मध्य प्रदेश: आंदोलन की राह पर आशा कार्यकर्ता; मानदेय वृद्धि और नियमितीकरण की माँग

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सरकार पर वायदा खिलाफी का लगाया आरोप। आशा-ऊषा कार्यकर्ताओं का नारा है- जो जीने लायक वेतन दे ना सके, वो सरकार निकम्मी है और जो सरकार निकम्मी है, वो सरकार बदलनी है।

मध्य प्रदेश में एक बार फिर आशा-ऊषा कार्यकर्ता सड़कों पर हैं। 15 मार्च से अनिश्चितकालीन धरना जारी है। इसी कड़ी में 5 अप्रैल को इन कार्यकर्ताओं ने प्रदेशभर में महारैली का आयोजन किया, जिसमें सरकार के प्रतिनिधियों का घेराव भी शामिल था।

ज्ञात हो कि बीते लंबे समय से मध्य प्रदेश में आशा और ऊषा कार्यकर्ता स्थाईकरण औऱ मानदेय बढ़ाने व न्यूनतम वेतन की मांग को लेकर संघर्षरत हैं। मध्य प्रदेश आशा-ऊषा सहयोगिनी श्रमिक संघ के बैनर तले चल रहे इस अनिश्चितकालीन धरने की शुरुआत 15 मार्च को हुई थी।

काम के बदले उचित दाम श्रमजीवी महिलाओं का हक़

आन्दोलनरत महिलाओं का कहना है कि साल 2021 में जारी आश्वासन के बावजूद अब तक सरकार ने इस ओर कोई पहल नहीं की है, ना ही अब तक सरकार का कोई प्रतिनिधि या नेता उनसे मिलने आया है। पार्टियों को वोट तो चाहिए, लेकिन मेहनतकश महिलाओं को उनकी मेहनताना नहीं देना चाहती।

महिलाओं का कहना है कि प्रदेश में आशा-ऊषा कार्यकर्ताओं को कड़ी मेहनत के बावजूद बेहद कम वेतन पर गुजारा करना पड़ रहा है। अधिकांश आशा कार्यकर्ता केवल 2 हजार रूपए मासिक मानदेय पर काम कर रही है। काम के बदले दाम कामकाजी महिलाओं का हक़ है, जिसे सरकार नज़रअंदाज कर रही है।

आशा और ऊषा कार्यकर्ताओं का नारा है कि जीने लायक वेतन जो दे ना सके, वो सरकार निकम्मी है और जो सरकार निकम्मी है, वो सरकार बदलनी है।

उनका कहना है कि वे विभिन्न लोगों और स्वास्थ्य प्रणाली के बीच एक कड़ी का काम करती हैं। कोरोना काल में भी हमने अपनी जान पर खेल कर लोगों की जानें बचाई हैं। लेकिन तब शाबाशी देने वाली सरकार के पास अब हमारे लिए कुछ नहीं है। सरकार की दिलचस्पी न तो हमें स्थायी श्रमिकों के रूप में मान्यता देने में है और न ही हमें न्यूनतम वेतन देने में है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत 2005 से भर्ती

गौरतलब है कि साल 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत स्वास्थ्य सुविधाओं को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से आशा कार्यकर्ताओं की भर्ती की जाती है। वहीं सहयोगिनी की भूमिका आशा कार्यकर्ताओं की निगरानी और उनका मार्गदर्शन करना है। इनकी ज़िम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग को आशा कार्यकर्ताओं के किये गये कार्यों की प्रगति की रिपोर्ट करने की भी होती है।

बेहद मामूली मानदेय पर पूरा काम

साल 2018 से पहले ये सभी कार्यकर्ता केवल 1,000 रूपए मासिक पारिश्रमिक लेती थीं। इसके अलावा इन्हें जननी सुरक्षा योजना, गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल (HBNC), आदि जैसे अतिरिक्त कार्यों के आधार पर प्रोत्साहन राशि मिलती है।

जानकारी के मुताबिक आशा कार्यकर्ताओं को महामारी के दौरान किये गये उनके सभी कार्यों के लिए उनके इस मासिक मानदेय 2,000 रुपये के अलावा उन्हें 1,000 रुपये की मामूली राशि का भी भुगतान किया गया है।

न्यूनतम वेतन व कर्मकार का दर्जा दो

मध्यप्रदेश आशा कार्यकर्ताओं की मांगों में स्थायी कर्मचारियों के रूप में मान्यता दिये जाने और मानदेय के बदले 18,000 रुपये प्रति माह नियमित वेतन दिये जाने की मांगें शामिल थीं। यह राशि सातवें वेतन आयोग के मुताबिक़ केंद्र सरकार के कर्मचारियों को दिये जाने वाला शुरुआती वेतन मानदंड है।

फिलहाल आशा कार्यकर्ता अपनी नियमित गतिविधियों के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत 2000 रुपये प्रति माह के मासिक मानदेय की हक़दार हैं।

2021 में आंदोलन और सरकारी आश्वासन

उल्लेखनीय है कि साल 2021 में आशा और ऊषा कार्यकर्ताओं द्वारा राजधानी भोपाल में बड़ा प्रदर्शन किया था। उसके बाद  24 जून 2021 को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की निदेशक आशा कार्यकर्ताओं को प्रति माह 10,000 रुपये के मानदेय का प्रस्ताव देने और राज्य सरकार और यूनियनों को इस प्रस्ताव के भेजे जाने पर सहमत हुई थीं। साथ ही पर्यवेक्षकों का मानदेय 15 हजार रुपए करने का आश्वासन दिया था।

उन्होंने इस शर्त पर मानदेय में बढ़ोत्तरी किये जाने का भी वादा किया था कि उनके कार्य दिवस 25 दिन से बढ़ाकर 30 दिन कर दिए जायेंगे। उन्होंने ड्यूटी के दौरान कोविड-19 के कारण मरने वाली आशा कार्यकर्ताओं के परिवारों को 50 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का भी वादा किया था।

लेकिन बीते दो साल में इस पर सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। ऐसे में उन्हें दोबारा आंदोलन करने व सड़कों पर उतारने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

माँगें पूरी होने तक आंदोलन रहेगा जारी

आशा-ऊषा सहयोगिनी श्रमिक संघ ने चेतावनी दी है कि अगर अब भी सरकार ने आशा-ऊषा कार्यकर्ताओं की बात नहीं सुनी तो प्रदर्शन और तेज़ किया जाएगा। ये आंदोलन तब तक चलाया जाएगा तब सरकार द्वारा मांगे पूरी नहीं कर दी जाती।

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