लुधियाणा: मार्शल मशीन्स के मज़दूरों की 41 दिन से जारी हड़ताल अहम प्राप्तियों के साथ समाप्त

लुधियाणा में लंबे समय के बाद हुई मज़दूरों की 41 दिनी जुझारू हड़ताल के जरिए ग्रेच्युइटी, बकाया वेतन, बोनस, छुट्टियाँ आदि बकाया हासिल करने में मज़दूरों को कामयाबी मिली है।
लुधियाणा (पंजाब)। सी.एन.सी. खराद मशीनें बनाने वाली कंपनी मार्शल मशीन्स लिमिटड (लुधियाणा) के मज़दूरों की कारख़ाना मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में हड़ताल 19 दिसंबर की रात करीब 8 बजे समाप्त हो गई है। 9 नवंबर 2023 से शुरू हुई इस हड़ताल में मजदूर जुझारू ढंग से डटे रहे। मज़दूरों को झुकाने की मालिकों की तमाम साजिशें नाकाम कर दी गईं।
यूनियन ने जारी विज्ञप्ति में बताया कि 8 नवंबर को कंपनी ने 5 मज़दूर नेताओं को काम से निकाल दिया था। इसके बाद 9 नवंबर की दोपहर से मज़दूर नेताओं की बहाली, वेतन वृद्धि, बोनस अदायगी, हाज़िरी का सही रिकार्ड बनाने की माँगों तले कंपनी के करीब 90 में से 73 मज़दूर हड़ताल पर चले गए थे और उत्पादन का काम पूरी तरह से ठप्प कर दिया था।
हड़ताल के दौरान जब यह स्पष्ट हो गया कि कंपनी मालिक-मैनेजमैंट उनकी ये माँगें नहीं मानेंगे तो मज़दूरों ने 26 नवंबर को ऐलान किया कि या तो उनकी माँगें मानी जाएँ या उनके वेतन, ग्रेच्युइटी, बोनस, छुट्टियों आदि का सारा बकाया दे दिया जाए।
हड़ताल में डटे रहे कुछ मज़दूरों को कंपनी ने वेतन वृद्धि का लालच दिया, 20 के करीब मज़दूरों को कारण बताओ नोटिस और आरोप पत्र जारी किए गए, सभी मज़दूरों को सख्त कार्रवाई करने के नोटिस भेजे गए, भारी जुर्माने लगाने की धमकियाँ दी गईं। लेकिन इस सबके बावजूद मज़दूर हड़ताल में डटे रहे और अंत में कंपनी को झुकना पड़ा।

हड़ताल में डटे रहे 60 मज़दूरों को क़ानून के मुताबिक ग्रेच्युइटी, बकाया वेतन, बोनस, छ्ट्टियाँ आदि का पैसा देना पड़ा है। हड़ताल की यह प्राप्ति इसलिए महत्वपूर्ण है क्यों कि मज़दूरों ने अपनी 20-20, 25-25 साल की नौकरी के दौरान देखा है कि नौकरी छोड़ने वाले या नौकरी से निकाले गए मज़दूरों को कभी भी बकाया वेतन, ग्रेच्युइटी, बोनस, छुट्टियों आदि का भुगतान नहीं दिया गया।
कंपनी की आर्थिक स्थिति कोरोना लॉकडाउन के बाद काफी बुरी हालत में रही है। जहाँ एक महीने में 40-40 मशीनें बनती रही हैं वहाँ अब यह संख्या काफ़ी कम हो गई है। पिछले साल के दौरान तो यह संख्या 1-2 मशीनों से लेकर 7-8 मशीनों तक रही है। मंदी का सारा बोझ मज़दूरों पर डाला जाता रहा है। वेतन वृद्धि नहीं दी गई है और उनका दो-दो, तीन-तीन महीनों का वेतन रोका जाता रहा है।
कंपनी की इस हालत और मालिक-मैनेजमैंट के मज़दूर विरोधी रवैये से तंग आकर पिछले 3-4 सालों के दौरान करीब 300 मज़दूर या तो नौकरी छोड़कर चले गए हैं या अनेकों को नौकरी से निकाल दिया गया है। लेकिन उन्हें बकाया ग्रेच्युइटी, बोनस, छुट्टियों आदि का पैसा तो दूर की बात है, 2-2, 3-3 महीनों का बकाया वेतन भी नहीं दिया गया है।
यूनियन ने बताया कि ऐसी हालत में संघर्ष के जरिए ग्रेच्युइटी, बकाया वेतन, बोनस, छुट्टियाँ आदि का बकाया हासिल करना मज़दूरों की एक बड़ी प्राप्ति है। गौरतलब है कि हड़ताल न करने वाले और हड़ताल छोड़कर गए मज़दूरों में से कुछ मज़दूरों ने भी हड़ताल के समय के दौरान नौकरी छोड़ दी है लेकिन उन्हें हिसाब नहीं मिला है।
इनमें से ज्यादातर मज़दूर कंपनी में फरवरी 2023 में यूनियन बनने से पहले नौकरी छोड़ना चाहते थे लेकिन यूनियन बनने से हर महीने वेतन की अदायगी शुरू होने के चलते वे नौकरी करते रहे। फरवरी 2023 में यूनियन बनने के बाद हर महीने 10 तारीख तक वेतन अदायगी की माँग मनवाई गई। डेढ़ साल से दबाया गया ईपीएफ का भुगतान करवाया गया, ईपीएफ और ईएसआई से वंचित मज़दूरों को यह अधिकार मिले। सैलरी स्लिप लागू हुई। ‘मार्शल मशीन्स मज़दूर यूनियन, पंजाब’ नाम से यूनियन की रजिस्ट्रेशन करवाने में कामयाबी मिली।
यूनियन ने कहा कि मज़दूरों को उम्मीद थी कि शायद कंपनी मंदी की हालत से निकल आए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मंदी की हालत जारी रहने, यूनियन तोड़ने के लिए नेताओं को निकाले जाने, वेतन वृद्धि लागू न होने, हड़ताल की प्राथमिक माँगें मनवाने के लिए ज़रूरी ताकत न जुटा पाने आदि के चलते मज़दूरों को नौकरी छोड़ने के फैसले पर पहुँचना पड़ा।
कारखाना मज़दूर यूनियन ने बताया कि मज़दूर नेताओं को नौकरी से निकाले जाने के कारण मज़दूरों को हड़ताल पर जाना पड़ा था। लेकिन मंदी की हालत के दौरान मज़बूरीवश की गई इस हड़ताल की प्राथमिक माँगें मनवाने (नेताओं की नौकरी पर बहाली आदि) के लिए ज़रूरी ताकत मज़दूरों को हासिल नहीं हो पाई।
एक तो, मंदी के दौरान काम ठप्प पड़ने का मालिक पर कम असर था। दूसरा हड़ताली मज़दूरों की संख्या कम थी जिसके चलते सरकारी ढाँचे पर जरूरी दबाव नहीं बन पाया। अन्य कारखानों के मज़दूरों से ज़रूरी सक्रिय समर्थन हासिल नहीं हो पाया। अन्य कारख़ानों के मालिकों भी इलाके में मज़दूरों की जुझारू-इमानदार यूनियन की मौजूदगी को सहन नहीं कर सकते थे, इसलिए बिना शक, उन्होंने भी मार्शल मशीन्स मज़दूर यूनियन के खात्मे के लिए ज़ोर लगाया है।
यूनियन ने कहा कि इन कारणों से मालिक-मैनेजमैंट का पलड़ा भारी रहा है और हड़ताली मज़दूर अपनी प्राथमिक माँगें नहीं मनवा पाए और एक क़दम पीछे हटकर हिसाब लेने की माँग पर लड़ाई लड़नी पड़ी जिस पर उन्होंने कामयाबी भी हासिल की है।

यूनियन ने बताया कि इस हड़ताल की सबसे बड़ी प्राप्ति मज़दूरों का डटकर लूट-शोषण और अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष करना और इस दौरान प्राप्त की गई चेतना है। फरवरी 2023 से हड़तालों और अन्य रूपों में लड़े गए संघर्ष और इस हड़ताल के दौरान मज़दूरों ने कारख़ाना मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में जनवादी, योजनाबद्ध और जुझारू ढंग से संघर्ष करना सीखा है।
मज़दूरों ने देखा है कि कैसे सारा राजनीतिक/सरकारी ढाँचा पूँजीपतियों के पक्ष में खड़ा है, कि उनके पास एकजुट होकर संघर्ष करने के सिवाय अन्य कोई रास्ता नहीं है। कांग्रेसियों, अकालियों, भाजपाइयों और अन्य पूँजीवादी पार्टियों तो परेशान मज़दूरों ने आम आदमी पार्टी का मज़दूर विरोधी चरित्र भी अच्छे से समझा है।
लुधियाणा में बहुत लंबे समय के बाद मज़दूरों की योजनाबद्ध, जुझारू और लंबी हड़ताल हुई है। 41 दिनों की इस हड़ताल के दौरान विभिन्न मज़दूर बस्तियों में पर्चों, नुक्कड़ सभाओं, पैदल मार्चों आदि के जरिए मज़दूरों के मसले उभारे गए, समर्थन की अपील की गई। इसका असर इस रूप में भी देखने को मिला है कि अन्य मज़दूरों को लाकर हड़ताल नाकाम करने की मालिकों की कोशिश कामयाब नहीं हो पाई बल्कि जो मज़दूर हड़ताल में शामिल नहीं हुए थे उनमें से भी कुछ काम छोड़कर चले गए।
मार्शल मशीन्स लिमिटड के मालिकों के सामने न झुकने और अनेकों प्राप्तियाँ के गर्व के साथ, कारख़ाना मज़दूर यूनियन के जुझारू झंडे को बुलंद रखने, संघर्ष के दौरान प्राप्तियों-अप्राप्तियों, कमियों-कमज़ोरियों के सबकों को अपनाकर आने वाले समय में मज़दूर संघर्ष की चिंगारियाँ अन्य कारख़ानों में फैलाने का संकल्प लेकर मज़दूरों ने पूरे जोश-ओ-खरोश के साथ हड़ताल की समाप्ति की है।
यह मार्शल माशीन्स मज़दूर संघर्ष की अहम प्राप्ति है जिसने आने वाले समय में लुधियाणा में मज़दूर संघर्ष को आगे बढ़ाने में सहायक होना है।
(कारखाना मज़दूर यूनियन की विज्ञप्ति)