जन विश्वास विधेयक: कारोबारी जुर्म पर मालिकों को नहीं होगी जेल, महज लगेगा जुर्माना

मोदी सरकार ने कॉरपोरेट जगत की एक और अपेक्षा की पूरी, ‘जन विश्वास विधेयक’ पारित। ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ यानि अनुकूल कारोबारी माहौल के बहाने मालिकों को खुली छूट।
मोदी सरकार ने देश-दुनिया के पूँजीपतियों के हित में एक और क़ानून बना दिया। शब्दों के बाजीगर जनाब मोदी ने इस क़ानून का नाम दिया है ‘जन विश्वास विधेयक’। इस क़ानून से पूँजीपतियों को तमाम अपराधों पर जेल नहीं होगी, महज आर्थिक जुर्माना लगेगा।
इससे पूर्व मोदी सरकार द्वारा मज़दूर विरोधी लेबर कोड्स में भी मालिकों को वेतन-बोनस हड़पने जैसे मामलों में जेल से मुक्त करके महज जुर्माने तक सीमित किया जा चुका है।
लोकसभा में पारित हुआ जन विश्वास विधेयक
कॉरपोरेट जगत की एक और अपेक्षा को पूरा करते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने 27 जुलाई को, जिस दौरान मणिपुर को लेकर लोकसभा में हंगामा व्याप्त था, ध्वनिमत से जन विश्वास विधेयक पारित कर दिया। अब ये राज्यसभा में भेजा जाएगा।
यह बिल ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ यानि अनुकूल कारोबारी माहौल और न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन के लिए प्रतिबद्ध मोदी सरकार का एक और कारनामा है।
इसके जरिए कारोबारियों को बड़ी राहत देने का प्रावधान है। इससे कई अधिनियमों में बदलाव करके अपराध की श्रेणी में रखे गए मामलों को अब जुर्माने तक ही सीमित कर दिया गया है।
2022 में लोकसभा में पेश हुआ था बिल
जन विश्वास बिल को मोदी सरकार की ओर से केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा पिछले साल दिसंबर 2022 में लोकसभा में पेश किया गया था। जिसे समीक्षा के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा गया।
जेपीसी ने मार्च में बजट सत्र के दौरान संसद में 07 सामान्य सिफारिशों के साथ अपनी रिपोर्ट पेश की। जिसमें वित्त मंत्रालय से लेकर सड़क परिवहन, कृषि, सूचना एवं प्रौद्योगिकी सहित 19 मंत्रालयों से जुड़े करीब 42 अधिनियमों के 183 प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव दिया था।
रिपोर्टों के अनुसार, जेपीसी की अधिकांश सिफारिशों को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी। समिति ने सरकार से कहा था कि इसमें संशोधन करने चाहिए और कई अपराधों को अपराध की श्रेणी से हटाकर जुर्माने तक सीमित कर दिया जाए।
गैर-अपराधीकरण हासिल करने का सरकारी प्रस्ताव-
(i) कुछ प्रावधानों में कारावास और/या जुर्माना दोनों को हटाने का प्रस्ताव है।
(ii) कारावास को हटाने और कुछ प्रावधानों में जुर्माना बरकरार रखने का प्रस्ताव है।
(iii) कारावास को हटाने और कुछ प्रावधानों में जुर्माना बढ़ाने का प्रस्ताव है।
(iv) कुछ प्रावधानों में कारावास और जुर्माने को दंड में बदलने का प्रस्ताव है।
(v) अपराधों के शमन को कुछ प्रावधानों में शामिल करने का प्रस्ताव है।
क्या कहती है सरकार?
जन विश्वास विधेयक दरअसल कई पुराने प्रावधानों का संशोधन विधेयक है। सरकार के अनुसार इसका लक्ष्य पर्यावरण, कृषि, मीडिया, उद्योग और व्यापार, प्रकाशन आदि जो देश में व्यापार करने को आसान बनाने में बाधाएं पैदा करते हैं, उन्हें समाप्त किया जाए।
केंद्र सरकार कहती है कि इससे छोटे अपराधों को अपराधमुक्त करने से न्यायपालिका और जेलों पर बोझ कम होगा जबकि व्यवसाय करना आसान हो जाएगा और साथ ही व्यक्तियों का जीवन भी आसान हो जाएगा।
कोर्ट-कचहरी की झंझट से मुक्ति का दावा कितना खोखला है, इसको इससे समझ जा सकता है कि जिस दौरान मालिकों (कारोबारियों) को अपराधमुक्त करने का प्रावधान आ रहा है, ठीक उसी दौर में सरकार की नीतियों के विरोधियों की गिरफ्तारियों से लेकर फर्जी मुकदमों के अम्बर लगे हैं।
मज़दूर संघर्षों में लगे लोगों से लेकर तमाम राजनैतिक सामाजिक कार्यकर्ता और अल्प संख्यक समुदाय को बड़े पैमाने पर जेलों में डाला गया है और डाला जा रहा है। स्थिति यह है कि साल 2016 से 2021 के बीच भारतीय जेलों में कुल क़ैदियों की संख्या में 28 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है, इनमें विचाराधीन क़ैदियों की संख्या में 45.8 फ़ीसदी का इजाफा हुआ है।
स्पष्ट है कि मोदी सरकार पूँजीपतियों को आपराधिक क़ानूनों- जेल-कचहरी से मुक्त करके ‘व्यापार करने को आसान बनाने’ की “बाधाएं” समाप्त कर रही है, उनके लूट को बेलगाम बना रही है।
कैसे मिलेगा मालिकों को लाभ, जनता को पड़ेगी चोट?
आइए कुछ उदाहरणों को देखें किसको मिलेगा लाभ, किस पर पड़ेगी चोट!
★ द इंडस्ट्रीज (डिवैल्पमैंट एंड रैगुलेशन) एक्ट 1951 के तहत यदि किसी बही खाते, रिकॉर्ड, डिक्लारेशन, रिटर्न या किसी अन्य दस्तावेज में दी गई जानकारी सही नहीं है तो मालिक को 3 महीने तक जेल की सजा के प्रावधान के बदले जन विश्वास विधेयक में जेल की सजा खत्म करने का प्रस्ताव है।
★ इसी तरह किसी औद्योगिक इकाई को वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र में काम करने से रोकने वाले वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 का पालन करने में विफलता पर आर्थिक दंड के साथ 06 साल तक की जेल की सजा की जगह महज 15 लाख रुपये तक का जुर्माना देना होगा।
★ यहाँ तक कि यदि किसी की खराब दवाई की वजह से हालत बिगड़ जाए या मौत हो जाए तो नकली दवा बनने वाले कारोबारी को सजा का प्रावधान खत्म करके जुर्माना लेकर मुक्त कर दिया जाएगा।
★ इसके विपरीत ओवरस्पीड पर जुर्माना पहले 400 रुपये लगते थे, अब 2000 रुपये लगेगा, लाइसेंस एक्सपायर होने पर पहले 500 रुपये लगते थे अब 10 हजार रुपए लगेगा।
जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) विधेयक, 2023 के अंतर्गत कवर 42 अधिनियमों की सूची
1- कृषि उपज (ग्रेडिंग और मार्किंग) अधिनियम, 1937; 2- समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1972; 3- रबर अधिनियम, 1947; 4- चाय अधिनियम, 1953; 5- मसाला बोर्ड अधिनियम, 1986; 6- कानूनी माप विज्ञान अधिनियम, 2009; 7- छावनी अधिनियम 2006; 8- सरकारी प्रतिभूति अधिनियम, 2006; 9- उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोट (विमुद्रीकरण) अधिनियम, 1978; 10- सार्वजनिक ऋण अधिनियम, 1944; 11- आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016; 12- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000; 13- वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981; 14- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986; 15- भारतीय वन अधिनियम, 1927; 16- सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम, 1994; 17- जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम अधिनियम, 1961; 18- फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम, 2011; 19- राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम, 1981; 20- राष्ट्रीय आवास बैंक अधिनियम, 1987; 21- भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007; 22- खाद्य निगम अधिनियम, 1964; 23- भण्डारण निगम अधिनियम, 1962; 24- औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940; 25- खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006; 26- फार्मेसी अधिनियम, 1948; 27- मेट्रो रेलवे (संचालन और रखरखाव) अधिनियम, 2002; 28- प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867; 29- सिनेमैटोग्राफी अधिनियम, 1952; 30- केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995; 31- मर्चेंट शिपिंग अधिनियम, 1958; 32- भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898; 33- बॉयलर अधिनियम, 1923; 23- कॉपीराइट अधिनियम, 1957; 35- वस्तु भौगोलिक संकेत अधिनियम, 1999; 36- उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951; 37- पेटेंट अधिनियम, 1970; 38- ट्रेड मार्क्स अधिनियम, 1999; 39- रेलवे अधिनियम, 1989; 40- मोटर वाहन अधिनियम, 1988; 41- धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002; 42- सांख्यिकी संग्रहण अधिनियम, 2008।