संघर्ष की आवाज़ सुनो, मज़दूरों की कार्यबहाली करो!

छँटनी-बर्खास्तगी झेलते मज़दूर लम्बे समय से संघर्षरत हैं
उत्तराखंड की औद्योगिक नगरी पंतनगर में स्थित सिडकुल में मज़दूरों के हाल बेहाल हैं। पिछले 2 साल से माइक्रोमैक्स के मज़दूर गैरकानूनी छँटनी व लेआॅफ के खिलाफ संघर्षरत हैं, तो डेढ़ साल से अवैध गेटबन्दी के खिलाफ वोल्टास के मज़दूरों का संघर्ष जारी है। वहीं एलजीबी के महामंत्री व करोलिया लाइटिंग के उपाध्यक्ष गैरकानूनी बर्खास्तगी झेल रहे हैं।
हालात कठिन हैं, जबकि श्रम विभाग श्रमिक समस्याओं को उलझाने व विलंबित करने का काम कर रहा है। समस्याओं के समाधन ना निकलने की मुख्य वजह यही है।
वहीं श्रमिक संयुक्त मोर्चा की पहल पर आन्दोलन के दबाव में प्रशासन की कमेटी बनी, लेकिन मालिकों के दबाव में वह भी केवल औपचारिकता दिखाने लगी। इससे संकट और गहरा गया है।

दो साल से जारी है माइक्रोमैक्स मज़दूरों का संघर्ष
माइक्रोमैक्स नाम से स्मार्ट फोन बनाने वाली भगवती प्रोडक्ट्स लिमिटेड, सिडकुल, पंतनगर के प्रबन्धन ने 27 दिसंबर 2018 को 303 श्रमिकों की गैरकानूनी छँटनी कर दी थी। उसके बाद यूनियन अध्यक्ष को निलंबित किया और शेष बचे 47 श्रमिकों की गैरकानूनी लेआॅफ कर दिया, जो अभी भी जारी है।
पिछले 26 महीने से मज़दूरों का संघर्ष कई स्तरों पर लगातार चल रहा है। जमीने लड़ाई के साथ कानूनी लड़ाई में पिछले साल 3 मार्च 2020 को औद्योगिक न्यायाधिकरण ने श्रमिकों की छँटनी को अवैध करार दिया और श्रमिकों की कार्यबहाली का रास्ता साफ किया। उच्च न्यायालय नैनीताल ने प्रबंधन को न्यायाधिकरण के आदेश का ही पालन करने का निर्देश दिया।

इसके बावजूद श्रम विभाग और स्थानीय प्रशासन मामले को उलझाने में ही लगा रहा। उधर मज़दूरों को थकाने के लिए एएलसी ने बहाली के लिए मज़दूरों के हस्ताक्षर के कथित सत्यापन का खेल चलाया। हालांकि मज़दूर कहते रहे कि कंपनी खुले, वहीं हस्ताक्षर सत्यापित हो जायेगा। लेकिन 4 माह से ज्यादा इस खेल से खिंच गया।
फिर भी मज़दूरों का मनोबल नहीं टूटा। तब श्रम विभाग ने न्यायाधिकरण के आदेश की कथित व्याख्या के लिए आदेश को न्यायाधिकरण में भेज दिया।
वहीं, डेढ़ साल से गैरक़ानूनी लेआॅफ झेल रहे 47 मज़दूरों का मामला भी श्रम विभाग लटकाये हुए है।मज़दूरों पर राज्य से बाहर दूसरे प्लांटों में जाने या हिसाब लेने का ही बेजा दबाव बनाया जा रहा है।
मजेदार यह है कि प्रबन्धन कोर्ट में यह लिखकर दे चुका है कि वह प्लांट की बन्दी नहीं करेगा। साफ है कि वह पुराने मज़दूरों से छुट्टी पाकर नये सस्ते मज़दूर भर्ती करेगा। मोदी सरकार ने फिक्सड टर्म का हथियार भी दे दिया है।
अधिकारी-प्रबन्धन गठजोड़ द्वारा पूरे मामले को लगातार लंबा खींचने के पीछे मनसा यह है कि मज़दूरों का मनोबल टूटे, ताकि वे कमजोर पड़ें और प्रबंधन की नाजायज और मनमानी मुरादें पूरी हों।
इन सबके बीच मज़दूर लगातार संघर्ष में हैं। आर्थिक संकटों से जूझ रहे हैं, भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है। इसके बावजूद कंपनी गेट पर उनका धरना कोरोना/लाॅकडाउन में भी जारी रहा और अभी भी है।
डेढ़ साल से संघर्ष में डटे हैं वोल्टास के मज़दूर
वोल्टास लिमिटेड, पंतनगर में दिसंबर 2017 में दिए गए माँगपत्र पर समझौता करने की जगह प्रबंधन लगातार दमन बढ़ाता रहा और 25 सितंबर 2019 से यूनियन अध्यक्ष व महामंत्री सहित 9 मज़दूरों को बाहर कर दिया।
इस पूरे प्रकरण में प्रबंधन ने अवैध रूप से पहले मज़दूरों का गेट बंद किया, जिसे बाद में कथित लेऑफ़ बताया। काफी संघर्षों के बाद श्रम विभाग द्वारा लेआॅफ गैरकानूनी घोषित किया गया और मज़दूरों के बकाया वेतन की आरसी कटी।

जिसके ख़िलाफ प्रबंधन उच्च न्यायालय चला गया। काटी गई रकम कोर्ट में जमा हो गई। तब प्रबंधन ने 14 फरवरी 2020 को प्लांट में काम ना होने का बहाना लेकर मज़दूरों की गैरकानूनी रूप से सेवा समाप्त कर दी।
तब से मज़दूरों का संघर्ष जारी है। मज़दूर भुखमरी के कगार पर पहुँचने लगे हैं। अनिश्चय व वेतन के अभाव में मज़दूरों का संकट और गहराने लगा है।
इधर प्रबंधन के तमाम गैर कानूनी कृत्यों पर श्रम विभाग पर्दा डालने की कोशिश करता रहा है और ऐसे किसी भी मामले पर कार्रवाई नहीं कर रहा है जिसमें प्रबंधन बुरी तरीके से फंसा हुआ है।

दरअसल, 500 से ज्यादा श्रमशक्ति वाले वोल्टास के पंतनगर प्लांट में महज 38 स्थाई मज़दूर हैं, जिनमें से 9 बाहर हैं। इससे पूर्व प्रबंधन ने तमाम ठेका मज़दूरों को भी बाहर करके मोदी सरकार की पैदाइस नीम ट्रेनी पफोक़ट के मज़दूर यहाँ पर बहुतायत में भर्ती कर लिए।
ऐसे में मज़दूरों की ताक़त बेहद कम हो जाती है। इसके बावजूद मजदूर संघर्ष के मैदान में डटे हुए हैं और कंपनी गेट पर उनका धरना जारी है।
एलजीबी महामंत्री बर्ख़ास्त क्यों?
एलजी बालाकृष्णन एंड ब्रास लिमिटेड, पंतनगर में सन 2012 में यूनियन बनी थी और तब से यहाँ पर दमन जारी है। वर्तमान समय में प्रबंधन ने यूनियन महामंत्री पूरन चंद पांडे का 20 मई 2020 से गैरकानूनी रूप से गेट बंद किया और अब उसने दिसंबर माह में मनमाने और अवैध रूप से उन्हें बर्खास्त कर दिया है।

जबकि श्रम न्यायालय और सहायक श्रम आयुक्त के समक्ष मामले लंबित हैं। प्रबंधन द्वारा अनुचित श्रम व्यवहार किए जाने का मामला भी विवादित है और पूरन पांडे संरक्षित कर्मकार भी हैं। इसलिए अनुमति जरूरी थी। लेकिन प्रबंधन की दबंगई और मनमानीपन को श्रम विभाग की छत्रछाया में खुली छूट मिली हुई है।
करोलिया में भी उत्पीड़न तेज
करोलिया लाइटिंग, पंतनगर में यूनियन बनने के बाद से ही श्रमिक उत्पीड़न लगातार बढ़ता रहा। कोरोना की विकट स्थितियों में कोविड जाँच की माँग करने पर प्रबन्धन द्वारा यूनियन उपाध्यक्ष सुनील कुमार यादव झूठे आरोपों में अवैध रूप से बर्खास्त कर दिए गए।

कुछ और मज़दूरों को ऐसे ही फर्जी आरोपों में कथित घरेलू जांच के नाम पर उत्पीड़ित किया जा रहा है। यहाँ तक कि प्रबंधन यूनियन की मांग पत्र को मानने तक से इंकार कर रहा है।
ऐसे में मज़दूर संघर्ष की दिशा में आगे बढ़ने के लिए मजबूर हुए हैं।

लड़ाई आर-पार के दौर में
यह हालात तो तब है जब पुराने श्रम कानून लागू हैं। निश्चित ही हालात और भी बुरे आने वाले हैं, क्योंकि जिस तरीके से लंबे संघर्ष से हासिल श्रम कानूनों को मोदी सरकार खत्म कर चुकी है और मालिकों के हाथ को मजबूत करने उन्हें मज़दूरों को रखने और निकालने की खुली छूट देने, फिक्सड टर्म, मनमाने घंटे आदि बढ़ाने के लिए चार श्रम संहिताएँ लागू होने वाली है, उसके बाद हालात और कठिन होने वाले हैं।
जाहिरातौर पर ऐसे हालात में अब मज़दूरों का संघर्ष कानूनी लड़ाई से बाहर निकलकर जमीनी लड़ाई की दिशा में ही आगे बढ़ेगा और लड़ाई आर-पार की होगी।