कोविड-19 और श्रम सुधार बाल श्रम को और तेज बढ़ाएंगे!

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12 जून : बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस पर विशेष :

एक तरफ मोदी सरकार और राज्य सरकारों द्वारा मुनाफाखोर मालिकों के हित में जारी श्रम सुधार बाल मजदूरी को तेजी से बढ़ाने की दिशा में है, वहीँ कोविड-19 का प्रकोप मज़दूर-मेहनतकश आवाम के बच्चों का भविष्य और अन्धकार की धकेल रहा है। स्थिति भयावह और चिंताजनक है।

उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार द्वारा लम्बे संघर्षों के दौरान हासिल 44 श्रम कानूनों को ख़त्म करके जो 4 श्रम संहिताएँ लागू होने वाली हैं, पूरी मज़दूर जमात को बँधुआ बनाने, मालिकों द्वारा मनमर्जी काम पर रखने व निकालने की खुली छूट देने वाली हैं। इसी के साथ यह किशोरों और बच्चों से भी मजदूरी करने की खुली छूट देने वाली हैं।

श्रम क़ानूनी अधिकारों में डकैती की दिशा में विभिन्न राज्य सरकारें सरपट दौड़ लगा चुकी हैं।

दूसरी ओर, कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन ने बच्चों तक को फैक्ट्री-खदानों से लेकर चायखानों-ढाबों तक में काम करने को विवश करने की ओर हैं। जिन बच्चों को स्कूल जाने, खेलने-कूदने की उम्र है, वे बदहाली में कूड़ा बीनने, भट्टियों में झुलसने, कालीन बुनकर टीबी और छाती के रोगों से ग्रसित होने की ओर पहले से ज्यादा तेज गति से खपाने को अभिशप्त होने वाले हैं।

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लॉकडाउन-श्रम सुधार – बाल श्रम की खुली छूट

गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के गठबंधन ने एक बयान में कहा, ‘काम करने के घंटे को नौ से 10 या 12 करने, कामगारों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा जैसे श्रमिक कल्याण नियमों को शिथिल करने, कुछ स्थानों पर उद्योगों के निरीक्षण करने की प्रणाली स्थगित करने जैसे उपायों से महिला श्रमिकों पर नकरात्मक असर होगा और बच्चे प्रभावित होंगे।’

गठबंधन- वर्किंग ग्रुप ऑन वुमेन इन वैल्यू चैन्स (डब्ल्यूआईवीसी) ने रेखांकित किया है कि कैसे आर्थिक विकास की गति बढ़ाने के लिए विभिन्न स्तर पर दी गई ढील से श्रम कानून कमजोर पड़ सकता है।

डब्ल्यूआईवीसी में सेव द चिल्ड्रेन, सेवा भारत, केयर इंडिया, इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर, सोसाइटी फॉर लेबर एंड डेवलपमेंट, ऑक्सफैम इंडिया, चेंज अलायंस आदि शामिल हैं।

गठबंधन ने लॉकडाउन के बाद श्रम कानूनों में ढील देने से महिला श्रमिकों पर दुष्प्रभाव पड़ने और श्रमबल में बाल मजदूरों की शामिल होने की आशंका जताई है और सरकार से विधेयक (श्रम संहिताओं) की समीक्षा करने की अपील की है।

गठबंधन ने कहा, ‘निगरानी प्रणाली की व्यवस्था में ढील देने से उत्पीड़न की घटनाओं में बढ़ोतरी होगी और कर्मचारियों से दुर्व्यवहार बढ़ेगा। इससे बच्चे श्रमबल में शामिल होंगे।’

बयान के मुताबिक, प्रवासी श्रमिक शहरी अर्थव्यवस्था के प्रमुख संचालक हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से वे अपने गांवों को जाने को मजबूर हुए, क्योंकि रोजगार और आय की असुरक्षा से उन पर शोषण और गरीबी का खतरा बढ़ गया था।

गठबंधन ने कहा, ‘काम के घंटे बढ़ाने से अभिभावकों द्वारा बच्चों की देखरेख पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि वे उनकी देखभाल और शिक्षा पर कम समय दे पाएंगे। श्रमिकों की कल्याणकारी योजनाओं के कम होने का भी नकारात्मक असर महिलाओं और बच्चों पर पड़ेगा।’

डब्ल्यूआईवीसी ने सरकार से अपील की कि वह श्रम कानून के प्रासंगिक प्रावधानों को कायम रखे और संगठित एवं गैर संगठित क्षेत्र के कामगारों की बेहतरी सुनिश्चित करे। वह यह सुनिश्चित करे कि राज्य और उद्योग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त श्रम मानकों का अनुपालन करें और कामगारों की सुरक्षा और संरक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए आपूर्तिकर्ताओं से संपर्क में रहे।

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कोविड-19 : खटने को मजबूर होते बच्चे

भारत, ब्राजील और मैक्सिको जैसे देशों में कोविड-19 महामारी के कारण लाखों और बच्चे बाल श्रम की ओर धकेले जा सकते हैं। यह दावा संयुक्त राष्ट्र ने एक नई रिपोर्ट में किया गया है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और यूनिसेफ की रिपोर्ट ‘कोविड-19 तथा बाल श्रम : संकट का समय, काम करने का वक्त’ शुक्रवार को जारी हुई। इसके मुताबिक वर्ष 2000 से बाल श्रमिकों की संख्या 9.4 करोड़ तक कम हो गई, लेकिन अब यह सफलता जोखिम में है।

एजेंसियों ने कहा, ‘कोविड-19 संकट के कारण लाखों बच्चों को बाल श्रम में धकेले जाने की आशंका है। ऐसा होता है तो 20 साल में पहली बार बाल श्रमिकों की संख्या में इज़ाफ़ा होगा।’

विश्व बाल श्रम निरोधक दिवस के मौके पर 12 जून को जारी रिपोर्ट में कहा गया कि जो बच्चे पहले से बाल श्रमिक हैं उन्हें और लंबे वक्त तक या और अधिक खराब परिस्थतियों में काम करना पड़ सकता है और उनमें से कई तो ऐसी परिस्थितियों से गुजर सकते हैं, जिससे उनकी सेहत और सुरक्षा को बड़ा खतरा होगा।

रिपोर्ट में कहा गया कि जब परिवारों को और अधिक आर्थिक विपन्नता बढ़ती है तो माता-पिता बच्चों की मदद लेते हैं। इसमें कहा गया, ‘ब्राजील में माता-पिता का रोजगार छिनने पर बच्चों को रोजगार में उतरना पड़ा। ग्वाटेमाला, भारत, मैक्सिको तथा तंजानिया में भी ऐसा देखने को मिला।’

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महामारी/लॉकडाउन से और बढ़ेगी गरीबी

इस रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के कारण गरीबी में वृद्धि हो सकती है जिससे परिवार बाल मजदूरी की दिशा में जाने को मजबूर होंगे क्योंकि कोई भी परिवार जीवित रहने के लिए हर उपलब्ध साधन का उपयोग करना चाहेगा।

बाल श्रम : आंकड़ों की ज़ुबानी

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट ‘बाल श्रम के वैश्विक अनुमान, परिणाम और रुझान, 2012-2016’ में कहा गया है कि पांच और 17 वर्ष की उम्र के बीच 152 मिलियन बच्चों को अवांछनीय परिस्थितियों में श्रम करने को मजबूर किया जा रहा है।

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महामारी से बढ़ रहा है बाल श्रम

कुछ अध्ययनों के मुताबिक अनेक देशों में गरीबी में एक प्रतिशत की बढ़ोतरी से बाल श्रम में कम से कम .07 प्रतिशत की वृद्धि होती है।

इसमें कहा गया कि वैश्विक महामारी के कारण स्कूलों के बंद होने से भी बाल श्रम बढ़ा है। एजेंसियों ने कहा कि स्कूलों के अस्थायी तौर पर बंद होने से 130 से अधिक देशों में एक अरब से अधिक बच्चे प्रभावित हो रहे हैं।

इसमें कहा गया, ‘जब कक्षाएं शुरू होंगी तब भी शायद कुछ अभिभावक खर्च उठाने में सक्षम नहीं होने के कारण बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाएंगे।’

रिपोर्ट के अनुसार, इसका परिणाम यह होगा कि और ज्यादा बच्चे अधिक मेहनत तथा शोषण वाले काम करने को मजबूर होंगे। लैंगिक असमानताएं और ज्यादा गहरी हो सकती हैं, विशेष रूप से कृषि और घरेलू कार्यों में लड़कियों का शोषण और बढ़ जाएगा।

आईएलओ महानिदेशक गाय राइडर ने कहा, ‘जब महामारी का प्रकोप परिवार की आय पर पड़ेगा तो कई लोग बाल श्रम अपना सकते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘संकट के समय सामाजिक सुरक्षा महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे सबसे अधिक कमजोर लोगों को मदद मिलती है।’

रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के संकट से गरीबी बढ़ सकती है और बाल श्रम भी बढ़ सकता है।

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ग़रीबी व आभाव बाल श्रम को बढाता है

यूनीसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर ने कहा, ‘बाल श्रम अनेक परिवारों के लिए संकट का मुकाबला करने का साधन बन जाता है। जैसे-जैसे गरीबी बढ़ती है, स्कूल बंद होते हैं और सामाजिक सेवाओं की उपलब्धता कम होती जाती है, तब अधिक बच्चों को मजदूरी में लगा दिया जाता है।’

उन्होंने कमजोर समुदायों पर आर्थिक मंदी, अनौपचारिक क्षेत्र में बेरोजगारी, जीवन स्तर में गिरावट, स्वास्थ्य असुरक्षा और अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों जैसे दबावों से पीड़ित होने की आशंका जताई है।

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अभी का सीमित क़ानूनी संरक्षण होगा ख़त्म

भारत में 1979 में बाल मजदूरी को खत्म करने के उपाय के रूप में गुरूपाद स्वामी समिति का गठन हुआ। गुरूपाद स्वामी समिति द्वारा खतरनाक क्षेत्रों में बाल मज़दूरी पर प्रतिबंध लगाने सहित कई सिफारिशें प्रस्तुत की गई।

1986 में समिति के सिफारिश के आधार पर बाल मज़दूरी प्रतिबंध विनियमन अधिनियम अस्तित्व में आया, जिसमें विशेष खतरनाक व्यवसाय व प्रक्रिया के बच्चों के रोजगार एवं अन्य वर्ग के लिए कार्य की शर्तों का निर्धारण किया गया।

1987 में बाल मजदूरी के लिए विशेष नीति बनाई गई, जिसमें जोखिम भरे व्यवसाय एवं प्रक्रियाओं में लिप्त बच्चों के पुर्नवास पर ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

लेकिन यह जटिलता बनी रही कि किसे खतरनाक और किसे गैर खतरनाक बाल श्रम की श्रेणी में रखा जाए। 2006 में बाल श्रम निवारण अधिनियम 1986 में संशोधन कर ढाबों, घरों, होटलों में बालश्रम करवाने को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया। 

ये सारी स्थितियाँ तब बनी हुई हैं, जब भारतीय संविधान का अनुच्छेद 23 बच्चों को खतरनाक उद्योग और कारखानों में काम करने की अनुमति नहीं देता है। जबकि धारा 45 के अंतर्गत देश के सभी राज्यों को 14 साल से कम उम्र के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देना अनिवार्य किया गया है।

श्रम क़ानूनों में अब हो रहे परिवर्तन इन सबको ताक पर रख कर बाल श्रम को बढ़ाने वाले हैं। ज़ाहिर है, कोरोना/लॉकडाउन बच्चों को काम में उतारने की विवशता को और तेज करेंगे!

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