कोलकाता: ब्लिंकिट के डिलीवरी मज़दूर एकबार फिर आंदोलन की राह पर क्यों?

ब्लिंकिट कंपनी के मज़दूर शोषण व घटती मज़दूरी के खिलाफ लड़ रहे हैं। किसी भी हब में नए रंगरूटों को भी ₹25 की आईडी दी जाए। किसी भी परिस्थिति में ₹15 की आईडी को सक्रिय नहीं किया जाए।
कोलकाता। ऑनलाइन माँग पर आपूर्ति करने वाले डिलीवरी मज़दूर (गिग वर्कर्स) बेहद शोषणकारी स्थितियों में काम करते हैं। विकट स्थितियों में वे संघर्ष भी कर रहे हैं और संगठित होने का प्रयास भी। इसी क्रम में कोलकाता में ब्लिंकिट कंपनी के मजदूर एक बार फिर आंदोलन की राह पर हैं।
सितंबर 2022 में प्रति पार्सल आय को ₹50 से ₹20 तक सीमित करने की कंपनी की विनाशकारी नीति को समाप्त करने के श्रमिकों के सफल प्रयास के बाद भी, मार्च 2023 में एक स्थिति बनाई गई है, जिसमें प्रति पार्सल-आय ₹25 से घटाकर ₹15 करने व इंसेंटिव स्लैब भी बदलने से आक्रोशित ब्लिंकिट के डिलीवरी मज़दूर हड़ताल पर चले गए। हड़ताल 3 हब में हुआ।
उल्लेखनीय है कि जहाँ एक ओर लगातार महँगाई तेजी से बढ़ रही है, वहीं डिलीवरी मज़दूरों की प्रति डिलीवरी दर और इंसेंटिव लगातार घटती जा रही है। जबकि सामाजिक सुरक्षा के कोई प्रावधान नहीं हैं। हालांकि कंपनियों का मुनाफा तेजी से बढ़ रहा है।
हड़ताल तोड़ने के लिए प्रबंधन सक्रिय
प्रबंधन ने हड़ताल को तोड़ने के लिए तीनों हब में अलग अलग मीटिंग की। मजदूरों की मांग थी कि तीनों हब एक साथ मीटिंग करेगी पर प्रबंधन ने इसे इंकार कर एक हब में मीटिंग बुलाई और सभी राइडर्स के आईडी को ब्लॉक करने की धमकी दी और कहा कि 15 रुपए वाली आईडी बंद नही की जाएगी (जिसके खिलाफ आंदोलन चल रहा है)।
प्रबंधन ने हब बंद करने की भी धमकी दी। मजदूरों का कहना था कि वे काम शुरू कर देंगे पर 15 रुपए वाली आईडी हब में घुसने नही देंगे।
बाकी दो हब में भी प्रबंधन ने ऐसा ही किया साथ ही साथ इन दोनो हब में सभी की आईडी को “स्ट्राइक इनेबलर” का तगमा लगाकर बंद कर दिया। एक हब मे 60 और दूसरे में 70 लोगों की आईडी को बंद कर दिया गया।
जब मजदूरों ने आईडी चालू करने को बोला तब प्रबंधन ने बताया कि काम बंद करने की वजह से इन सबकी आईडी अपने आप बंद हो गई है, जो की सिस्टम ने खुद ही सिस्टम से हटा दिया। फिर से काम शुरू करने के लिए नई आईडी बनानी होगी जो की 15 रुपए वाली होगी।
दो हब में काम रुका हुआ है और जो बाकी लोग काम कर भी रहे है उनका भी यही मानना है कि 15 रुपए वाली आईडी को वे स्वीकार नहीं करेंगे और आंदोलन चलता रहेगा।
ज्ञात हो कि 25 रुपए आईडी का मतलब 25 रुपए की दर से भुगतान और 15 रुपए की आईडी का मतलब 15 रुपए की दर से भुगतान, जो पहले ही कम था, अब और कम हो जाएगा।
प्रबंधन लगातार हबों की एकता को तोड़ने के प्रयास मे है। वे बार बार नई आईडी के फायदे बताने मे लगा है पर डिलीवरी राइडर्स इनके झांसे में नही आ रहे है। उन्हें पता है कि 15 रुपए वाली आईडी में टारगेट ऑर्डर (प्रतिदिन) कम हो जाएगा दूरी बढ़ जाएगी और ऑर्डर प्रति रोजगार भी घट जाएगा।
इसीलिए अभी भी ये आंदोलन चल रहा है और मज़दूरों का कहना है कि यह तब तक चलेगा जब तक कि प्रबंधन मजदूरों की मांग को स्वीकार नही करेगा।
5 माह पहले हुआ था जुझारू आंदोलन
यह बहुत पहले की बात नहीं है, केवल ’22 के सितंबर में, ब्लिंकिट कंपनी के डिलीवरी राइडर्स के विरोध आंदोलन ने पूरे कोलकाता में सुर्खियां बटोरी थीं। आंदोलन ने शहर में हर हब को बंद करने के लिए मजबूर किया।
इतने बड़े पैमाने पर आंदोलन की वजह क्या थी?
एक बार में, ब्लिंकिट कंपनी प्रबंधन ने प्रत्येक पार्सल पर राइडर्स की आय को ₹50 से घटाकर सीधे ₹20 तक लाने का निर्णय लिया; रोजी-रोटी आधे से ज्यादा घट गई। लगभग एक महीने के निरंतर संघर्ष ने ऊपरी प्रबंधन को प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने के लिए गुड़गांव से आने के लिए मजबूर किया था।
ब्लिंकिट कंपनी के राइडर कर्मचारियों ने नए रेट कार्ड हासिल किए। ‘प्रति-पार्सल-अर्निंग’ को ₹25 में संशोधित किया गया था और नए रेट कार्ड के प्रोत्साहन स्लैब के अनुसार, यदि ऑर्डर का लक्ष्य 100 तक पहुँच जाता है, तो प्रति-पार्सल-कमाई ₹40 के करीब पहुंच जाती है।
नए आईडी के खेल से दहशत
कोलकाता में डिलेवरी मजदूरों के आंदोलन के 5 महीने बीत चुके हैं और मार्च पूरा कर अप्रैल में प्रवेश कर रहे हैं। ब्लिंकिट और ज़ोमैटो के प्रबंधन के बीच समझौता केवल मजबूत हुआ है। और एक नया नोटिस प्रसारित किया गया था जिसमें दावा किया गया था कि कंपनी हर हब में अधिक राइडर्स की भर्ती करेगी और उन्हें एक नए प्रकार की आईडी प्रदान की जाएगी।
इस आईडी के लिए प्रति पार्सल कमाई ₹15 होगी।
राइडर्स कंपनी के इस कदम से डर रहे हैं और यह वास्तव में काफी न्यायसंगत और वास्तविकता में आधारित है कि कुछ दिनों में, कंपनी डिलीवरी को पूरा करने के लिए केवल नई आईडी का उपयोग करना शुरू कर देगी और इसके अलावा वे क्यों रखेंगे ₹25 आईडी?
ब्लिंकिट के डिलीवरी वर्कर्स ने पुरजोर मांग की है कि भर्ती किए जा रहे नए राइडर्स को भी ₹25 आईडी का इस्तेमाल कर एक्टिवेट किया जाए। प्रति-पार्सल आय सभी राइडर श्रमिकों के लिए समान होनी चाहिए। और इस मामले में कंपनी की ओर से कोई विभाजनकारी नीति बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
सितंबर 2022 में प्रति पार्सल आय को ₹50 से ₹20 तक सीमित करने की कंपनी की विनाशकारी नीति को समाप्त करने के श्रमिकों के सफल प्रयास के बाद भी, मार्च 2023 में एक स्थिति बनाई गई है, जिसमें प्रति पार्सल-आय और अधिक होगी। ₹25 से घटाकर ₹15 करें। इंसेंटिव स्लैब भी अलग होंगे।
जब एक राइडर ने कंपनी के प्रबंधकों में से एक से पूछा कि वे ₹15 आईडी क्यों पेश कर रहे हैं? क्या आप हमें उसी मामूली भुगतान के लिए काम करने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं? प्रबंधन का जवाब था कि अगर कंपनी को ₹700 की जगह ₹300 रोज़ाना के मज़दूर मिल सकते हैं, तो हम ₹300 रोज़ के मज़दूरों को काम पर रखेंगे। कंपनी प्रॉफिट पॉलिसी पर चलती है।
कम्पनी का ब्रांड डिलीवरी कर्मचारी की मेहनत हैं
सच यह है कि ऑनलाइन डिलीवरी गिग कंपनियां जिस सद्भावना पर चलती है, ब्रांड पहचान हासिल करती है, और लाभ प्राप्त करती है, वह पूरी तरह से डिलीवरी श्रमिकों की मेहनत से हासिल की जाती है। ब्लिंकिट या स्वीजी उन बड़े विज्ञापनों को केवल त्वरित डिलीवरी के लिए प्रिंट कर सकता है क्योंकि श्रमिक 10 मिनट के भीतर डिलीवरी कर रहे हैं। पहले रात के समय डिलीवरी नहीं होती थी, लेकिन अब होती है।
इस पेशे में श्रमिकों को काफी रिस्क लेकर काम करना पड़ता है। दुर्घटना का शिकार हुआ एक डिलीवरी श्रमिक 2 घंटे तक सड़क पर पड़ा रहा। कंपनी को सूचित करने के बाद भी कोई सहायता प्रदान नहीं की गई और जब अन्य श्रमिकों को सूचना मिली, तब वे उसे अस्पताल ले गए।
किसी भी हब के डिलीवरी वर्कर उस इलाके के सेंटीमेंट मैप होते हैं। कुछ लोग मजाक में कहते हैं कि एक बार जब मैं एक आदेश पर घर का नंबर और सड़क का नाम देखता हूं, तो मैं आपको बता सकता हूं कि उनके दरवाजे और खिड़कियां किस रंग की हैं। कंपनी को इन कर्मचारियों का शोषण करके लाभ कमाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
क्या ब्लिंकिट के प्रबंधन में कोई अपने वेतन में कटौती के लिए सहमत होगा? वह भी मात्र ₹500 से? फिर, महंगाई के इस दौर में, मजदूरों की रोजी-रोटी क्यों कम कर दी जाए? किस तर्क के बाद?
घाटा तो महज बहाना है, क्योंकि सस्ते में काम कराना है
कर्मचारियों की मांगों का मुकाबला करने के लिए मालिक “कंपनी घाटे में चल रही है” का तर्क पेश करते हैं। अगर डिलीवरी वर्कर्स की कमाई बढ़ेगी तो जाहिरा तौर पर कंपनी का घाटा भी बढ़ेगा।
अब एक वाजिब सवाल उठता है। अगर कंपनी लगभग हर यूट्यूब वीडियो से पहले विज्ञापन देने के लिए भारी मात्रा में भुगतान कर सकती है, अगर कंपनी हर बड़े शहर में बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाने के लिए पर्याप्त पैसा खर्च कर सकती है, तो घाटे की तस्वीर कहां से आती है?
अगर कोई हब किसी क्षेत्र में 6 महीने तक काम करता है, तो उसके ऑर्डर में 200 की बढ़ोतरी देखी जाती है। मध्यमग्राम और बिरती में नए हब खुल रहे हैं। ऐसे में कोई घाटे में चल रही कंपनी इस तरह का खर्च कैसे उठा सकती है? ये सवाल खुद कार्यकर्ता उठा रहे हैं।
ब्लिंकिट कंपनी के मजदूर लड़ रहे हैं। किसी भी हब में नए रंगरूटों को भी ₹25 की आईडी दी जाए। किसी भी परिस्थिति में ₹15 की आईडी को सक्रिय नहीं किया जा सकता है।