मज़दूर विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ ‘मज़दूर पंचायत’

पंचायत में उठी आवाज़- मज़दूर अधिकारों पर हमले नहीं सहेंगे!
लुधियाना (पंजाब)। 8 नवम्बर को कारखाना मज़दूर यूनियन व टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन की ओर से मज़दूर पंचायत हुई और मज़दूरों पर बढ़ते हमलों व मज़दूर विरोधी कानूनों की खुली मुख़ालफ़त हुई। पंचायत के बाद ताजपुर रोड पर पैदल मार्च निकला।
मज़दूर पंचायत लुधियाना के मज़दूरों की ई.डब्ल्यू.एस. कालोनी, ताजपुर रोड पर हुई, जिसमें बडी संख्या में औद्योगिक मज़दूरों ने भागेदारी की। कार्यक्रम की शुरुआत ‘नई सवेर पाठशाला’ के बच्चों द्वारा क्रांतिकारी गीत व नाटक से हुई।

इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि कोरोना की आड़ में हुए लॉकडाउन ने मज़दूरों की कमर तोड़ दी है, ऊपर से मंहगाई और छँटनी की वजह से मज़दूर भारी मुसीबतें झेल रहे हैं। आमदनी तो क्या बढ़नी थी उल्टा कारखाना मालिक वेतन/पीस रेट कम करा रहे हैं। जिससे मज़दूरों पर काम का बोझ बढ़ गया है, 12-14 घंटे खटने के बाद भी घर का गुजारा चलाने लायक आमदनी नहीं हो रही है।
मज़दूर पँचायत में अपनी माँगे बुलंद हुईं- न्यूनतम वेतन 25 हज़ार, पीस रेट/दिहाड़ी उसी के हिसाब से बढाया जाना जरूरी है। आठ घंटे कार्यदिवस लागू हो। स्त्री मज़दूरों को पुरुष मज़दूरों के बराबर वेतन लागू हो। कोरोना लॉकडाउन के बहाने वेतन, पीस रेट, दिहाड़ी में नाजायज कटौती रद्द हो। कारखानों में हादसों व बिमारियों से मज़दूरों की सुरक्षा का प्रबंध हो।
श्रम कानूनों में मज़दूर विरोधी संशोधन रद्द हों। श्रम अधिकारों का उलंघन करने वाले पूँजीपतियों को सख्त से सख्त सजाएँ दो। कारखानों व अन्य कार्यस्थलों पर मज़दूरों का शोषण-उत्पीड़न बंद होना चाहिए।

वक्ताओं ने कहा कि मज़दूरों को अपने अधिकारों के बारे में जानकारी होना ज़रूरी है तभी अपनी मांगों के बारे में संघर्ष करके उन्हें प्राप्त किया जा सकता है। आज जब सभी मज़दूरों को श्रम कानूनों के अनुसार अधिकार मिलने चाहिए तब केंद्र की मोदी सरकार व राज्य की कैप्टन सरकार श्रम कानूनों में मज़दूर विरोधी संशोधन करके मज़दूरों के अधिकारों पर डाके डाल रही है।
मोदी हुकूमत ने पुराने 29 श्रम कानूनों को खत्म करके श्रम कोडों के रूप में 4 नए कानून बनाए हैं। इनमें आठ घंटे कार्यदिवस, न्यूनतम वेतन, यूनियन बनाने, हड़ताल करने, श्रम विभाग के जरिए कानूनी कार्रवाई करवाने आदि अधिकारों पर बड़ा हमला बोला गया है। श्रम कानूनों का उल्लंघन करने वाले पूंजीपतियों पर दंड में कमी की गई है।
विभिन्न राज्य सरकारों को मज़दूर विरोधी नियम बनाने के लिए छूट दी गई है। राज्य सरकारों द्वारा अपने तौर पर भी मज़दूरों के खिलाफ़ श्रम कानून बनाए जा रहे हैं।

यह पंचायत माँग करती हैं कि केंद्र की मोदी हुकूमत, पंजाब की कांग्रेस सरकार और अन्य राज्य सरकारें मज़दूरों के कानूनी श्रम अधिकारों पर हमले बंद करें, श्रम कानूनों में मज़दूर विरोधी बदलाव रद्द हों। श्रम कानूनों में मज़दूरों के पक्ष में बदलाव किए जाएँ। पंचायत में पहुँचे तमाम मज़दूर केंद्र व राज्य सरकार के मज़दूर विरोधी हमलों के खिलाफ़ जोरदार संघर्ष का संकल्प लिया।
वक्ताओं ने कहा कि कारखाना मालिक महिलाओं से पुषों के बराबर काम लेते हैं पर वेतन बहुत कम देते हैं, यह सरासर बेन्साफी है। यह भेद भाव बन्द होना चाहिये।

पंचायत को टेक्सटाइल हौज़री कामगार युनियन की ओर से राजविंदर, घनश्याम पाल, धर्मेश, कारखाना मज़दूर युनियन की ओर से लखविंदर, जसमीत, तेजू, विमला, नौजवान भारत सभा की तरफ से नवजोत और नमिता व अन्य वक्ताओं ने संबोधित किया।
पंचायत की तरफ़ से श्रम कानूनों में संशोधन के खिलाफ, मज़दूरों की जाएज मांगों को लागू करवाने, कृषि कानून नया बिजली कानून रद्द करवाने और भाजपा हकूमत द्वारा सीएए, एनआरसी जैसे काले कानूनों को लागू करने की बातों की भर्त्सना करते हुए इसे रद्द करने के मत को पँचायत में शामिल मज़दूरों ने हाथ उठाकर पास किए।

पंचायत के बाद मज़दूरों ने ताजपुर रोड पर पैदल मार्च निकाला।
मंच संचालन जगदीश ने किया। गावीश व साथियों ने क्रांतिकारी गीतों की प्रस्तुति की। ज़ोरदार नारों के साथ संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प लेकर पँचायत का समापन हुआ।