जामियाः लॉकडाउन के सन्नाटे में कठोर क़ानून
यूएपीए के इस्तेमाल पर सवाल
देश में लॉकडाउन तीसरे चरण में पहुंच चुका है. हर जगह सन्नाटा पसरा हुआ है लेकिन इसी लॉकडाउन में पुलिस फ़रवरी में दिल्ली में हुए दंगों के मामले में तेज़ी से गिरफ्तारियां कर रही है.अप्रैल महीने की शुरूआत में पुलिस ने कई छात्र कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां दंगों के षड्यंत्र रचने के आरोप में की हैं. ख़ास बात ये है कि ये वो छात्र हैं जो नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों में आगे-आगे थे. इन पर पुलिस ने सबसे कठोर क़ानून ‘अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट’ यानी यूएपीए लगाया है.दिल्ली पुलिस का कहना है कि पुलिस ने सब कुछ क़ानून के दायरे में रहते हुए किया है और इन लोगों के ख़िलाफ़ दंगा भड़काने में शामिल होने के सबूत हैं.दिल्ली पुलिस ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया की एम-फ़िल छात्रा और जामिया कॉर्डिनेशन कमिटी की सदस्य सफ़ूरा ज़रगर, जमिया के पीएचडी छात्र मीरान हैदर, जामिया एल्युमनाइ एसोसिएशन के अध्यक्ष शिफ़ा-उर रहमान के अलावा 10 लोगों की गिरफ्तारी की है. इस एफ़आईआर में यूएपीए लगाया गया है लिहाज़ा जिनकी भी गिरफ्तारी हुई है उनकी सुनवाई इसी कठोर क़ानून के तहत होगी जिसे कुछ ही महीने पहले संशोधित किया गया है.
उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाक़ों में 22 फ़रवरी से 26 फ़रवरी के बीच दंगे हुए. इन दंगों में 50 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी और आज भी कई लोग अपने घरों को नहीं लौट सके हैं क्योंकि उनके घर जलकर राख हो गए हैं.ये हिंसा तब शुरू हुई जब दिल्ली के जाफ़राबाद मेट्रो स्टेशन के पास नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ और समर्थन में प्रदर्शन करने वाले आपस में भिड़ गए. इसके बाद पूरे इलाक़े में दंगे भड़क उठे.यूं तो दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने कई जाने-माने छात्र नेताओं को हिंसा का सूत्रधार मानकर गिरफ़्तार किया है लेकिन शुरुआत करेंगे उस नाम से जिसकी चर्चा सबसे ज़्यादा हो रही है.दिल्ली पुलिस ने जिन लोगों की गिरफ्तारी की है उनमें जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी की मीडिया कॉर्डिनेटर सफ़ूरा ज़रगर की सबसे ज़्यादा चर्चा है.नागरिकता संशोधन क़ानून विरोधी प्रदर्शन का सफ़ूरा अहम हिस्सा रहीं है. दिल्ली पुलिस सफ़ूरा को 10 अप्रैल, शुक्रवार को दोपहर तीन बजे उनके घर से पूछताछ के लिए लोधी कॉलोनी पुलिस स्टेशन लाई और देर रात उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. अगले दो दिनों तक सप्ताहांत के कारण अदालती कार्रवाई बंद थी इसलिए उन्हें मैजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया जा सका.जब सफ़ूरा को पुलिस थाने लाया गया तो उनके साथ उनके पति भी वहां मौजूद थे.
सफ़ूरा के पति ने बीबीसी को बताया, “आख़िरी बार हमारी बात पिछले हफ्ते हुई है, मुश्किल से 4 मिनट ही बात हो पाई. बस यही बोली की ठीक हूं. उसके अंदर नन्हीं सी जान पल रही है, ये हमारा पहला बच्चा है. सफ़ूरा चार महीने की प्रेग्नेंट हैं. बस प्रार्थना और उम्मीद ही मेरे परिवार का सहारा है. ये हमारे लिए बेहद मुश्किल और दर्द में डूबा वक़्त है. ऐसे वक़्त में जब उसे बेहतर खाने और देखभाल की ज़रूरत है तो वो अकेली है. पता नहीं उसे ज़रूरी मेडिकल सहायता मिल रही है या नहीं.”सफ़ूरा की गिरफ्तारी 24 फ़रवरी को जाफ़राबाद थाने में दर्ज एक एफ़आईआर के तहत हुई है जो दक्षिणी दिल्ली में स्थित जामिया के कैंपस से लगभग 20 किलोमीटर दूर है.इस केस में 13 अप्रैल को मजिस्ट्रेट ने उन्हें ज़मानत दे दी थी लेकिन इसके ठीक बाद रिहा करने के बजाय सफ़ूरा को 6 मार्च को एक दूसरी एफ़आईआर के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. और उन पर यूएपीए लगा दिया गया.6 मार्च की इस एफ़आईआर में सफ़ूरा का नाम नहीं है बल्कि उसमें उमर ख़ालिद और दानिश के नाम हैं. इस मामले में 21 अप्रैल को सफ़ूरा की ज़मानत की अर्ज़ी मेट्रोप़ॉलिटन मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दी. दिल्ली की स्पेशल सेल ने इस एफ़आईआर में यूएपीए लगाया है जिसके कारण इस मामले में ज़मानत देने का अधिकार सिर्फ सेशन कोर्ट के पास ही है.
सोशल मीडिया पर अपनी पत्नी के बारे अभद्र बातें होने को लेकर सफ़ूरा के पति कहते हैं, “इस वक़्त मैं ऐसे लोगों की बातों पर समय बर्बाद भी नहीं करना चाहता. मेरी पत्नी एक बहादुर औरत है जिसने हमेशा लोकतंत्र और लोकतांत्रिक तरीक़ों पर यक़ीन किया है”.वैसे तो दिल्ली पुलिस ने फ़रवरी के तीसरे हफ़्ते में हुए दंगों को लेकर कुल लगभग 700 एफ़आईआर दर्ज की हैं लेकिन 6 मार्च की एफ़आईआर में ज्यादातर छात्र नेताओं और कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की गई है.6 मार्च की इस एफ़आईआर में शिकायत करने वाले अरविन्द कुमार ने कहा है, “दिल्ली में 23, 24, 25 फ़रवरी को हुए दंगे पूर्व नियोजित षड्यंत्र का हिस्सा थे जिसकी योजना जेएनयू छात्र उमर ख़ालिद और उनके दो अन्य साथियों ने बनाई थी.”अरविन्द कुमार दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच में तैनात हैं.6 मार्च की इस एफ़आईआर में केवल जेएनयू छात्र उमर ख़ालिद और प़ॉपुलर फ्रंड ऑफ़ इंडिया के सदस्य मोहम्मद दानिश का नाम है. क्राइम ब्रांच ने ये एफ़आईआर फाइल की जिसे अब दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को ट्रांसफर किया जा चुका है.6 मार्च की मूल एफ़आईआर की कॉपी में आईपीसी की धाराएँ 147 (दंगे भड़काने), 148 (दंगे में जानलेवा हथियारों का इस्तेमाल), 149 (ग़ैर कानूनी तरीक़े से सभा करना) 12B (अपराधिक षड्यंत्र) लगाई गई हैं. ये सभी धाराएं बेलेबल यानी ज़मानती धाराएं हैं. इस मामले में मोहम्मद दानिश सहित तीन पीएफ़आई सदस्यों की गिरफ्तारी हुई थी जिन्हें 13 मार्च को मेट्रोपॉलिटन मस्जिट्रेट की अदालत से ज़मानत मिल गई है, शर्त ये है कि वे देश से बाहर नहीं जाएँगे. अब तक उमर ख़ालिद की गिरफ्तारी नहीं हुई है.
20 अप्रैल को इस एफ़आईआर में कई गंभीर गैर-जमानती धाराएं जोड़ दी गई हैं और सबसे मुश्किल कानून यूएपीए जोड़ दिया गया है. यानी सफ़ूरा, मीरान , शिफा-उर-रहमान और उमर खालिद सभी पर अब यूएपीए लग चुका है.जमिया में पीएचडी के छात्र मीरान हैदर भी 6 मार्च की ही इस एफ़आईआर के तहत तिहाड़ जेल में है. एक अप्रैल को मीरान को पुलिस ने दिल्ली दंगों के मामले में पूछताछ के लिए बुलाया और देर रात उन्हें गिरफ्तार कर लिया.मीरान के वकील अकरम ख़ान ने बीबीसी को बताया, “इस लॉकडाउन में जब सब कुछ बंद है. ऐसे में यूएपीए लगाया गया है. अब इस एफ़आईआर के तहत जो भी गिरफ़्तारियां की गई हैं उन सब पर यूएपीए लग चुका है. 20 अप्रैल को स्पेशल सेल में यूएपीए लगाया है. अब हमें ज़मानत के लिए सेशन कोर्ट में जाना होगा. इस समय कोर्ट के काम भी सामान्य रूप से नहीं हो रहे. साथ ही, जितनी भी गंभीर धाराएं हो सकती थीं इस केस में लगाई गई हैं. हम पूरी तैयारी के साथ मिनार की ज़मानत की अर्जी देंगे. देखते हैं क्या होता है आगे”.
चूंकि अब तक आरोपपत्र दाख़िल नहीं किया गया है ऐसे में कई चीज़ें अभी साफ़ नहीं हैं. अकरम कहते हैं, “अभी इस एफ़आईआर पर पुलिस ने आरोपपत्र दाखिल नहीं किया है. ऐसे में जो भी धाराएं लगाई गई हैं वो सभी गिरफ्तारियों पर लागू होंगी. ये भी संभव है कि जब पुलिस आरोप पत्र दाखिल करे तो उसमें कुछ लोगों पर यूएपीए हटा दिए जाए और कुछ पर जारी रखा जाए. बहरहाल, ये एक बार आरोपपत्र सामने आने के बाद ही साफ़ हो सकेगा”.यूएपीए क़ानून के 90 दिन में आरोपपत्र दाख़िल करना होता है. लेकिन अगर जांच एजेंसी ट्रायल कोर्ट के सामने कारण के साथ ये बता सकें कि उन्हें आरोपपत्र तैयार करने में और वक़्त चाहिए तो ऐसी स्थिति में उन्हें कोर्ट 90 दिन और दे सकती है. यानी इस कानून के मुताबिक़ किसी व्यक्ति को 180 दिन यानी 6 महीने बिना आरोपपत्र दाखिल किए रखा जा सकता है.ये अवधि ख़त्म होने के बाद भी अगर आरोपपत्र दाख़िल नहीं हुआ तो गिरफ्तार किए गए शख्स को डिफ़ाल्ट बेल देनी पड़ती है.11 मार्च को लोकसभा में दिल्ली दंगों पर जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने ‘यूनाइडेट अगेंस्ट हेट’ के सदस्य उमर ख़ालिद का नाम लिए बिना उनके 17 फरवरी को दिए गए एक भाषण का ज़िक्र किया था. उन्होंने कहा था कि, ”17 फरवरी को ये भाषण दिया गया और कहा गया कि डोनल्ड ट्रंप के भारत आने पर हम दुनिया को बताएंगे कि हिंदुस्तान की सरकार अपनी आवाम के साथ क्या कर रही है. मैं आप सबसे अपील करता हूं कि देश के हुक़्मरानों के ख़िलाफ़ बाहर निकलिए. इसके बाद 23-24 फ़रवरी को दिल्ली में दंगा हो गया”.
दरअसल, 17 फरवरी को महाराष्ट्र के यवतमाल में उमर खालिद ने एक भाषण में कहा था, “जब अमरीका के राष्ट्रपति ट्रंप भारत में होंगे तो हमें सड़कों पर उतरना चाहिए. 24 तारीख को ट्रंप आएंगे तो बताएंगे कि हिंदुस्तानकी सरकार देश को बांटने की कोशिश कर रही है. महात्मा गांधी के उसूलों की धज्जियां उड़ रही हैं. ये बताएंगे कि हिंदुस्तान की आवाम हिंदुस्तान के हुक़्मरानों के ख़िलाफ़ लड़ रही है. उस दिन हम तमाम लोग सड़कों पर उतर कर आएंगे”.राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने बीबीसी से कहा, “उमर के जिस बयान का ज़िक्र किया जा रहा है उसमें वो गांधी के देश की बात कर रहे हैं, लोगों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए सड़कों पर आने को कहना हिंसा भड़काना कैसे हो सकता है. वहीं कपिल मिश्रा जो सीधे हिंसा की बात करते हैं उनकी स्पीच पर अमित शाह चुप हैं. जिस संगठन का नाम पुलिस की जांच से पहले ही बीजेपी और संघ ने लिया है उन्हीं पर कार्रवाई की जा रही है”.इस एफ़आईआर में ख़ालिद का नाम तो है पर अब तक गिरफ़्तारी नहीं की गई है लेकिन 26 अप्रैल को दिल्ली पुलिस की स्पेशल टीम ने जामिया अल्युमनाइ एसोसिएशन के अध्यक्ष शिफ़ा-उर-रहमान को इसी एफ़आईआर के तहत गिरफ्तार किया है.समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ एक पुलिस अधिकारी ने बताया, “जांच और पूछताछ के बाद उनके खिलाफ़ कई सबूत मिले हैं. दंगा प्रभावित इलाकों में भी उनके जाने के सबूत हैं. प्रदर्शन हो रही कई जगहों पर वो गए भी हैं. कई ऐसे सबूत हाथ लगे हैं जो उनके हिंसा शामिल होने की ओर इशारा करते हैं”.
गुरूवार दोपहर को शिफ़ा की रिमांड 10 दिन के लिए और बढ़ा दी गई है. शिफ़ा उर रहमान की बहन ने बीबीसी को बताया कि “भाई गांव में थे लॉकडाउन के कारण, मेरठ के पास मवाना में दिल्ली पुलिस ने पूछताछ के लिए बुलाया था और देर रात फ़ोन आया कि भाई को गिरफ्तार कर लिया गया. जामिया से पढ़े होने के कारण वो अपने कॉलेज के जूनियर्स के साथ खड़े थे. दिल्ली दंगे तो क्या, वो किसी प्रोटेस्ट का हिस्सा नहीं रहे. इसमें क्या ग़लत है अगर कोई पुराना छात्र अपने कॉलेज के वर्तमान छात्रों के साथ खड़ा है. जिस तरह की उन पर धाराएं लगाई गई है बिलकुल भी नहीं लगता कि पुलिस इस मामले में निष्पक्ष है.”जो एफ़आईआईर क्राइम ब्रांच ने 6 मार्च को दर्ज किया था उसमें सिर्फ़ चार धाराएं थीं लेकिन इसमें आईपीसी की हरसंभव गंभीर और ग़ैर-ज़मानती धाराएं जोड़ दी गई हैं. मिनार हैदर के वक़ील के मुताबिक़ एफ़आईआर संख्या 59/2020 में 10 लोगों की गिरफ़्तारी हुई है.इन पर 147-दंगे, 148- दंगों में जानलेवा हथियारों का इस्तेमाल, 124A- राजद्रोह, 120B अपराधिक षड्यंत्र, 302- हत्या, 307- हत्या की कोशिश, 435 और 436- विस्फोटक के इस्तेमाल से नुकसान पहुंचाना, सेक्शन 3,4- सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, यूएपीए एक्ट 1967 के सेक्शन 13 16, 17, 18 इस तरह की लगभग 22 धाराएं लगाई गई हैं.बीबीसी ने दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता एमएस रंधावा से बात की. उन्होंने कहा, “जामिया और उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगे मामले में दिल्ली पुलिस ने अपना काम बेहद गंभीरता और निष्पक्षता के साथ किया है. जो भी गिरफ्तारियां की गई हैं वो वैज्ञानिक और फोरेंसिंक सबूतों के आधार पर की गई हैं, जिनमें वीडियो फ़ुटेज और कई टेक्नीकल सबूत शामिल हैं”.
”दिल्ली पुलिस नियम और कानून के दायरे में रहते हुए उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के षड्यंत्रकर्ताओं और दोषियों पर कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है ताकि इस दंगे के निर्दोष पीड़ितों को न्याय मिल सके.”मेधा पाटकर और अरुणा रॉय जैसी 1100 महिलावादी समाजिक कार्यकर्ताओं ने इन गिरफ्तारियों, हिरासतों और इससे जुड़ी एफ़आईआर को सार्वजनिक करने की मांग की है. शांतिपूर्ण तरीके से सीएए के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर लगा यूएपीए कानून हटाने की मांग भी की गई है.साथ ही, बीजेपी नेता कपिल मिश्रा, भारत सरकार में मंत्री अनुराग ठाकुर और सांसद प्रवेश वर्मा को भड़काऊ भाषण देने को लेकर गिरफ्तार करने की अपील की है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार जेल को डी-कंजेटस्ट करने किया जाए और राजनैतिक कैदियों को रिहा किया जाए.अगस्त , 2019 में यूएपीए कानून में संशोधन किया गया और इसके साथ ही सरकार और जांच एजेंसियों को ये अधिकार भी मिल गया कि वह चाहें तो किसी व्यक्ति को अदालती सुनवाई के बिना आतंकवादी क़रार दे सकती है.1967 में लाए गए अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट में यूं तो कई संशोधन किए गए लेकिन इस संशोधन ने सारी शक्ति सरकार और जांच एजेंसियों के हाथों में केंद्रित कर दी.भारत में वर्तमान में यूएपीए एक्ट एकमात्र ऐसा क़ानून है जो मुख्य रूप से ग़ैरक़ानूनी और आतकंवाद से जुड़ी गतिविधियों पर लागू होता है.ऐसे कई अपराध थे जिनका आईपीसी में ज़िक्र नहीं था, इसलिए 1967 में इसकी ज़रूरत महसूस की गई और ये क़ानून लाया गया.
एक्ट के सेक्शन 35 और 36 के तहत सरकार बिना किसी दिशानिर्देश के, बिना किसी तयशुदा प्रक्रिया का पालन किए किसी व्यक्ति को आतंकवादी क़रार दे सकती है. किसी व्यक्ति को कब आतंकवादी क़रार दिया जा सकता है? ऐसा जांच के दौरान किया जा सकता है? या इसके बाद? या सुनवाई के दौरान? या गिरफ़्तारी से पहले? ये क़ानून इन सवालों पर कुछ नहीं कहता है.कई कानून के जानकार यूएपीए को संविधान से मिले मौलिक अधिकारों के भी ख़िलाफ़ मानते हैं.सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर ने बीबीसी से कहा, “इन मामलों में न्याय की प्रक्रिया को ही इतना दुरूह और दुष्कर बना दिया जाएगा कि वह आपके लिए सबसे बड़ी सज़ा बन जाए. इसका उद्देश्य सिर्फ़ विरोधी स्वरों को दबाना और एक डर का माहौल पैदा करना है.”कानून के तहत सुरक्षा एजेंसियां बिना कोई चार्टशीट दाखिल किए 6 महीने तक शख्स को हिरासत में रख सकती हैं. इस दौरान कोर्ट में पेश करना भी अनिवार्य नहीं है. अगर सुरक्षा एजेंसियां चाहें तो ये कहकर हिरासत की अवधि और भी बढ़ा सकती हैं कि पूछताछ अभी पूरी नहीं हुई है.यूएपीए के सेक्शन 15 के अनुसार भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा या संप्रभुता को संकट में डालने या संकट में डालने की संभावना के इरादे से भारत में या विदेश में जनता या जनता के किसी तबक़े में आतंक फैलाने या आतंक फैलाने की संभावना के इरादे से किया गया कार्य ‘आतंकवादी कृत्य’ है.
इस परिभाषा में बम धमाकों से लेकर जाली नोटों का कारोबार तक शामिल है. आतंकवाद और आतंकवादी की स्पष्ट परिभाषा देने के बजाय यूएपीए एक्ट में सिर्फ़ इतना ही कहा गया है कि इनके अर्थ सेक्शन 15 में दी गई ‘आतंकवादी कार्य’ की परिभाषा के मुताबिक़ होंगे.वृंदा कहती हैं, “पहले तो किसी को गिरफ़्तार करने के लिए उसका किसी प्रतिबंधित संगठन से सम्बंध स्थापित करना पड़ता है. लेकिन अब तो आप सिर्फ़ संदेह के आधार पर किसी को भी अर्बन नक्सल कहकर उसे इस क़ानून के तहत अंदर डाल सकते हैं”.इस क़ानून के तहत किसी व्यक्ति को चरमपंथी घोषित करने के लिए ये स्थापित करना ज़रूरी नहीं है कि वह किसी प्रतिबंधित आतंकी संगठन से जुड़ा है.
संवाददाता कीर्ति दुबे
बीबीसी से साभार