सरकार ने मज़दूरों के श्रम कानूनी अधिकारों पर बड़ा हमला बोला है। स्थाई आदेश क़ानून में परिवर्तन के बाद अब 1000 दिनों के लिए श्रम क़ानूनों को स्थगित करने के प्रस्ताव को राज्य कैबिनेट से मंजूरी मिल गई है। अध्यादेश पर राज्यपाल की मंजूरी मिलते ही उसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।
केंद्र की मोदी सरकार व उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्य सरकारों की तरह उत्तराखंड की रावत सरकार का मज़दूर विरोधी घोडा भी बेलगाम दौड़ पड़ा है।
इससे पूर्व उत्तराखंड की त्रिवेंद्र रावत सरकार स्थाई आदेश अधिनियम में संशोधन करके फिक्स्ड टर्म (नियत अवधि) रोजगार को क़ानूनी मान्यता दे चुकी है।
इसे भी पढ़ें–
- कोरोना/लॉकडाउन के बीच मज़दूर विरोधी श्रम संहिताएँ होंगी पारित
- मज़दूर अधिकारों पर राज्य सरकारों के हमले तेज
- यूपी : मज़दूर अधिकारों पर बड़ा हमला, 3 साल तक श्रम क़ानून स्थगित
क्यों है यह मज़दूरों के लिए घातक?
गुपचुप रूप से हुए इन नए संशोधनों के बाद 1000 दिन तक न तो उद्योगों पर कारखाना अधिनियम और न ही औद्योगिक विवाद अधिनियम लागू होगा। इससे उद्योगों को श्रमिक विवाद से लेकर कारखाना संचालन से जुड़े मानकों का दबाव रहेगा। 1000 दिन तक नियम, मानक स्थगित रहेंगे।
कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने बताया कि राज्य में ऐसे नए उद्योग जो एक हजार दिन के भीतर उत्पादन शुरू कर देंगे। उनके लिए एक हजार दिन तक श्रम कानूनों के कई प्रावधानों में छूट रहेगी। कोविड को ध्यान में रखते हुए उद्योगों को बढ़ावा देने को नियमों में शिथिलता दी गई है।
इसके लिए कारखाना अधिनियम में धारा पांच ए और औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 36 सी को जोड़ा गया। अधिनियम में ये दोनों नए प्रावधान केंद्र सरकार के स्तर से दिए गए निर्देश के बाद किए गए हैं। राज्य सरकार की ओर से अधिनियम में संशोधन को अध्यादेश केंद्र को भेजा गया था।
300 से ज्यादा कर्मचारियों पर छंटनी की छूट
ऐसे उद्योग जहाँ कर्मचारियों की संख्या 300 से ज्यादा है, वहाँ उद्योगों को कर्मचारियों की छंटनी का अधिकार होगा। इसके लिए उन्हें कर्मचारियों को तीन महीने का नोटिस देना होगा। नोटिस न देने पर कर्मचारियों को तीन महीने का वेतन देना होगा।
मतलब 3 महीने का वेतन देकर किसी भी मज़दूर को निकालने की खुली छूट भी मिल गई है।
हालाँकि उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में लागू उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 पहले से ही मज़दूर विरोधी रहा है। इस बदलाव के साथ अब मज़दूरों के रहे-सहे अधिकार भी ख़त्म हो जाएँगे।