राष्ट्रपति को ज्ञापन : मज़दूर हक़ों पर हमले बंद हों!

मज़दूर संघर्ष अभियान के तहत देश के विभिन्न हिस्सों से भेजे गए ज्ञापन
रुद्रपुर (उत्तराखंड)। मोदी सरकार व राज्य सरकारों की मज़दूर विरोधी नीतियों के खिलाफ मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) की ओर से एक माह के मज़दूर संघर्ष अभियान के तहत देश भर में हस्तक्षर अभियान चला और देश के विभिन्न हिस्सों से ज्ञापन भेजे गए। उसी कड़ी में मासा के घटक इंक़लाबी मज़दूर केंद्र, मज़दूर सहयोग केंद्र व अन्य यूनियनों ने आज जिला प्रशासन के माध्यम से ज्ञापन प्रेषित किया।
देश के अन्य हिस्सों से भी भेजे गए ज्ञापन
इसके साथ ही दिल्ली, हरियाणा, बिहार, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र आदि राज्यों के विभिन्न हिस्सों से मासा के घटक संगठनों द्वारा व्यापक हस्ताक्षर अभियान के साथ स्थानीय प्रशासन के माध्यम से ज्ञापन भेजे गए।
ज्ञापन में 10 सूत्रीय केन्द्रीय माँगों के अलावा विभिन्न स्थानों के अनुरूप स्थानीय माँगें भी शामिल किए गए हैं। कोविड-19/लॉकडाउन के बीच स्थानीय स्थितियों के अनुरूप ज्ञापन 9 अगस्त से 17 अगस्त तक भेजे जाते रहे हैं।
ज्ञापन के माध्यम से राष्ट्रपति महोदय से बहुसंख्यक मेहनतकश जनता के हित में माँगों को गंभीरता से लेने और इन पर रोक लगाने के लिए यथाशीघ्र ठोस एवं प्रभावी क़दम उठाने की माँग हुई।
रुद्रपुर में डीएम के मार्फत भेजा गया ज्ञापन
श्रम कानूनों को निष्प्रभावी बनाने, बढ़ते निजीकरण, बेलगाम छँटनी-बेरोजगारी-महंगाई, प्रवासी व असंगठित मजदूरों पर गहराता संकट, दमन, उत्तराखंड सरकार द्वारा 1000 दिनों के लिए श्रम क़ानूनों को स्थगित करने आदि पर रोक लगाने हेतु 17 अगस्त को विभिन्न यूनियनों और संगठनों की ओर से राष्ट्रपति के नाम भेजे ज्ञापन में 1838 मज़दूरों के हस्ताक्षर हैं।

ज्ञापन में 10 केन्द्रीय माँगों के साथ उत्तराखंड सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों को 1000 दिनों के लिए निलंबित करने और स्थाई आदेश अधिनियम, 1946 के संशोधन प्रस्तावों को तत्काल निरस्त करने व भगवती-माइक्रोमैक्स, वोल्टास, गुजरात अम्बुजा, इन्ट्रार्क, एलजीबी, अमूल ऑटो सहित सभी मज़दूरों की कार्यबहाली सहित समस्त माँगों का निस्तारण की भी माँग शामिल है।
रुद्रपुर में ज्ञापन देने वालों में मज़दूर सहयोग केंद्र, इंक़लाबी मज़दूर केंद्र, एलजीबी, भगवती-माइक्रोमैक्स, एडविक, राकेट रिद्धि सिद्धि, गुजरात अम्बुज, इंटरार्क, ऑटो लाइन आदि के साथी उपस्थित थे।

मज़दूर विरोधी नीतियों का विरोध
भेजे गए ज्ञापन में लिखा है कि यह बड़े ही क्षोभ का विषय है कि तमाम विरोधों के बावजूद देश की केंद्र सरकार व राज्य सरकारों द्वारा श्रम कानूनों को निष्प्रभावी बनाया जा रहा है, केंद्र सरकार द्वारा लम्बे संघर्षों के दरमियान हासिल 44 श्रम क़ानूनी अधिकारों को समाप्त कर चार श्रम संहिताओं में बाँधा जा रहा है, सरकारी क्षेत्रों का तेजी से निजीकरण किया जा रहा है।
कोविड-19 महामारी को कार्पोरेट के हित में ‘अवसर’ में बदलने के कुप्रयासों के साथ मनमाना कार्य-दिवस बढ़ाना, बेलगाम छंटनी-बेरोज़गारी, कमर तोड़ती महँगाई, प्रवासी और असंगठित मज़दूरों के जीवन-आजीविका पर बढ़ते संकट, बिगड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा ने देश के मेहनतकश वर्ग के समक्ष भयावह संकट की स्थिति पैदा कर दी है।
इसके साथ ही सत्ता पक्ष द्वारा युद्धोन्माद और धार्मिक नफ़रत फ़ैलाने का काम चरम पर है और सरकार की जनविरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ आवाज उठाने वालों का दमन तथा जनवादी अधिकारों पर हमले काफी तेज हो गए हैं। इसी क्रम में उत्तराखंड सरकार ने भी 1000 दिनों के लिए श्रम्कनूनो के स्थगन का प्रस्ताव पारित कर दिया है।
ज्ञापन में उठाई गईं माँगें
- श्रम कानूनों में किये गए सभी मज़दूर विरोधी संशोधन तत्काल रद्द किया जाएं। विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा कार्य दिवस 12 घंटे का किये जाने का मज़दूर विरोधी फैसला तुरंत रद्द किया जाए। DA और DR फ्रीज़ करने और PF में कटौती करने का फ़रमान तुरंत वापस लिया जाए।
- न्यूनतम वेतन रु. 25,000 किया जाए। सभी बेरोजगारों को रु. 15,000 मासिक बेरोज़गारी भत्ता दिया जाए।
- लॉकडाउन के पूरे समय के लिए सभी मज़दूरों को पूरा वेतन दिया जाए। लॉकडाउन के चलते बेरोज़गार हुए लोगों को रु. 15,000 प्रति परिवार सरकारी सहायता दी जाए तथा उनके लिए रोज़गार का प्रबंध किया जाए।
- कोरोना संकट के बहाने उद्योगों में लगातार की जा रही छंटनी और वेतन काटे जाने पर तत्काल रोक लगाई जाए। निकाले गए मज़दूर कर्मचारियों को काम पर वापस लिया जाए।
- घर वापस गए प्रवासी मज़दूरों को आर्थिक सहयोग के साथ-साथ उनके गांव में ही उपयुक्त स्वास्थ्य सुविधा और आजीविका का बंदोबस्त किया जाए। उन्हें मनरेगा कार्य दिया जाए। मनरेगा मज़दूरी में वृद्धि कर उसे कम से कम रु. 800 किया जाए तथा साल में प्रति व्यक्ति दो सौ दिन की रोज़गार गारंटी दी जाए। शहरी मज़दूरों के लिए भी रोज़गार गारंटी कानून बनाया जाए।
- सभी स्वास्थ्य कर्मियों और सफाई कर्मियों की सुरक्षा का इंतज़ाम किया जाए। भोजन माता (मिड डे मील), आशा और आंगनवाड़ी कर्मियों को ‘कर्मचारी’ का दर्जा देकर सभी सुविधाएं दी जाएं।
- निजीकरण और ठेकेदारी प्रथा पर तत्काल रोक लगाई जाए।
- पेट्रोल, डीज़ल व रसोई गैस के दाम कम किये जाएं। बस व रेल का किराया घटाकर कम से कम 2014 की दरों पर लिया जाए।
- सब के लिए कोरोना टेस्ट व संक्रमित व्यक्तियों का इलाज निःशुल्क करवाया जाए। इसके लिए निजी अस्पतालों का अधिग्रहण करके उनका राष्ट्रीयकरण किया जाए।
- विरोध करने के लोकतांत्रिक अधिकार पर हमला, अंध-राष्ट्रवाद के आधार पर युद्धोन्माद फ़ैलाना और धर्म-जाति और क्षेत्र के आधार पर विभाजन और नफ़रत पैदा करने की राजनीति बंद की जाए। यूएपीए जैसे काले कानून रद्द किये जाएं। फर्जी मुकदमों में गिरफ्तार किये राजनीतिक कैदियों व सभी सीएए विरोधी आंदोलनकारियों को रिहा किया जाए और राजनीतिक विद्वेश से लगाये गये राष्ट्रद्रोह के मुक़दमें निरस्त किये जाएं।
- उत्तराखंड सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों को 1000 दिनों के लिए निलंबित करने और स्थाई आदेश अधिनियम, 1946 के संशोधन प्रस्तावों को तत्काल निरस्त किया जाए। भगवती-माइक्रोमैक्स, वोल्टास, गुजरात अम्बुजा, इन्ट्रार्क, एलजीबी, अमूल ऑटो सहित सभी मज़दूरों की कार्यबहाली सहित समस्त माँगों का निस्तारण किया जाए।