इस सप्ताह : त्रिलोचन की कविताएँ !

पथ पर चलते रहो निरंतर / त्रिलोचन
पथ पर
चलते रहो निरन्तर
सूनापन हो
या निर्जन हो
पथ पुकारता है
गत-स्वन हो
पथिक,
चरण-ध्वनि से
दो उत्तर
पथ पर
चलते रहो निरन्तर

दीवारें दीवारें दीवारें दीवारें / त्रिलोचन
दीवारें दीवारें दीवारें दीवारें
चारों ओर खड़ी हैं । तुम चुपचार खड़े हो
हाथ धरे छाती पर , मानो वहीं गड़े हो।
मुक्ति चाहते हो तो आओ धक्के मारें
और ढ़हा दें । उद्यम करते कभी न हारें
ऐसे वैसे आघातों से । स्तब्ध पड़े हो
किस दुविधा में।हिचक छोड़ दो। जरा कड़े हो।
आओ , अलगाने वाले अवरोध निवारें।
बहार सारा विश्व खुला है , वह अगवानी
करने को तैयार खड़ा है पर यह कारा
तुमको रोक रही है। क्या तुम रूक जाओगे।
नहीं करोगे ऊंची क्या गरदन अभिमानी।
बांधोगे गंगोत्री में गंगा की धारा।
क्या इन दीवारों के आगे झुक जाओगे।

धर्म की कमाई / त्रिलोचन
सौंर और गोंड स्त्रियाँ चिरौंजी बनिए की दुकान
पर ले जाती हैं। बनिया तराजू के एक पल्ले पर नमक
और दूसरे पर चिरौंजी बराबर तोल कर दिखा देता है
और कहता है, हम तो ईमान की कमाई खाते हैं।
स्त्रियाँ नमक ले कर घर जाती हैं। बनिया
मिठाइयां बनाता और बेचता है। उस की दुकान
का नाम है। अब वह चिरौंजी की बर्फी बनाता है,
दूर दूर तक उस की चर्चा है। गाहक दुकान पर
पूछते हुए जाते हैं। कीन कर ले जाते हैं, खाते और खिलाते हैं।
बनिया धरम करम की चर्चा करता है। कहता
है, धरम का दिया खाते हैं, भगवान् के गुण गाते हैं।

एक लहर फैली अनंत की / त्रिलोचन
सीधी है भाषा बसन्त की
कभी आँख ने समझी
कभी कान ने पाई
कभी रोम-रोम से
प्राणों में भर आई
और है कहानी दिगन्त की।
नीले आकाश में
नई ज्योति छा गई
कब से प्रतीक्षा थी
वही बात आ गई
एक लहर फैली अनन्त की।
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चंपा काले काले अक्षर नहीं चीन्हती / त्रिलोचन
चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती
मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है
खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है
उसे बड़ा अचरज होता है:
इन काले चिन्हों से कैसे ये सब स्वर
निकला करते हैं|
चम्पा सुन्दर की लड़की है
सुन्दर ग्वाला है : गाय भैसे रखता है
चम्पा चौपायों को लेकर
चरवाही करने जाती है
चम्पा अच्छी है
चंचल है
न ट ख ट भी है
कभी कभी ऊधम करेती है
कभी कभी वह कलम चुरा देती है
जैसे तैसे उसे ढूंढ कर जब लाता हूँ
पाता हूँ – अब कागज गायब
परेशान फिर हो जाता हूँ
चम्पा कहती है:
तुम कागद ही गोदा करते हो दिन भर
क्या यह काम बहुत अच्छा है
यह सुनकर मैं हँस देता हूँ
फिर चम्पा चुप हो जाती है
उस दिन चम्पा आई , मैने कहा कि
चम्पा, तुम भी पढ़ लो
हारे गाढ़े काम सरेगा
गांधी बाबा की इच्छा है –
सब जन पढ़ना लिखना सीखें
चम्पा ने यह कहा कि
मैं तो नहीं पढ़ुंगी
तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं
वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे
मैं तो नहीं पढ़ुंगी
मैने कहा चम्पा, पढ़ लेना अच्छा है
ब्याह तुम्हारा होगा , तुम गौने जाओगी,
कुछ दिन बालम सँग साथ रह चला जायेगा जब कलकत्ता
बड़ी दूर है वह कलकत्ता
कैसे उसे सँदेसा दोगी
कैसे उसके पत्र पढ़ोगी
चम्पा पढ़ लेना अच्छा है!
चम्पा बोली : तुम कितने झूठे हो , देखा ,
हाय राम , तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो
मैं तो ब्याह कभी न करुंगी
और कहीं जो ब्याह हो गया
तो मैं अपने बालम को संग साथ रखूंगी
कलकत्ता में कभी न जाने दुंगी
कलकती पर बजर गिरे।

कवि त्रिलोचन को हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। वे आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभों में से एक थे। इस त्रयी के अन्य दो स्तम्भ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे।
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के कटघरा चिरानी पट्टी में जगरदेव सिंह के घर 20 अगस्त 1917 को जन्मे त्रिलोचन शास्त्री का मूल नाम वासुदेव सिंह था। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एम.ए. अंग्रेजी की एवं लाहौर से संस्कृत में शास्त्री की उपाधि प्राप्त की थी।