एमएसके उत्तराखंड का सम्मेलन: मज़दूर विरोधी नीतियों व नफ़रत की राजनीति से लड़ने का आह्वान

संग्रामी एकजुटता के साथ नई कार्यकारिणी का गठन; 7 सूत्री प्रस्ताव पारित। मासा के आह्वान पर 8 फरवरी को अखिल भारतीय मज़दूर प्रतिरोध दिवस पर एकजुट प्रदर्शन का आह्वान।
रुद्रपुर (उत्तराखण्ड)। मज़दूर सहयोग केन्द्र उत्तराखण्ड का दूसरा सम्मेलन मंगलवार, 21 जनवरी को रुद्रपुर के नगर निगम सभागार में जोश और उल्लास के साथ संपन्न हुआ। इस दौरान संगठन की ओर से राजनीतिक रिपोर्ट, सांगठनिक रिपोर्ट और आर्थिक रिपोर्ट की प्रस्तुति हुई, उस पर चर्चा हुई और सर्वसम्मति से पारित किया गया। साथ ही नए पदाधिकारियों और कार्यकारिणी का चुनाव हुआ।
कार्यक्रम ध्वजारोहण के साथ शुरू हुआ। इसके बाद शहीदों को फूल अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई और मज़दूर कार्यकर्ताओं द्वारा क्रांतिकारी गीत प्रस्तुत किए गए।
इस दौरान सम्मेलन में 7 सूत्री प्रस्ताव पारित हुआ। साथ ही मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) के आह्वान पर आगामी 8 फरवरी को अखिल भारतीय मज़दूर प्रतिरोध दिवस के दिन रुद्रपुर में प्रतिरोध कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी का आह्वान किया गया।



राजनीतिक-संगठनिक-आर्थिक रिपोर्ट की प्रस्तुति
राजनीतिक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए अध्यक्ष मुकुल ने देश, दुनिया और स्थानीय सिडकुल के मौजूदा हालात पर चर्चा की। कहा कि आज जब हम संगठन का दूसरा सम्मलेन कर रहे हैं, तब उत्तराखंड सहित पूरे देश में संगठित व असंगठित मज़दूरों की स्थिति पहले से और कठिन, विकट व चुनौतीपूर्ण हो चुकी है, तथा और ज्यादा बदतर होती जा रही है।
तमाम काले कानून लादते हुए, मज़दूरवर्ग को अधिकारविहीन बनाते हुए, देश की संपदा-संपत्तियों को अडानी-अंबानी जैसे मुनाफाखोरों के हवाले करते हुए भाजपा-आरएसएस की मोदी सरकार अपने उसी चिर-परिचित धर्म-उन्माद की नई लहर पैदा करके अपने तीसरे चुनाव का बिगुल फूँक चुकी है।
सांगठनिक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए महासचिव धीरज जोशी ने विगत दो वर्षों की गतिविधियों और संगठन के विकास पर बात रखी। स्थानीय स्तर पर सिडकुल में मज़दूरों पर बढ़ते हमले, चल रहे विभिन्न मज़दूर आंदोलन पर चर्चा की और भगवती माइक्रोमैक्स के मज़दूरों की 58 माह के संघर्ष से हुई ऐतिहासिक जीत की बधाई दी।
उन्होंने बताया कि आज के कठिन समय में हमारे सामने चुनौतियां और भी ज्यादा गहरी हैं। इन तमाम सफलताओं और असफलताओं के बीच गुजरते हुए पिछले सम्मेलन से इस दूसरे सम्मेलन तक संगठन ने एक ऊर्जा के साथ एक मुकाम हासिल किया है। आज के कठिन चुनौतीपूर्ण दौर में अपनी गलतियों-कमजोरियों से सीखते हुए संगठन को और आगे, और ऊंचाई पर ले जाना है!
इसके साथ ही कोषाध्यक्ष महेंद्र सिंह ने आर्थिक रिपोर्ट प्रस्तुत की। जबकि हरेन्द्र सिंह ने संविधान संशोधन प्रस्तुत किया।
सदन में व्यापक चर्चा के बाद सभी रिपोर्ट और संशोधन प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ।

मज़दूर वर्ग पर चौतरफा हमला तेज
सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि बीते तीन दशक से पूंजीवाद-साम्राज्यवाद के शोषण और लूट से पूरी दुनिया की मेहनतकश-मज़दूर आवाम तबाही और संकट के नए दौर में पहुँच गई है। बीते 34 सालों से भारत के सत्ताधारी इसी नव-उदारवादी आम जनविरोधी नीतियों को लागू करने में जुटे हैं। कांग्रेस, भाजपा, संयुक्त मोर्चा सभी के शासनकाल में सीमित अधिकार भी छिनते गए, शोषण, लूट और दमन तेज होता गया, सरकारी कंपनियां बिकती गईं, जो आज मोदी सरकार के दौर में बेलगाम हो चुकी हैं।
आज मज़दूर वर्ग पर केन्द्र और राज्य सरकार की खुली मदद से पूंजीपति वर्ग हमलावर है। देश की सार्वजनिक/सरकारी संपत्तियों को बेचा जा रहा है, क़ानूनी अधिकार छिन रहे हैं। पुराने श्रम कानूनों को ख़त्म करके मज़दूर विरोधी 4 श्रम संहिताएं लागू होने वाली हैं, बस भाजपा को तीसरी सरकार बनने की प्रतीक्षा है।
मज़दूरों को बंधुआ बनाने वाली इन श्रम संहिताओं के लागू होने के बाद स्थायी रोजगार, यूनियन का अधिकार, हड़ताल का अधिकार आदि बचे हुए क़ानूनी अधिकार खत्म हो जाएंगे। एक और बड़ी मज़दूर आबादी ठेका, ट्रेनी, डिलीवरी जैसी असुरक्षित मज़दूर बनकर रह जाने वाली है।
मजदूरों के आर्थिक अधिकार, संगठित होने, हड़ताल करने के अधिकार को छीना जा रहा है। स्थाई नौकरी की जगह फिक्स्ड टर्म और ठेका-ट्रेनी अस्थायी कर्मियों से बड़े पैमाने पर काम लिया जा रहा है। महिला श्रमिकों सहित असंगठित क्षेत्र में मज़दूरों की दुर्दशा तेज है और वे श्रमिक मान्यता, मातृत्व अवकाश, पीएफ-ग्रेच्युटी के अधिकार से भी वंचित हैं। महंगाई और बेरोजगारी बेलगाम है।

बाँटों और राज करो!
आज मेहनतकश पहले से ज्यादा बँटवारों का शिकार है। संगठित क्षेत्र में स्थाई-अस्थाई, ठेका-ट्रेनी आदि के तहत विभाजन और व्यापक हुआ है। स्थाई और अस्थाई मज़दूरों के वेतन और सुविधाओं में बढ़ते अंतर से असमानता की खाई काफी गहरी हो चुकी है।
असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के पास न तो आर्थिक सुरक्षा है, न सामाजिक सुरक्षा। ओला, उबर, जोमैटो, स्वीजी आदि ऑनलाइन काम करने वाले गिग व प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों से लेकर आशा, आंगनवाड़ी, मिड डे मील आदि स्कीम वर्कर जिनमें ज्यादातर महिला श्रमिक हैं, को कर्मकार का दर्जा भी हासिल नहीं है।
वहीं, बड़े पूंजीपतियों के साथ फासीवादी गठजोड़ से धार्मिक नफरत, फर्जी अंध-राष्ट्रवाद और तमाम प्रतिक्रियावादी विचारों के साथ देश में नंगी तानाशाही चल रही है। मेहनतकश के कंधों पर भीषण आर्थिक संकट का बोझ डाला जा रहा है। मूल मुद्दों से भटकाने, संघर्षों को कमजोर करने के लिए भाजपा-आरएसएस द्वारा उन्हें सुनियोजित तरीके से सांप्रदायिक नफरत की आग में झोंक जा रहा है।
भयावह बेरोजगारी, महंगाई, भुखमरी के बीच धर्म के राजनीतिक इस्तेमाल से धर्मोंन्माद व नफ़रती खेल उस मुकाम पर पहुंच गया है, जहां भाई-चारा की जगह हिंदू-मुस्लिम, सवर्ण-दलित के खूनी दलदल में फँसकर मज़दूर एक दूसरे के खिलाफ हमलावर हो गया है।

संघर्षों से कामयाबी
वक्ताओं ने कहा कि इन हालात के बावजूद एकताबद्ध प्रतिरोध भी लगातार चलता रहा, जो उम्मीद की किरणें भी हैं। प्रथम सम्मेलन के ठीक पहले मोदी सरकार को 13 माह के ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने झुकने और तीन काले कृषि कानून वापस लेने के लिए विवश कर दिया था।
अभी मोदी सरकार ने औपनिवेशिक कानून के खात्मे के बहाने देश के तीन महत्वपूर्ण क़ानून- आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य कानून बदलकर दमनकारी तंत्र को और मजबूत किया। लेकिन देशभर के ड्राइवर साथियों की जुझारू हड़ताल ने डेढ़ दिन में मोदी सरकार को एक कदम पीछे हटने को मजबूर किया, हालांकि ये घातक क़ानून अभी नहीं बदले हैं और ड्राइवर साथी आंदोलन के लिए कमर कसे हुए हैं।
इस कठिन दौर में भगवती-माइक्रोमैक्स के मज़दूरों ने ऐतिहासिक जीत हासिल की है। देश के कुश्ती खिलाड़ियों का आंदोलन सबके सामने है।

पूरी दुनिया में संघर्ष जारी
नवउदारवादी नीतियों के परिणामस्वरूप ही पूरी दुनिया की मेहनतकश आबादी भयावह संकट झेल रही है और संघर्षरत है। दुनियाभर में स्वतःस्फूर्त मज़दूर आंदोलनों का एक नया सिलसिला जारी है।
बांग्लादेश में गारमेंट उद्योग के मज़दूरों, जिसमें ज्यादातर महिला मज़दूर हैं, से लेकर लुटेरों के सिरमौर अमेरिका के ऑटो क्षेत्र के मज़दूरों, यूरोप के रेल-परिवहन-डाक सहित सरकारी कर्मचारी, निजी क्षेत्र के मज़दूर, शिक्षक, नर्स आदि स्वास्थ्य कर्मी, और मज़दूरों के नए हब चीन तक मज़दूर बेहतर वेतन, सुविधाओं और सम्मानजनक ज़िंदगी के लिए आंदोलित हैं।

निरंतर और निर्णायक लड़ाई के लिए संग्रामी संगठन जरूरी
वक्ताओं ने कहा कि मौजूद हालात में मज़दूर वर्ग की रोजमर्रे की जिन्दगी को बेहतर और सम्मानजनक बनाने के सामूहिक पहल से संघर्ष को और गति देने के लिए मज़दूरों का एक सक्रिय संगठन पहली ज़रूरत है, जो मज़दूरों के आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों को उठा सके, निराशा के दौर में नई एकजुटता और उम्मीद पैदा कर सके।
मज़दूर विरोधी कानूनों, छाँटनी-बंदी और निजीकरण प्रक्रिया के मुखर विरोध के साथ बेहतर काम के माहौल, स्थायी रोजगार, उचित मज़दूरी और संगठित होने व यूनियन गठन के अधिकार तथा ठेका व असंगठित मज़दूरों की आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा व मूलभूत नागरिक सुविधाओं के लिए एकजुटता और संघर्ष को आगे बढ़ाने की दिशा में पहल और मजबूत करना होगा।
इसी के साथ पूंजीवाद व फासीवाद के संयुक्त हमले से बढ़ते आर्थिक-सामाजिक संकट और नफ़रत के के खिलाफ भाईचारा कायम करते हुए ज़िंदगी से जुड़े मुद्दों पर संघर्ष केंद्रित करना होगा। मज़दूर आन्दोलन के अन्दर गहरे जड़ जमाए जाति-धर्म-क्षेत्र के नाम पर भेदभाव, लिंग आधारित गैबराबरी का विरोध और मज़दूर वर्ग के अन्दर समानता का माहौल बनाना होगा। समाज में जाति-धर्म-लिंग-क्षेत्र के आधार पर ऊँच-नीच, गैरबराबरी का भेदभाव होने पर हमे उसके विरोध में खड़ा होना होगा।
इन्हीं चुनौतियों व कार्यभार के साथ देश भर में सचेत, जुझारू और संघर्षरत मज़दूरों के एक अखिल भारतीय संग्रामी मज़दूर केन्द्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। साथ ही मज़दूर विरोधी नीतियों के खिलाफ देश के संघर्षशील मज़दूर संगठनों के साथ तालमेल और मजबूत बनाना है। ऐसी पहल से निर्मित “मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान” (मासा) प्रक्रिया को और व्यापक बनाना होगा।

शुभकामनाएं : हम चलेंगे साथ-साथ
मज़दूर सहयोग केन्द्र दिल्ली की साथी श्रेया ने अपनी एकजुटता प्रदर्शित करते हुए एक कठिन माहौल में मज़दूरों के देशव्यापी संग्रामी केन्द्र को बनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि वर्तमान हालत में मज़दूरों के निरंतर, जुझारू और निर्णायक लड़ाई के लिए आगे आना होगा।
सम्मेलन में उपस्थित मज़दूर सहयोग केन्द्र गुड़गांव-नीमराना की ओर से खुशीराम तथा संग्रामी घरेलू कामगार यूनियन दिल्ली की ओर से आर्या ने जीवंत भागीदारी के साथ व्यापक मज़दूर वर्ग और मेहनतकश जनता तक, वर्तमान हमलों के बारे में चेतना और सतर्कता को ले जाने और उन्हें सक्रिय रूप से संघर्ष में शामिल करने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्यभार को रेखांकित किया।
एसडब्ल्यूसीसी पश्चिम बंगाल तथा मज़दूर सहयोग केंद्र, जयपुर (राजस्थान) द्वारा शुभकामना संदेश दिए गए। संगठनों ने इस सम्मेलन में शारीरिक रूप से भाग न ले पाने का दुख व्यक्त करते हुए सम्मेलन के कदम और आगामी योजनाओं के संदर्भ में पूर्ण सहमति और दृढ़ एकजुटता व्यक्त की।
एमएमटीसी-पैम्प इंडिया मेवात (हरियाणा) से आए साथी सोमनाथ ने कहा कि एमएमटीसी-पैम्प इंडिया भारत सरकार का संयुक्त उद्यम है, जहाँ क़ानूनी व संवैधानिक रूप से यूनियन बनाना भी अपराध बन गया, मज़दूर नेता पुलिसिया दमन और बर्खास्तगी के शिकार हो गए। ऐसे में पूर्णतः निजी स्वामित्व वाली कंपनियों में मज़दूरों के हालत कितने बुरे होंगे, समझा जा सकता है।
समाजवादी लोक मंच के साथी मुनिष कुमार ने सम्मेलन की कामयाबी पर बधाई दी। उन्होंने भारत सरकार के एकमात्र आयुर्वेदिक दवा कारखाना आईएमपीसीएल का विनिवेश रद्द करने व ठेका मज़दूरों के पीएफ बकाया भुगतान आदि मांगों को लेकर जारी संघर्ष और उत्तराखंड, विशेष रूप से रामनगर में हिंसक पशुओं के खिलाफ पीड़ित जनता के जारी संघर्ष की चर्चा की। प्रदेश में जर्जर स्वास्थ्य सेवाओं का खुलासा किया।
पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया (डेमोक्रेटिक) के हरीश कुमार मौर्य ने अपनी एकजुटता प्रदर्शित करते हुए साझा कार्यवाहियों को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।
अंत में देशव्यापी मजदूर प्रतिरोध दिवस के तहत 8 फरवरी को श्रम भवन रूद्रपुर में प्रदर्शन और जुलूस द्वारा जिलाधिकारी के मार्फत राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजने के कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शामिल होने का आह्वान किया गया।

स्थानीय यूनियनों की रही जीवंत भागीदारी
सम्मेलन में स्थानीय स्तर पर रॉकेट रिद्धि सिद्धि कर्मचारी संघ, डेल्टा इंप्लाइज यूनियन, महिंद्रा कर्मकार यूनियन, नेस्ले कर्मचारी संगठन, कारोलिया लाइटिंग इंप्लाइज यूनियन, एलजीबी वर्कर्स यूनियन, सीआईई इंडिया श्रमिक संगठन, एडविक कर्मचारी संगठन, आनंद निशिकावा कंपनी इंप्लाइज यूनियन, हेंकल मजदूर संघ, भगवती श्रमिक संगठन, असाल कर्मकार यूनियन, एडिएंट कर्मकार यूनियन, टाटा ऑटोकॉम मजदूर संघ, बडवे इंप्लाइज यूनियन आदि के साथी उपस्थित रहे।
विभिन्न यूनियनों की ओर से पंकज शर्मा, भास्कर उपाध्याय, संदीप सिंह, धनबीर सिंह राणा, साहिब सिंह, यूसुफ, हरेन्द्र सिंह, कृष्ण नारायण झा, गंगा सिंह, पूरन चंद्र पांडे, मुकेश चन्द्र जोशी, निरजेश यादव, वीर सिंह, संजय प्रकाश, गोकुल लोहनी, हरपाल सिंह, सुनील कुमार, सुरेश जोशी, विजय कुमार आदि ने भी संबोधित किया।

नई कार्यकारिणी का हुआ गठन
दो सत्रों में चले सम्मेलन के पहले सत्र की अध्यक्षता अमर सिंह, गोविंद सिंह मेहरा, सोहन लाल व शंभू शर्मा ने की। इस सत्र में राजनीतिक, संगठनिक व आर्थिक रिपोर्ट की प्रस्तुति के साथ नई कार्यकारिणी का सर्वसम्मति से चुनाव हुआ।

नवनिर्वाचित टीम में संरक्षक अमर सिंह और विजय कुमार; अध्यक्ष मुकुल; उपाध्यक्ष शंभू शर्मा, ज्ञानेंद्र तिवारी व बालकरण; महासचिव धीरज जोशी; संयुक्त सचिव हरेंद्र सिंह; प्रचार सचिव सुधीर कुमार; संगठन सचिव चंद्र मोहन लाखेड़ा; कार्यालय सचिव गोविंद सिंह और कोषाध्यक्ष महेंद्र सिंह राणा चुने गए। साथ ही एक सलाहकार मण्डल का गठन हुआ।

सम्मेलन में पारित प्रस्ताव-

- यह सम्मेलन मज़दूर विरोधी 4 नई श्रम संहितों का पुरजोर विरोध करता है और इसे फौरन रद्द करने की मांग करता है। साथ ही श्रम क़ानूनों में मज़दूर वर्ग हित के अनुरूप सुधारो की मांग करता है। मज़दूर सहयोग केन्द्र का मानना है कि मज़दूर विरोधी समस्त क़ानूनों पर रोक सहित नई श्रम संहिताओं को रद्द करवाने और श्रम क़ानूनों में मज़दूर पक्षीय संशोधन के लिए मज़दूर वर्ग का निरंतर, जुझारू और निर्णायक लड़ाई समय की मांग है। देशभर के संघर्षशील मज़दूर संगठनों के साथ तालमेल से इस लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए एमएसके उत्तराखंड अपनी भागीदारी और दृढ़ता से निभाने की प्रतिज्ञा लेता है।
- यह सम्मेलन केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों द्वारा सरकारी-सार्वजनिक संपत्तियों/संपदाओं को बेचने और निजीकरण की बेलगाम प्रक्रियाओं की तीखे शब्दों में निंदा करता है और उसपर तुरंत रोक लगाने की मांग करता है। इसके खिलाफ विभिन्न क्षेत्र के संघर्षरत मज़दूरों-कर्मचारियों के साथ एमएसके उत्तराखण्ड समर्थन व्यक्त करते हुए अपनी प्रतिबद्धता स्पष्ट करता है।
- यह सम्मेलन मज़दूर आंदोलनों पर दमन, यूनियन के अधिकार पर हमले और छँटनी-बंदी पर फ़ौरन रोक लगाने; स्थाई-अस्थाई, संगठित-असंगठित महिला कामगारों सहित समस्त मज़दूरों की सामाजिक सुरक्षा, सबके लिए सम्मानजनक स्थायी रोजगार और 26,000 रुपये मासिक न्यूनतम मज़दूरी की माँग करता है।
- उत्तराखंड के औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल में करोलिया लाइटिंग, लुकास टीवीएस, इंटरार्क, एएलपी सहित तमाम फैक्ट्री के मज़दूर गैर क़ानूनी छँटनी-बंदी-बर्खास्तगी के खिलाफ और वेतन समझौते के लिए तथा निजीकरण प्रस्ताव के खिलाफ आईएमपीसीएल मोहान (अल्मोड़ा) के मज़दूर संघर्षरत हैं। सिड़कुल सहित पूरे उत्तराखंड में ठेका मज़दूर, असंगठित मज़दूर, आशा, आंगनबाड़ी, भोजनमाता, सफाई कर्मचारी; हिंसक पशुओं के खिलाफ पीड़ित जनता आदि भी संघर्षरत हैं। सम्मेलन उत्तराखंड सहित देश के मज़दूरों के जायज अधिकारों के लिए जारी सभी संघर्षों के प्रति समर्थन व एकजुटता जताता है।
- यह सम्मेलन केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा मज़दूर आंदोलन सहित सभी प्रकार के प्रगतिशील व जनवादी आंदोलनों पर जारी दमन का तीखा विरोध करता है और यूएपीए व एस्मा जैसे काले कानून को रद्द करने की मांग करता है। झूठे व फर्जी मुकदमों में जेल में बंद मज़दूरों, मज़दूर नेताओं और प्रगतिशील-जनवादी आंदोलन के कार्यकर्ताओं की फौरन रिहाई सहित सभी मुकदमे वापस लेने की मांग करता है।
- मज़दूर सहयोग केन्द्र मज़दूरों को जाति-धर्म-क्षेत्र के आधार पर बांटने की राजनीति का विरोध करता है, मज़दूर एकता व आंदोलन को तोड़ने की हर चाल व हमलों के खिलाफ मज़दूरों को सतर्क रहने व नफरत की जगह भाईचारा बढ़ाने की जरूरत महसूस करता है। सम्मेलन मेहनतकश जनता के बीच बढ़ते सांप्रदायिक नफरत, सामाजिक भेदभाव और उत्पीड़न को परास्त करते हुए कॉरपोरेट पूँजी व फासीवादी ताकतों के एकजुट हमलों के खिलाफ़ वर्गीय एकता व संघर्ष को आगे बढ़ाने के प्रति संकल्पबद्ध है।
- यह सम्मेलन मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) के आह्वान पर मज़दूर विरोधी नीतियों के खिलाफ 8 फरवरी, 2024 को आयोजित देशव्यापी ‘मज़दूर प्रतिरोध दिवस’ को पूरी ताक़त से सफल बनाने के लिए संकल्पबद्ध है।