प्रतिरोध : एक माह के ‘मज़दूर संघर्ष अभियान’ और 9 अगस्त को देशव्यापी विरोध दिवस की घोषणा
मासा के ऑनलाइन कन्वेंशन में कोविड-19 संकट से मेहनतकश जनता पर पड़े गंभीर प्रभावों, मज़दूर वर्ग पर तेज होते हमलों और उसके ख़िलाफ़ एकजुट संघर्ष तेज करने पर गहन चर्चा हुई। साथ ही 9 जुलाई से 9 अगस्त तक एक माह के ‘मज़दूर संघर्ष अभियान’ की घोषणा हुई। फेसबुक पर लाइव कन्वेंशन का विषय था : ‘कोरोना संकट और मज़दूर आंदोलन की चुनौतियां और संभावना’।
9 जुलाई को देश के संघर्षशील 15 श्रमिक संगठनों और ट्रेड यूनियन महासंघों के संयुक्त मंच ‘’मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) के इस कन्वेंशन (सम्मेलन) का का संचालन कॉमरेड संजय सिंघवी (महासचिव, TUCI) ने किया।
मासा के घटक संगठनों के प्रमुख साथियों ने मज़दूर वर्ग के सामने खड़ी चुनौतियों, विशेष रूप से कोविड-19 महामारी और अनियोजित राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से मेहनतकश जनता के समक्ष पैदा गंभीर संकट, कठिन जीवन स्थितियों और भयावह हो गई परिस्थितियों के विभिन्न पहलुओं और चुनौतियों पर विमर्श हुआ।

सम्मेलन में कॉम. सोमनाथ (जन संघर्ष मंच हरियाणा) ने ग्रामीण, खेतिहर, मनरेगा और निर्माण श्रमिकों की स्थितियों के बारे में चर्चा की। उन्होंने बताया कि मनारेगा क़ानून और नियमों का कहीं कोई पालन नहीं होता रहा है। सबको काम, समय से वेतन और काम नहीं तो भत्ता केवल कागजी बात बन गई है। कोरोना/लॉकडाउन के हालत की चर्चा के साथ कहा कि अभी भारी संख्या में प्रवासी मज़दूरों की वापसी और सबको काम देने की घोषणा कागजी बनकर रह गई है।
कॉम. एसवी राव (IFTU) ने सार्वजनिक क्षेत्र के तेज होते निजीकरण पर बात रखते हुए कहा कि मोदी सरकार द्वारा लागू किया जा निजीकरण, जिसमें कोयला क्षेत्र भी शामिल है, देश की सम्म्पत्तियों को बेचा जा रहा है। उसने तमाम विरोधों के बावजूद महामारी की आड़ में वाणिज्यिक खनन के कार्यान्वयन के लिए 41 कोयला ब्लॉकों की नीलामी का फरमान दे दिया है। जिसके ख़िलाफ़ कोयला क्षेत्र के श्रमिकों की 3 दिन की हड़ताल सफल रही।
कॉम अमरीश पटेल (ट्रेड यूनियन सेंटर ऑफ इंडिया) ने 2014 में भाजपा सरकार द्वारा सत्ता में आने के साथ मज़दूर विरोधी और पूँजी-समर्थक श्रम कानूनी अधिकारों पर बढ़ाते हमलों पर चर्चा की। उन्होंने 44 श्रम कानूनों को समाप्त कर 4 श्रम संहिता लाने, भाजपा और गैर भाजपा विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा मज़दूरों के क़ानूनी अधिकारों को ध्वस्त करने और कार्यदिवस को 8 से 12 घंटे बढ़ाने की कुनीतियों को उजागर किया।
कॉम. मल्लीगे (कर्नाटक श्रमिका शक्ति) ने प्रवासी और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के जीवन में अभूतपूर्व संकट पर बात की, जिनकी आजीविका के स्रोत लॉकडाउन अवधि में ध्वस्त हो गए थे और जिन्हें अपने गाँवों तक पहुँचने के लिए सैकड़ों और हज़ारों किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ा। उन्होंने तमाम त्रासदियों की चर्चा के साथ बताया कि इन परिस्थितियों में असल में मज़दूर वर्ग ही लॉकडाउन हो गया है।
कॉम. मुकुल (मजदूर सहयोग केंद्र, उत्तराखंड), ने औद्योगिक कामगारों के मौजूदा हालात पर बात की और बताया कि कैसे लॉकडाउन ने मज़दूरों को अधिकार विहीन बना दिया है। बड़ी संख्या में मज़दूर वेतन में कटौती या बिना वेतन भुगतान के साथ-साथ अथक छंटनी-बंदी का सामना कर रहे हैं। मज़दूरों के वेतन बढ़ाने की जगह उनकी वेतन कटौती ही बढ़ रही है।
सम्मलेन में सिद्धांत (IFTU सर्वहारा), अमिताव (SWCC), अशोक (ग्रामीण मजदूर यूनियन), ओपी सिन्हा (AIWC), केके सिंह (मज़दूर सम्न्यव्य केंद्र) और अमित (मज़दूर सहयोग केंद्र, गुड़गांव) ने मज़दूर वर्ग के हालत, स्थितियों और नए संघर्ष की तैयारियों पर बात बात की।

वक्ताओं ने श्रम कानूनों को कमजोर करने, 12 घंटे कार्यदिवस, निरंतर छंटनी और बेरोजगारी, प्रवासी और असंगठित श्रमिकों की आजीविका संकट, निजीकरण में वृद्धि, सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र और सामाजिक सुरक्षा को बिगड़ने आदि को उठाते हुए मोदी सरकार की तीखी आलोचना की।
वक्ताओं ने कहा कि भाजपा सरकार वास्तविक मुद्दों और तीव्र संकट से जनता का ध्यान हटाने के प्रयास में जुटी हुई है और सांप्रदायिक घृणा फैला रही है, जिसमें विपक्षी कांग्रेस पार्टी भी उलझी हुई है। इसके साथ ही, फासीवाद के बढ़ते खतरे और लोकतांत्रिक अधिकारों पर अथक हमलों, यूद्धोन्मद के हालत पर भी चर्चा हुई। वक्ताओं ने फासीवादी ताकतों को हराने के लिए मज़दूर वर्ग के आंदोलन की एकजुटता की जरूरत पर जोर दिया।
कन्वेंशन में मज़दूर वर्ग पर बढ़ते हुए नव-उदारवादी हमलों के खिलाफ, श्रमिक वर्ग के एक क्रांतिकारी केंद्र के गठन को और मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा गया गया कि विकट संकट के इस दौर में ऐसे केंद्र की ज्यादा अहमियत है, जो रस्मी कवायदों और टोकन आन्दोलन की जगह एक निरंतर, जुझारू और निर्णायक संघर्ष तेज करने के लिए आगे आए।
एक माह का ‘मज़दूर संघर्ष अभियान’ व 9 अगस्त को देशव्यापी विरोध दिवस
सम्मलेन के अंत में, मासा ने औपचारिक रूप से 9 जुलाई से एक महीने के ‘मजदूर संघर्ष अभियान’ की शुरुआत की घोषणा की, जिसमें घटक संगठन श्रमिकों और आम जनता के बीच जमीनी स्तर पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करेंगे। इसके तहत पैम्फलेट-पोस्टर अभियान, हस्ताक्षर अभियान, सार्वजनिक बैठक, श्रम कानून कार्यशाला, पुस्तिकाओं का प्रकाशन सहित विभिन्न माध्यमों से अभियान संचालित होगा।
9 अगस्त, भारत छोडो आन्दोलन दिवस, पर ‘अखिल भारतीय विरोध दिवस (ऑल इंडिया प्रोटेस्ट डे) के साथ अभियान का यह चरण समाप्त होगा।
कन्वेंशन का निष्कर्ष निकलते हुए कॉम. संजय सिंघवी ने कहा कि मासा ना केवल मज़दूर वर्ग के बुनियादी आन्दोलन को तेज करने के लिए, अपितु श्रमिक वर्ग के क्रांतिकारी नेतृत्व को एकजुट करने के लिए, उनकी संग्रामी एकता बनाने और मज़दूर वर्ग सहित समाज के दबे-कुचले समस्त मेहनतकश आवाम पर बढ़ते हमलों की मुखालफ़त के साथ उनकी मुक्ति के लिए पूँजीवादी-साम्राज्यवादी लूट के खिलाफ संघर्ष को आगे बढ़ाएगा।
भागीदार संगठन
कन्वेंशन के भागीदार मासा के घटक संगठन : आल इण्डिया वर्कर्स काउंसिल (AIWC); ग्रामीण मजदूर यूनियन, बिहार; इन्डियन काउंसिल ऑफ़ ट्रेड यूनियंस (ICTU); इंडियन फेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियंस (IFTU); IFTU सर्वहारा; इंकलाबी केंद्र, पंजाब; इंकलाबी मजदूर केंद्र (IMK); जन संघर्ष मंच हरियाणा; कर्नाटक श्रमिका शक्ति; मज़दूर सहयोग केंद्र, गुड़गांव-बावल; मज़दूर सहयोग केंद्र, उत्तराखंड; मज़दूर समन्यव केंद्र; सोशलिस्ट वर्कर्स सेंटर (SWC) तमिलनाडु; स्ट्रगलिंग वर्कर्स कोआर्डिनेशन कमेटी (SWCC), पश्चिम बंगाल; ट्रेड यूनियन सेंटर ऑफ इंडिया (TUCI)।