बर्खास्तगी मामले में एलजीबी यूनियन नेता की सुप्रीम कोर्ट से दोबारा जीत, पुराना आदेश बरकरार

एक दशक से जारी संघर्ष में प्रबंधन लेबर कोर्ट से हार के बाद दो-दो बार हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट गया, लेकिन तमाम घुमावदार रास्तों से गुजरकर भी प्रबंधन को कामयाबी नहीं मिली।
रुद्रपुर (उत्तराखंड)। एलजीबी वर्कर्स यूनियन के संरक्षक वीरेंद्र सिंह की दोबारा उच्चतम न्यायालय से जीत मिली है। एलजी बालाकृष्णनन एण्ड ब्रास लिमिटेड पंतनगर के प्रबन्धन की याचिका एक बार फिर सर्वोच्च अदालत ने निस्तारित करते हुए उच्च न्यायालय नैनीताल के आदेश को बरकरार रखा है।
उल्लेखनीय है कि कंपनी में यूनियन बनने के बाद से पिछले एक दशक से जारी संघर्ष में प्रबंधन श्रम न्यायालय से हार के बाद दो बार उच्च न्यायालय और दो बार उच्चतम न्यायालय जा चुका है, और हर बार श्रमिक के पक्ष में फैसला आया है।
बीते 10 मार्च को हुई सुनवाई में श्रमिक पक्ष की ओर से अधिवक्ता श्री राजेश त्यागी ने जबर्दस्त पैरवी की और प्रबंधन के झूठ और षडयन्त्र को उजागर किया। यह भी स्पष्ट किया कि प्रबंधन कैसे अदालत को बार-बार गुमराह कर रहा है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति संजय किशन कौल व एम एम सुंदरम की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को सही बताते हुए उसपर मुहर लगाई। इसके बाद प्रबंधन पक्ष ने दलील दी कि वीरेंद्र का कार्य संतोषप्रद नहीं है। प्रबंधन की इस दलील पर अदालत ने हस्तक्षेप करने से मना कर दिया और कहा कि वह कानून के अनुसार इसे हल करने के लिए स्वतंत्र है।
एक दशक से जारी संघर्ष : क्या है मामला
एलजीबी पंतनगर प्लांट में सन 2012 में यूनियन बनने के बाद से ही मज़दूरों का दमन-उत्पीड़न लगातार चलता रहा है। उस व्यक्त तत्कालीन यूनियन महामंत्री व वर्तमान संरक्षक वीरेंद्र सिंह की उसने गैरकानूनी बर्खास्तगी कर दी थी। तत्कालीन अध्यक्ष सहित कई यूनियन पदाधिकारियों और मज़दूरों को अलग-अलग प्लांटों में शिफ्ट किया था। तब से मज़दूरों ने एकता के साथ कंपनी के भीतर और क़ानूनी संघर्ष जारी रखा।
श्रम न्यायालय ने बख़ास्तगी को अनुचित श्रम अभ्यास ठहराया था
सन 2015 में श्रम न्यायालय, काशीपुर से वीरेंद्र की जीत हुई थी। श्रम न्यायालय ने इसे स्पष्ट रूप से अनुचित श्रम अभ्यास बताते हुए बख़ार्स्तगी को गलत ठहराया था। तब प्रबन्धन ने दलील दी थी कि विरेन्द्र ट्रेनी था और उसकी ट्रेनिंग समाप्त कर दी गई।
लेकिन कोर्ट ने श्रमिक पक्ष की इस दलील को माना था कि एक साल की ट्रेनिंग समाप्त करके वह 7 माह से स्थाई कर्मकार के रूप में कार्य कर रहा था। स्थाई की सभी सुविधाएं भी उसे मिल रही थीं, लेकिन नियुक्ति पत्र नहीं मिला था और यूनियन बनाने के कारण निकाला गया है।
05/12/2014 को वीरेंद्र सिंह श्रम न्यायालय काशीपुर से जीत गया और प्रबंधन को दबाव में साल 2015 में कार्यबहाली करनी पड़ी थी।
कार्यबहाली के बावजूद उत्पीड़न जारी रहा
कार्यबहाली के बाद भी प्रबन्धन द्वारा विरेन्द्र का उत्पीड़न जारी रहा। प्रबंधन उन्हें टूलरूम ट्रेनी बोलता है और हर स्तर पर दमन जारी रहा। उन्हें अभी तक अन्य श्रमिकों के समान वेतन, बोनस, अवकाश व अन्य सुविधाएं नहीं मिल रही हैं।
प्रबंधन बार-बार उन्हें स्टाफ में आने और बेहतर वेतन देने की पेशकश भी करता रहा। लेकिन विरेन्द्र उसे ठुकराता रहा और बतौर श्रमिक अपने हक़ का संघर्ष जारी रखा। सभी दबावों व उत्पीड़नों को सहते हुए वे लगातार संघर्षरत रहे और पूरी यूनियन इसमें साथ खड़ी रही।
उच्च न्यायालय ने भी श्रम न्यायालय का आदेश रखा बरकरार
प्रबंधन ने श्रम न्यायालय के आदेश को उच्च न्यायालय, नैनीताल में चुनौती दी थी। सभी पक्षों को सुनने के बाद उच्च न्यायालय ने 02/07/2019 को प्रबन्धन की दलीलें खारिज़ कर दी थीं और श्रम न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा। हालांकि श्रम विभाग द्वारा इस मामले के संदर्भादेश के हवाले से उन्हें टूल रूम ट्रेनी के पद पर नियुक्ति माना।
उच्चतम न्यायालय से भी एसीएलपी हुई थी खारिज
उच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद एलजीबी प्रबन्धन ने उच्चतम न्यायालय में एसएलपी दाखिल की थी, जो 25 अक्टूबर 2019 को प्रथम दृष्ट्या ख़ारिज हो गयी थी। इस हार के बाद प्रबंधन ने सर्वोच्च अदालत को गुमराह करने की कोशिश की और झूठा कथन दिया कि इस मामले पर यूनियन से समझौता हो गया है। अदालत ने कहा कि यदि ऐसा है तो वह उच्च न्यायालय जा सकता है।
कंपनी दोबारा गई उच्च न्यायालय फिर सर्वोच्च न्यायालय
झूठी नई कहानी के साथ कंपनी दोबार उच्च न्यायालय नैनीताल गई, जहाँ अधिवक्ता योगेश पचौलिया की पैरवी से प्रबंधन की गलतबयानी उजगार हुई और 29 नवम्बर, 2019 को उसकी पुनरयाचिका ख़ारिज हो गई तो वह पुनः उच्चतम न्यायालय पहुँच गई।
प्रबन्धन फिर से उच्चतम न्यायालय में एसएलपी दायर की। मामले को लंबा खींचने के लिए प्रबंधन ने शीर्ष अदालत से समझौता का अवसर देने की अपील की, जिसपर अदालत ने नैनीताल उच्च न्यायालय के मध्यस्तता केंद्र भेजा। लेकिन प्रबंधन की मंशा समझौते की नहीं थी, लिहाजा यह भी बेमतलब साबित हुआ। अंततः तमाम घुमावदार रास्तों से गुजरकर भी प्रबंधन को कामयाबी नहीं मिली और 10 मार्च, 2022 को वीरेंद्र सिंह के पक्ष में फैसला आया।
दमन बीच संघर्ष लगातार है जारी
यह गौरतलब है कि एलजीबी प्रबंधन लगातार यूनियन तोड़ने और मज़दूरों का उत्पीड़न जारी रखा है। वर्तमान में यूनियन महामंत्री पूरन चंद्र पांडे को अवैध रूप से बर्खास्त कर रखा है। मज़दूरों को लगातार नोटिस देना, कथित घरेलू जाँचों के बहाने परेशान करना लगातार जारी है।
ज्ञात हो कि ऊधम सिंह नगर में कंपनी के दो प्लांट (पंतनगर व रुद्रपुर) हैं। रुद्रपुर प्लांट यूनियन तोड़ने के लिए ही सन 2012 में बना था और 5 मजदूरों को पंतनगर से वहाँ स्थानांतरित कर दिया था। यूनियन दोनों प्लांटों के लिए है। लेकिन प्रबंधन दोनों प्लांटों को यूनियन से अलग करने के हर हथकंडे अपनाता रहा है। इन सबके बीच यूनियन नेतृत्व में मज़दूरों का संघर्ष जारी है।
जीत से मज़दूरों में खुशी की लहर
इस जीत से मज़दूरों में खुशी की लहर दौड़ गई। एलजीबी वर्कर्स यूनियन ने इसे मज़दूरों के एकजुट संघर्ष की जीत बताया है और उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता श्री राजेश त्यागी तथा संघर्ष के सभी सहयोगियों को धन्यवाद दिया है!
इस संघर्ष के सहयोगी मज़दूर सहयोग केन्द्र ने जीत के लिए विरेन्द्र सिंह सहित एलजीबी वर्कर्स यूनियन के सभी साथियों को बधाई दी है।