आज से शुरू होगी विदेशों में फंसे भारतीयों को वापस लाने की चरण-बद्ध प्रक्रिया

Covid-19

संकट में फंसे मज़दूरों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और आवश्यक मरीज़ों को मिलेगी प्राथमिकता

अरब में काम करते 80 लाख भारतियों में से 1 लाख 50 हज़ार भर चुके हैं वापसी की याचिका

4 मई को केंद्र सरकार ने ऐलान जारी किया था की वे विदेश में फंसे भारतीयों के वापस आने में उनकी सहायता करेगी| आज 7 मई से यह प्रक्रिया चरणबद्ध तरीके से शुरू की जाएगी| इस परिकल्पना में 12 देशों को प्राथमिकता दी जा रही है जहाँ कई भारतीय नागरिक काम के सिलसिले में जाते हैं| इनमें से फिलहाल युएई, बहरेन, क्वैत, बांग्लादेश, मालदीव, सिंगापुर और अमरीका शामिल हैं| कुल 64 हवाईजहाज़ों में से सबसे अधिक केरल के लिए रवाना होंगी, अन्य दिल्लीएनसीआर, तामिल नाडू, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू और कश्मीर और पंजाब के गंतव्यों को जाएंगी| आने वालों में अरब देशों में फंसे मज़दूरों, बुजुर्गो, गर्भवती महिलाओं के बाद छात्रों और अन्य विशेष संकटग्रस्त लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी|

अब तक खुद को पंजीकृत करने वालों में से सबसे अधिक व्यक्ति युएई से हैं, जिनमें से 40% से अधिक वहां कार्यरत मज़दूर हैं, अन्य 20% पेशेवर हैं और 10% पर्यटक हैं| इनमें से 20% अपनी नौकरिया गवा कर घर लौटने की उम्मीद में हैं, और इस आबादी का कुल 55% केरल के निवासी हैं| दुबई के भारतीय दूतावास के अफसर का कहना है की इस आंकडें में बिहार, युपी तेलंगाना के श्रमिक निवासियों के और पंजीकरण आने की संभावना है|  

इस बृहस्पतिवार को संयुक्त अरब अमीरात से दो विमान चलाए जाने की घोषणा हुई है जो अबु धाबी से कोच्ची और दुबई से कोझिकोड के लिए रवाना होंगे| साथ ही नव सेना की आईएनएस शार्दुल प्रवासियों को निकालने के लिये दुबई के लिए रवाना हो चुकी है| मालदीव से लोगों की वापसी के लिए भी मुंबई तट पर तैनात आईएनएस जलाश्व और आईएनएस मगर को 4 मई की रात को ही मालदीव के लिए रवाना किया जा चुका गया है| अमरीका से भी कुछ विशेष विमानों की इस हफ्ते में रवाना होने की संभावना है|

सरकार ने घोषणा के तहत यह भी कहा है की सभी यात्रियों का पहले कोरोना के लक्षणों के लिए परीक्षण किया जाएगा और यात्रा के दौरान भी उन्हें सरकार द्वारा जारी स्वास्थ्य सुरक्षा नियमों का पालन करना पड़ेगा| साथ ही यात्रिओं को आप ही अपने यात्रा का किराया देना होगा व लौटने के बाद 14 दिन के पृथक-वास में रहना होगा और अनिवार्यतः सरकार की विवादित आरोग्य सेतु एप्प को डाउनलोड करना होगा| इच्छुक यात्रियों की सूचि इन देशों में स्थित भारतीय दूतावासों द्वारा तैयार करने की प्रक्रिया पहले से ही चलाई जा रही है|

अंतर्राष्ट्रीय श्रम पलायन की प्रवृतियाँ साफ़ साफ़ हुई उजागर

कोविड महामारी से दुनिया भर का काम काज ठप्प हो जाने ने वैश्विक स्तर पर चल रहे श्रम और श्रमिकों के आदान प्रदान पर महत्वपूर्ण रौशनी डाली है| अगर भारतीय निवासियों की वापसी की परिकल्पना भी देखें तो इसमें अलग अलग भारतीय राज्यों से अलग अलग विदेशों में हुए पलायन का चरित्र बखूबी नज़र आता है| जहाँ इस पलायन का अरब देशों में रहने वाला बड़ा हिस्सा केरल से आता है और विदेशों में मजदूरी कर पैसे घर भेजता है| वहीँ दूसरी ओर कर्नाटक लौटने वाले प्रवासी मुख्यतः अमरीका, सिंगापूर और इंग्लैंड से रवाना होगे, जहाँ वे मुख्यतः पेशेवर कामों में लगे हुए हैं, जिनमें आईटी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है| युपी लौटने वाला मात्र एक विमान भी युएई से मुख्यतः मज़दूरों को ले कर ही रवाना होगा| वहीँ  बांग्लादेश पिछले दशकों में कश्मीर के मेडिकल के छात्रों के लिए महत्वपूर्ण गंतव्य रहा है| और अमरीका से लौटने वालों की बड़ी आबादी पेशेवरों की है, हालाँकि इनमें कुछ मज़दूर भी शामिल हैं|

देश के अन्दर अब भी फंसे हुए हैं मज़दूर: किस वर्ग पर क्या पड़ रहा है कोरोना का असर?

जहाँ आम इंसान को मालूम होगा की ऐसे संकट के दौर में घर वापस लौटपाना हर इंसान की स्वाभाविक प्रतिक्रिया होगी, और उनका मूलभूत अधिकार भी है, वहीँ इस महामारी ने साबित कर दिया है की इस अधिकार के मुकाबले सरकार की नज़र में कई अन्य आर्थिक और राजनैतिक विमर्श अधिक प्राथमिकता रखते हैं| यही कारण है की जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय नागरिकों को वापस लाने की कवायद शुर हो चुकी है तब भी खुद देश के अन्दर अन्य राज्यों में फंसे श्रमिकों की घर वापसी पर पहले तो सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया, और अब पूंजीपतियों के इशारे पर राज्य सरकारें इस पर पाबंदियां लगा रही हैं| वहीँ, हाल ही में सरकार द्वारा देश की मुसलमान आबादी पर किये जा रहे प्रताड़ना की अरब देशों में हुई प्रतिक्रिया ने वहां काम कर रहे 80 लाख हिन्दुस्तानियों के लिए असुरक्षा बहुत बढ़ा दी, और इसका असर वहां हिन्दुस्तानियों को मिलने वाले रोज़गार पर पड़ने की संभावना ने खुद भारत सरकार को भी अपने रवैय्ये पर कुछ पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया| वहीँ दूसरी ओर खबर है की अमरीका व अन्य देशों से लौट रहे उन्नत प्रवासियों/एनआरआई इस संकट में वापस भारत में बस पाने के विकल्प भी तलाश रहे हैं| उनकी इस चिंता के हवाले से ही भुखमरी के इस दौर में एनआरआई द्वारा 5-15 करोड़ के मकानों की ख़रीद में बड़ा इजाफ़ा होता नज़र आया है|

इस कवायद को “वन्दे भारत मिशन” का नाम दिया गया है और सरकार इस हवाले अपनी क्रियाशीलता पर वाहवाही लूटने की उम्मीद में है| लेकिन सरकार बाहर फंसे नागरिकों को वापस ला कर अपनी एक ज़िम्मेदारी तो पूरी कर रही है, किन्तु लौट रहे नागरिकों, और देश की आबादी पर बने संकट से जनता को निकालने के लिए सरकार को मौजूदा श्रम-बल और रोज़गार के ढाँचे पर पुनर्विचार करने की तत्कालीन ज़रुरत है| यह ना करने से घर लौट कर भी इन प्रवासी भारतियों को पूरी सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ्य सुरक्षा नहीं मिल सकती है|  

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