निराला जयंती बसंत पंचमी पर : कुछ लघु कथाएं

सौदागर और कप्तान / सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
एक सौदागर समुद्री यात्रा कर रहा था, एक रोज उसने जहाज के कप्तान से पूछा, ”कैसी मौत से तुम्हारे बाप मरे?”
कप्तान ने कहा, ”जनाब, मेरे पिता, मेरे दादा और मेरे परदादा समंदर में डूब मरे।”
सौदागर ने कहा, ”तो बार-बार समुद्र की यात्रा करते हुए तुम्हें समंदर में डूबकर मरने का खौफ नहीं होता?”
”बिलकुल नहीं,” कप्तान ने कहा, ”जनाब, कृपा करके बतलाइए कि आपके पिता, दादा और परदादा किस मौत के घाट उतरे?”
सौदागर ने कहा, ”जैसे दूसरे लोग मरते हैं, वे पलंग पर सुख की मौत मरे।”
कप्तान ने जवाब दिया, ”तो आपको पलंग पर लेटने का जितना खौफ होना चाहिए, उससे ज्यादा मुझे समुद्र में जाने का नहीं।”
विपत्ति का अभ्यास पड़ जाने पर वह हमारे लिए रोजमर्रा की बात बन जाती है।
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गधा और मेंढक / सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
एक गधा लकड़ी का भारी बोझ लिए जा रहा था। वह एक दलदल में गिर गया। वहाँ मेंढकों के बीच जा लगा। रेंकता और चिल्लाता हुआ वह उस तरह साँसें भरने लगा, जैसे दूसरे ही क्षण मर जाएगा।
आखिर को एक मेंढक ने कहा, ”दोस्त, जब से तुम इस दलदल में गिरे, ऐसा ढोंग क्यों रच रहे हो? मैं हैरत में हूँ, जब से हम यहाँ हैं, अगर तब से तुम होते तो न जाने क्या करते?”
हर बात को जहाँ तक हो, सँवारना चाहिए। हमसे भी बुरी हालतवाले दुनिया में हैं।

दो घड़े / सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
एक घड़ा मिट्टी का बना था, दूसरा पीतल का। दोनों नदी के किनारे रखे थे। इसी समय नदी में बाढ़ आ गई, बहाव में दोनों घड़े बहते चले। बहुत समय मिट्टी के घड़े ने अपने को पीतलवाले से काफी फासले पर रखना चाहा।
पीतलवाले घड़े ने कहा, ”तुम डरो नहीं दोस्त, मैं तुम्हें धक्के न लगाऊँगा।”
मिट्टीवाले ने जवाब दिया, ”तुम जान-बूझकर मुझे धक्के न लगाओगे, सही है; मगर बहाव की वजह से हम दोनों जरूर टकराएँगे। अगर ऐसा हुआ तो तुम्हारे बचाने पर भी मैं तुम्हारे धक्कों से न बच सकूँगा और मेरे टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे। इसलिए अच्छा है कि हम दोनों अलग-अलग रहें।”
जिससे तुम्हारा नुकसान हो रहा हो, उससे अलग ही रहना अच्छा है, चाहे वह उस समय के लिए तुम्हारा दोस्त भी क्यों न हो।

शिकार को निकला शेर / सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
एक शेर एक रोज जंगल में शिकार के लिए निकला। उसके साथ एक गधा और कुछ दूसरे जानवर थे। सब-के-सब यह मत ठहरा कि शिकार का बराबर हिस्सा लिया जाएगा। आखिर एक हिरन पकड़ा और मारा गया। जब साथ के जानवर हिस्सा लगाने चले, शेर ने धक्के मारकर उन्हें अलग कर दिया और कुल हिस्से छाप बैठा।
उसने गुर्राकर कहा, ”बस, हाथ हटा लो। यह हिस्सा मेरा है, क्योंकि मैं जंगल का राजा हूँ और यह हिस्सा इसलिए मेरा है, क्योंकि मैं इसे लेना चाहता हूँ, और यह इसलिए कि मैंने बड़ी मेहनत की है। और एक चौथे हिस्से के लिए तुम्हें मुझसे लड़ना होगा, अगर तुम इसे लेना चाहोगे।”
खैर, उसके साथी न तो कुछ कह सकते थे, न कर सकते थे; जैसा अकसर होता है, शक्ति सत्य पर विजय पाती है, वैसा ही हुआ।