दलित अधिकार व सामाजिक न्याय के लिए 4 दिसम्बर को दिल्ली में देशव्यापी प्रदर्शन

तमाम मुद्दों पर मतभेद के बावजूद जन्म के आधार पर होने वाले भेदभाव; जाति व्यवस्था के आधार पर होने वाले उत्पीड़न और हिंसा के खिलाफ देशभर से लॉग इकट्ठा हो रहे हैं।
हमारे देश में शोषण की व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हथियार है जाति व्यवस्था जो शोषितों को अपने उत्थान के अवसरों तथा साधनों से महरूम कर देती है। सदियों की जाति व्यवस्था ने जहां शोषित जातियों को आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछड़ा बनाया, वहीं जाति को धर्म और अलौकिक शक्ति से जोड़कर, इसके खिलाफ विरोध के स्वरों को भी शक्तिविहीन कर दिया। इसके खिलाफ पूरे देश के तमाम प्रगतिशील लोग और कई संगठन आंदोलन के लिए एक मंच पर लामबंद हुए हैं।
देश के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग विचारों, धर्मों, जातियों, क्षेत्रों, भाषाई और राजनीतिक लोग व संगठन 4 दिसंबर 2023 को दिल्ली आने की तैयारी कर रहे हैं। इन तमाम लोगों और संगठनों में कई मुद्दों पर मतभेद हैं लेकिन यह सब केवल एक मुद्दे पर साथ आ रहे हैं जो है हमारे देश में जन्म के आधार पर होने वाले भेदभाव और उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन का मक़सद। वह जाति व्यवस्था के आधार पर होने वाले उत्पीड़न और हिंसा के खिलाफ इकट्ठा हो रहे हैं। सब इस बात पर सहमत हैं कि शोषण की यह व्यवस्था इंसानी पहचान को केवल जाति तक सीमित कर देती है।
आयोजकों ने बताया कि यह समता और समानता की लड़ाई है। यह किसी जाति के खिलाफ नहीं बल्कि जातिवाद के खिलाफ संघर्ष है। जातिवाद के खिलाफ यह साझा आंदोलन इस समय की बड़ी जरुरत है क्योंकि पिछले नौ वर्षों के दौरान, भाजपा सरकार की नीतियां और व्यवहार, मुख्य रूप से सामाजिक न्याय के सभी कार्यक्रमों को खत्म करने और जाति और अन्य सभी सामाजिक असमानताओं को मजबूत करने पर अधिक केंद्रित रही हैं। इस तथ्य की पुष्टि के लिए किसी आंकड़े की जरुरत नहीं।
यह स्थापित हो चुका है कि भाजपा सरकार में दलितों पर हमले बढ़े हैं, उनके लिए संवैधानिक प्रावधान कमजोर हुए हैं और सामाजिक कल्याणकारी राज्य के तहत मिलने वाली मूलभूत सुविधाएं, जो उनके जीवन के लिए जरुरी है, भी कमजोर हुई है। एक तरफ जाति श्रेष्ठता की भावना समाज में बड़ी है जिसका सीधा परिणाम जातीय उत्पीड़न है वहीं दूसरी तरफ दलितों पर आर्थिक बोझ बढ़ा है। इसका मुख्य कारण है भाजपा सरकार की नवउदारवादी आर्थिक नीति को लागू करने वाला मनुवादी विचार।
आयोजकों का कहना है कि भाजपा आरएसएस का राजनीतिक संगठन ही है। इसलिए इसमें कोई हैरत नहीं कि वह आरएसएस की नीति को ही लागू करेगी। आरएसएस का असली एजेंडा, उनके सपनों के राष्ट्र, ’हिन्दू राष्ट्र’ बनाने के लिए राजसत्ता पर कब्जा करने का है। अपनी स्थापना के समय से ही आरएसएस एक ब्राह्मणवादी संगठन था, स्वतंत्रता के बाद उसने हिंदू कोड बिल में संशोधन का विरोध किया था। मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का भाजपा का विरोध भी इसी आधार पर था। आरएसएस पूरे मन से जाति व्यवस्था का समर्थन करती है।
भाजपा और आरएसएस के हमले बहुत तीव्र और व्यापक स्तर पर हो रहे हैं। इसलिए इनके खिलाफ प्रतिरोध भी व्यापक होना चाहिए। हालांकि हमारे देश में अनेकों संगठन अपने स्तर पर जातिवाद और दलित विरोधी नीतियों के खिलाफ काम कर रहे हैं। लेकिन जरुरत है इन सब आंदोलनों में एकता कायम करना।
इसी मकसद से पिछले दो वर्षो से प्रयास चल रहे थे। पिछले वर्ष दिल्ली में दलित मुद्दों पर एक अधिवेशन किया गया जिसमें आंदोलन के लिए प्राथमिक समझ बानी। इसी की कड़ी में अगस्त महीने में हैदराबाद में दलित शिखर सम्मलेन का आयोजन किया गया था जिसमें सौ से ज्यादा संगठनों ने हिस्सा लिया था।
हैदराबाद सम्मलेन में ही तय हुआ कि भाजपा से वैचारिक और राजनीतिक लड़ाई लड़ने की जरुरत है। आरएसएस और भाजपा को जनता के बीच बेनक़ाब करने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। राज्यों में अधिवेशन कर वहां के संगठनों को भी आंदोलन में शामिल किया जा रहा है और 4 दिसंबर को देश भर से कार्यकर्त्ता दिल्ली पहुंच रहे है।
इस रैली के जरिये दलितों के मुद्दों को उठाया जायेगा। देश की राष्ट्रपति को मांग पत्र सौंपा जायेगा। साथ ही 2024 में होने वाले संसद चुनाव के लिए दलितों के मुद्दों पर भी चर्चा शुरू की जाएगी। समानता की इस लड़ाई के लिए भाजपा की राजनीतिक पराजय आवश्यक है। इन मनुवादी ताकतों को संसद से बाहर कर संविधान को स्थापित किया जाना लक्ष्य है।
न्यूजक्लिक से साभार, संपादित