महाराष्ट्र: सेप्टिक टैंक की सफाई में तीन मजदूरों की मौत

नरक भोगती ज़िन्दगी जीने और मरने को कबतक अभिशप्त रहेंगे सफाई मज़दूर?
पालघर (महाराष्ट्र)। सीवर में सफाई के दौरान मौत का सिलसिला जारी है। ताजा घटना में महाराष्ट्र जिले के विरार कस्बे में एक बंगले में सेप्टिक टैंक की सफाई कर रहे तीन मज़दूरों की दम घुटने से दर्दनाक मौत हो गई। तीनों मृतक मज़दूरों की उम्र 20 से 25 साल के बीच थी। पुलिस के अनुसार मज़दूरों को पर्याप्त सुरक्षा उपकरण भी मुहैया नहीं कराए गए थे।
जानकारी के अनुसार 17 अप्रैल को एक बंगले के मालिक हेमंत घराट ने सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए चार मज़दूर लगाए थे, जिनमें से तीन मजदूरों की विषैली गैस से दम घुटने के कारण मौत हो गई। आरोपी घराट ने ही मजदूरों को पास के अस्पताल पहुँचाया, जहाँ चिकित्सकों ने तीन को मृत घोषत कर दिया। जीवन-मरण के बीच एक मज़दूर का उपचार चल रहा है।
पुलिस के मुताबिक मजदूरों को उचित सुरक्षा उपकरण मुहैया नहीं कराए गए थे और आरोपी ने उनकी सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किए थे। पुलिस ने बंगले के मालिक हेमंत घराट के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया है।
मृतकों की पहचान नारायण बोए, जयेन्द्र मुकने और तेजस भाटे के तौर पर की गई है। सभी की उम्र 20 से 25 साल के बीच है। जबकि नितेश मुकने इसलिए बच गया क्योंकि वह टैंक के अंदर नहीं गया था।
सफाई कर्मियों की मौत का सिलसिला जारी है
ज्ञात हो कि बीते साल दिसंबर में मुंबई के गोवंडी उपनगर इलाके में एक आवासीय सोसायटी के सेप्टिक टैंक में सफाई के दौरान तीन मजदूरों की मौत हो गई थी। तीन मजदूर विश्वजीत देवनाथ (32), संतोष प्रभाकर कलसेकर (45) और गोविंद संग्राम छोरटिया (34) सैप्टिक टैंक की सफाई करने के लिए घुसे और अंदर ही फंस गए थे। तब स्लम रिहेबिलिटेशन अथॉरिटी की 22 मंजिला इमारत मौर्या सोसायटी के कोषाध्यक्ष पवन विश्वनाथ पालव को गिरफ्तार किया गया था।
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) के अनुसार 1993 से लेकर अब तक दिल्ली में सीवर की सफाई करने के दौरान 64 लोगों की मौत हुई। पिछले दो साल में इस तरह के काम में 38 लोगों की जान गई।
जबकि इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक ये आंकड़े 1993 से नहीं बल्कि 2003 से लेकर अब तक के हैं। पिछले साल अखबार ने एनसीएसके अध्यक्ष मनहर वालजीभाई जाला का उल्लेख करते हुए लिखा, ‘दिल्ली में मार्च 2017 से लेकर अब तक में 38 कर्मचारियों की सीवर सफाई के दौरान मौत हुई है। अगर 2003 से आंकड़े देखते हैं तो ये संख्या 64 पर पहुँच चुकी है।’ जाला ने दावा किया कि दिल्ली सरकार ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम 2013’ को लागू नहीं कर रही है।
क़ानूनी प्रावधान महज कागजों में
18 सितंबर 2013 को अमल में लाए गए मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में उतारना पूरी तरह से ग़ैर-क़ानूनी है।
अगर किसी व्यक्ति को सीवर में भेजकर सफ़ाई करवाना मजबूरी है तो इसके कई नियमों का पालन करना होता है। सबसे पहले तो सीवर में उतरने के लिए इंजीनियर की अनुमति लेने होती है और मज़दूर को सफ़ाई के दौरान ज़रूरी ख़ास सूट, ऑक्सीजन सिलेंडर, मास्क, गम शूज़, सेफ़्टी बेल्ट मुहैया करना होता है। सीवर के पास एंबुलेंस भी खड़ी होनी चाहिए।
स्थिति यह है कि कहीं भी इसका अनुपालन नहीं होता है, सरकारी क्षेत्र में भी नहीं।
सीवर में मौतों से किसी की नही हुई है सजा
आंकड़े बताते हैं कि हर पांच दिन में एक मज़दूर की जान सीवर सफाई के दौरान चली जाती है। कई बार ऐसा हुआ है कि एक मज़दूर पहले जहरीली गैस की चपेट में आता है, फिर उसे बचाने में दूसरों की भी जान चली जाती है।
हाल की एक रिपोर्ट के मुताबिक सीवर में मौतों के मामले में एक भी व्यक्ति को सज़ा नहीं हुई है।
हादसे नहीं, ये हत्याएं हैं
यह बेहद भयावह है कि समाज का सबसे उपेक्षित तबका अपनी ज़िन्दगी को दांव पर लगाकर सबसे उपेक्षित काम करने को मजबूर है, वह भी बगैर किसी सुरक्षा उपकरण के। खाए पिये-अघाए लोगों के लिए तो मेहनतकश का यह तबका आज भी अछूत बना हुआ है।
दूसरी ओर सारे ढिंढोरे पीटने वाली सरकारें उन्हें जीवन की गारंटी देना तो दूर, सामान्य सुविधाएँ भी देने को तैयार नहीं हैं। इस तरह ये हादसे नहीं, हत्या हैं!