मोदी सरकार द्वारा अब ईपीएफओ पेंशन घटाने की तैयारी, बन रहा है नया फार्मूला

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ईपीएस-95 के तहत पेंशन के लिए अंतिम 60 माह के औसत की जगह पूरी सेवा अवधि के दौरान प्राप्त औसत वेतन योग्य पेंशन निर्धारित करने की योजना है। इससे पेंशन कैसे काफी घट जाएगा, आइए जानें-

मोदी सरकार द्वारा मालिकों के हित में श्रमिकों पर लगातार हमले जारी हैं। 4 लेबर कोड द्वारा मज़दूरों को बंधुआ बनने की तैयारी हो, स्थाई नौकरी की जगह फिक्स्ड टर्म हो, नीम ट्रेनी हो, महँगाई भत्ते का मामला हो अथवा वेतन निर्धारण। अब सरकार पेंशन घटाने की तैयारी में है।

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) मासिक पेंशन निर्धारण के मौजूदा फार्मूले में बदलाव करके मिलने वाली पेंशन को घटाने की पूरी तैयारी में है। इसके तहत पूरी सेवा में प्राप्त औसत पेंशन योग्य वेतन के आधार पर मासिक पेंशन निर्धारण करने का प्रस्ताव है।

जाहिर है कि इस बदलाव से ईपीएफओ के दायरे में आने वाले सभी श्रमिकों का पेंशन कम हो जाएगा। फिलहाल, इस बारे में अंतिम निर्णय के लिए पेंशन, उसके लिए भुगतान राशि और जोखिम का आकलन करने वाले ‘एक्चुअरी’ की रिपोर्ट की प्रतीक्षा है।

पहले, पेंशन योग्य वेतन की गणना का सूत्र अंतिम 12 महीनों के औसत वेतन के रूप में था। लेकिन मोदी सरकार के गठन के तत्काल बाद 2014 में इसे 60 माह कर दिया गया। नए प्रस्ताव में यह पूरे नौकरी अवधि के आधार पर होगी। यानि पेंशन लगातार घटाने की योजना।

गौरतलब है कि नए फार्मूले का प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जारी नई पेंशन स्कीम के विकल्प को चुनने के प्रस्ताव की अवधि बढ़ाने के बाद आया है।

https://mehnatkash.in/2023/02/24/epfo-removes-cap-of-15000-on-supreme-court-order-guidelines-issued-for-higher-pension-option/

पेंशन पाने का आधार क्या है और कैसे यह घट रहा है?

कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) के तहत निजी क्षेत्र के हर श्रमिक को ईपीएफओ की ओर से पेंशन दी जाती है। इस योजना को केंद्र सरकार की ओर से 1995 में शुरू किया गया था। जिसके तहत 16 नवंबर, 1995 या उसके बाद ईपीएस 1995 में शामिल होने पर पेंशन लाभ प्राप्त होगा।

इसके तहत 58 वर्ष की उम्र के बाद कर्मचारी को पेंशन दी जाती है। पेंशन पाने के लिए नियोक्ता और कर्मचारी को वेतन का 12-12 प्रतिशत का योगदान ईपीएफ में करना होता है, जिसका 8.33 प्रतिशत हिस्सा ईपीएस में जाता है।

पेंशन योग्य वेतन से मतलब नौकरी के अंतिम 60 महीनों के वेतन के औसत से होता है। पहले यह अंतिम 12 महीनों के वेतन के औसत के बराबर माना जाता था। मोदी सरकार ने 22 अगस्त 2014 की अधिसूचना द्वारा पेंशन नियमों में सुधार करके इसे 60 महीनों के औसत के बराबर कर दिया था। 

ईपीएफ में अंशदान के लिए वेतन की अधिकतम सीमा 15,000 रुपये तक ही निर्धारित थी। यानि कि नियोक्ता की ओर से ईपीएफ पेंशन में, अधिकतम 1250 रुपये मासिक ही जमा किया जा सकता था।

लेकिन, अप्रैल 2019 में, सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद, उच्च पेंशन विकल्प देकर पेंशन के लिए 15,000 रुपए तक वेतन की सीमा को खत्म कर दिया गया।

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि जो कर्मचारी 1 सितंबर 2014 से पहले ईपीएफ सदस्य रहे हैं, उन्हें ईपीएस के लिए अपने वास्तविक वेतन का 8.33% योगदान करने का विकल्प मिलेगा। उच्च पेंशन विकल्प के चयन के बाद कर्मचारी का जितना वेतन हो, उसके 8.33 प्रतिशत के बराबर पैसा ईपीएफ पेंशन (ईपीएस) में जमा किया जा सकता है।

पेंशन का वर्तमान फार्मूला क्या है?

ईपीएफओ कर्मचारी पेंशन योजना ईपीएस-95 के तहत मासिक पेंशन का निर्धारण करता है। अभी इस फार्मूले के तहत पेंशन योग्य वेतन (अंतिम 60 महीने का औसत वेतन) × पेंशन योग्य सर्विस/70 का उपयोग होता है। (यहाँ वेतन का मतलब मूल वेतन+महंगाई भत्ता है।)

मासिक पेंशन= पेशन योग्य सैलरी* नौकरी के वर्षों की X संख्या / 70

Monthly Pension= (Pensionable Salary* X service period) / 70

(*पेंशन योग्य सर्विस का मतलब पहले अंतिम 12 माह का वेतन था, जो वर्तमान में 60 माह है, जिसे पूरे कार्य अवधि कर दिया गया है)

अब मोदी सरकार ईपीएस-95 के तहत फार्मूले को फिर से बदलने की तैयारी में है। इसमें अंतिम 60 माह के औसत वेतन की जगह पूरी सेवा अवधि के दौरान प्राप्त औसत वेतन योग्य पेंशन निर्धारित करने की योजना है।

ईपीएफओ के प्रस्तावित नए पेंशन फार्मूले से निश्चित रूप से उच्च पेंशन का विकल्प चुनने वालों समेत सभी की मासिक पेंशन का निर्धारण मौजूदा फार्मूले के मुकाबले कम हो जाएगा।

नए फार्मूले से कैसे घट जाएगी पेंशन

प्रस्तावित नई योजना से पेंशन घटेगी कैसे- उदाहरण से समझते हैं।

एक श्रमिक साथी, जिसने साल 2005 में नौकरी शुरू की, तब उसका वेतन ₹4,200 था। उसके वर्तमान वेतन के आधार पर 8 फीसदी वार्षिक औसत वृद्धि मानकर देखा जाए तो वर्ष 2034 में उसकी सेवनिवृत्ति के समय वेतन ₹39,132.55 होगा। नौकरी करने की अवधि 30 साल होगी।

वर्तमान फार्मूला से-

वर्तमान फार्मूले के अनुसार उक्त श्रमिक के अंतिम 60 महीने का औसत वेतन ₹33,748 बैठता है और उसकी पेंशन योग्य नौकरी 30 साल है। ऐसे में वर्तमान फार्मूले (33,748 × 30/70) के तहत उसकी पेंशन ₹14,463 होगी।

नए प्रस्तावित फार्मूले के अनुसार पूरी नौकरी के दौरान प्राप्त वेतन का औसत लिया जाएगा तो मासिक पेंशन का निर्धारण कम होगा। क्योंकि नौकरी के शुरुआती दिनों में वेतन कम था। तमाम संघर्षों के बाद सेवा के अंतिम समय में थोड़ा बेहतर वेतन हो पाता है।

प्रस्तावित फार्मूला से-

उदाहरण के लिए उसी श्रमिक के पूरे 30 वर्ष कार्यकाल के वेतन का औसत ₹15,860 बैठेगा।

ऐसे में नए फार्मूले से देखें तो (15,860 × 30/70) फार्मूले से उसकी पेंशन बनेगी ₹6,797 जो कि वर्तमान फार्मूले से प्राप्त पेंशन (₹14,463) के आधे से भी कम है।

एक श्रमिक साथी के वेतन के आधार पर पेंशन

जो श्रमिक अभी पेंशन पा रहे हैं, वैसे तो वह पहले से ही बेहद कम है, उनपर भी यही फार्मूला लागू होगा। यानि ज्यादातर श्रमिक ₹1000 का पेंशन (जो न्यूनतम है) ही पाते रहेंगे। वह भी यदि नौकरी सुरक्षित रही तो!

सरकार का कुतर्क- वित्तीय बोझ बढ़ेगा

दैनिक हिंदुस्तान में छपी खबर के मुताबिक फार्मूले में बदलाव की जरूरत के बारे में पूछे जाने पर ईपीएफओ के एक सूत्र ने कहा वास्तव में यह माना जा रहा है कि लंबे समय तक अधिक पेंशन देने से वित्तीय बोझ पड़ेगा इसलिए नए फार्मूले पर विचार किया जा रहा है।

यानि श्रमिकों को देने का मामला आते ही वित्तीय बोझ का रोना शुरू हो जाता है, और अडानी-अंबानी जैसे पूँजीपतियों को भारी सब्सिडी, टैक्स की छूटें और बैंकों से डकारने के लिए रियायती कर्ज से कोई वित्तीय बोझ नहीं पड़ता है!

वैसे भी ईपीएफओ के पेंशन कोष में 6.89 लाख करोड़ रुपए की धनराशि पड़ी है।

हिंदुस्तान के एक सवाल के जवाब में सूत्र ने कुतर्क दिया कि यह पैसा केवल पेंशन भोगियों का नहीं है, बल्कि ईपीएफओ से जुड़े सभी अंश धारकों का है और कर्मचारी निधि संगठन को सभी का ध्यान रखना है।

स्पष्ट है कि ध्यान केवल मालिकों का ही रखना है।

पेंशन बढ़ाने का विकल्प

ज्ञात हो कि पिछले साल नवंबर में उच्चतम न्यायालय ने सरकार के धारकों को पेंशन का विकल्प चुनने के लिए 4 महीने का समय देने को कहा था, जिसके अनुसार अंशधारकों को चुनने के लिए नियोक्ताओं के साथ संयुक्त विकल्प फॉर्म भरने के लिए ऑनलाइन सुविधा उपलब्ध कराई थी।

इसमें असमंजस की स्थिति बनी रही जिसके कारण विकल्प चुनने के लिए पहले 3 मई 2023 तक समय बढ़ाया गया, जिसे अब बढ़ाकर 26 जून 2023 कर दिया गया है।

इसी दरम्यान अब मोदी सरकार के निर्देशन पर पेंशन निर्धारण का यह नया फार्मूला आया है।

जाहीर है कि बड़े पूँजीपतियों/कॉरपोरेट की चाहत का यह फार्मूला है, ताकि बुढ़ापे के सहारे, पहले से सीमित पेंशन को और सीमित ही बनाए रखा जाए।