महाराष्ट्र में लॉकडाउन बढ़ने के बाद प्रवासी मजदूरों की गुहार

‘हम लोग मर जाएगें’ ये शब्द हैं महाराष्ट्र में फंसे कामगारों के
झारखंड के हजारीबाग निवासी त्रिवेनी यादव (42) लॉकडाउन बढ़ाए जाने पर कहते हैं, ‘हम खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। हम सरकार से खुद के लिए सार्वजनिक परिवहन भी शुरू करने के लिए नहीं कह रहे हैं। बस मेहरबानी कर घर जाने के लिए हमें पास दे दो, हम खुद अपना प्रबंध कर लेंगे।’हम मर जाएंगे, साधन मत दो, पर घर जाने के लिए पास तो दे दो- महाराष्ट्र में लॉकडाउन बढ़ने के बाद प्रवासी मजदूरों की गुहारहम मर जाएंगे, साधन मत दो, पर घर जाने के लिए पास तो दे दो- महाराष्ट्र में लॉकडाउन बढ़ने के बाद प्रवासी मजदूरों की गुहारदेशभर में लॉकडाउन के चलते प्रवासी मजदूरों को खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
लॉकडाउन में फंसे कई लोगों ने बताया कि 24 मार्च से लॉकडाउन लागू होने के बाद से कोई स्टेट एजेंसी उनके पास नहीं पहुंची। झारखंड के हजारीबाग निवासी त्रिवेनी यादव (42) लॉकडाउन बढ़ाए जाने पर कहते हैं, ‘हम खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। हम सरकार से खुद के लिए सार्वजनिक परिवहन भी शुरू करने के लिए नहीं कह रहे हैं। बस मेहरबानी कर घर जाने के लिए हमें पास दे दो, हम खुद अपना प्रबंध कर लेंगे।’शहर में निर्माण स्थलों पर मजदूरी का काम करने वाले यादव धारावी में सात अन्य लोगों के साथ 8×8 वर्ग फुट के एक कमरे में रह रहे हैं। हाल में इस इलाके में कोरोना वायरस के मामले में वृद्धि देखी गई है, शनिवार (11 अप्रैल, 2020) को यहां कोरोना से एक महिला की मौत भी हो गई है। यादव कहते हैं कि या तो वो भूख से मर जाएंगे या फिर संक्रमण से, क्योंकि उन्होंने सामान्य शौचालय का भी इस्तेमाल किया जो कि क्षेत्र में रहने वाले हजारों लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है।
मुंबई में फंसे इस समूह ने मदद के लिए रांची स्थित सरकारी हेल्पलाइन नंबर को भी फोन किया। मगर मदद के बजाय उन्हें आजीविका ब्यूरो का नंबर दे दिया गया। ये एक गैर सरकारी संगठन है जो प्रवासी मजदूरों के लिए काम करता है। संगठन से जुड़े दीपक पराड़कर ने बताया कि उन्हें रोजाना 70 से अधिक फंसे हुए प्रवासी मजदूरों के फोन आते हैं।पराड़कर कहते हैं, ‘हम सीधे कैश ट्रांसफर या राशन के लिए विक्रेताओं के साथ समन्वय बनाकर ऐसे समूहों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। मगर बहुत से लोग छोटे से कमरों में रह रहे हैं और उनके इस्तेमाल के लिए भी एक सार्वजनिक शौचालय है, जिससे उनके भीतर संक्रमण का डर बढ़ गया है।’
उल्लेखनीय है कि मुंबई पुलिस ने राज्य रिजर्व पुलिस बल (एसआरपीएफ) की पांच कंपनियों को शहर में बुलाया है, जिसका मतलब है कि कुल 6000 पुलिसकर्मी। मामले में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि यह संख्या किसी भी कानूनी व्यवस्था की स्थिति के लिए है, खासकर अगर प्रवासी मजूदर सहित बड़ी संख्या में लोग घरों से बाहर निकलने लगे।कई प्रवासी मजदूरों ने कहा कि वे 14 अप्रैल के बाद भोजन की कमी और उनकी वर्तमान स्थिति से पार नहीं पा पाएंगे। मामले में एक अधिकारी ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं कि सभी लोगों तक भोजन पहुंचे।
हालांकि राज्य और जिला प्रशासन अभी तक ऐसे सभी लोगों तक नहीं पहुंच पाया है।मामले में यादव कहते हैं, ‘हम उम्मीद कर रहे थे कि सरकार घर जाने के लिए हमें कुछ समय देगी। यहां राशन भी नहीं है। भोजन भी कुछ संगठनों द्वारा दिया जाता है, जो कि पर्याप्त नहीं होता है।’ 42 वर्षीय यादव कहते हैं, ‘इतनी भीड़ हो जाती है, लगता है कि कहीं कोई बीमारी ना हो जाए।’
जनसत्ता से साभार