कार्यबहाली हेतु हाईकोर्ट का आदेश लागू कराने के लिए इंटरार्क मज़दूरों ने डीएम को दिया ज्ञापन

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इंटरार्क मज़दूरों ने खोला मोर्चा, प्रशासन द्वारा हाईकोर्ट के आदेश दिनांक 11/01/2024 को लागू नहीं कराने पर ब्यक्त की आपत्ति। डीएम को ज्ञापन देकर आदेश को लागू कराने की हुई माँग।

रुद्रपुर (उत्तराखंड)। इंटरार्क मजदूर संगठन उधमसिंह नगर और किच्छा के नेतृत्व में आज 9 फरवरी को मजदूरों के एक प्रतिनिधि मंडल ने डीएम, उधमसिंह नगर से मुलाकात कर ज्ञापन प्रेषित किया। उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा पारित आदेश दिनांक- 11/01/2024 को लागू कराके सभी बर्खास्त 24 मजदूरों सहित सभी 34 मजदूरों को उक्त आदेश के अनुसार नौकरी पर बहाल कराने और संपूर्ण वेतन भुगतान कराने की मांग की गई।

यूनियन ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा 11 जनवरी 2024 को इंटरार्क कंपनी सिडकुल पंतनगर एवं किच्छा जिला उधमसिंह नगर द्वारा बर्खास्त किए गए 12 मजदूरों को नौकरी पर बहाल करने और वेतन देने का स्पष्ट व ठोस आदेश दिये गये हैं। किंतु कंपनी मालिक और प्रबंधन उत्तराखंड राज्य की सबसे बड़ी अदालत के उक्त आदेशों को भी मानने और लागू करने को तैयार नहीं है।

हद तो यहां तक हो चुकी है कि कंपनी मालिक द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश को लागू करने के स्थान पर उक्त 12 मजदूरों के अलावा 12 अन्य मजदूरों को भी नौकरी से बर्खास्त कर दिया है। यह उच्च न्यायालय के उक्त आदेशों की घोर अवामनना व चीरहरण है।

इंटरार्क मजदूर संगठन उधमसिंह नगर के महामंत्री सौरभ कुमार और इंटरार्क मजदूर संगठन किच्छा के अध्यक्ष हृदेश कुमार ने कहा कि जिला प्रशासन की मध्यस्थता में हुए त्रिपक्षीय समझौता दिनांक 15/12/2022 को आधार बनाकर ही उच्च न्यायालय द्वारा उक्त आदेश पारित किए गए हैं।

उक्त त्रिपक्षीय समझौते के बिंदू संख्या 3 में स्पष्ट रुप से दर्ज है कि समझौते के तहत जिन 34 मजदूरों की घरेलू जांच की जाएगी उन्हें नौकरी से बर्खास्त नहीं किया जायेगा। उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेशों से स्पष्ट है कि समझौते के इस बिंदू में दर्ज 34 मजदूरों को नौकरी से बर्खास्त करना अविधिक कृत्य है। किंतु कंपनी मालिक द्वारा उक्त 34 मजदूरों में से अब तक 24 मजदूरों को नौकरी से बर्खास्त किया जा चुका है।

यूनियन ने कहा कि शासन प्रशासन भी हाईकोर्ट के उक्त आदेशों को लागू कराने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहा है। जिससे उच्च न्यायालय के आदेशों का घोर उल्लंघन हो रहा है।

देखने में यह मिल रहा है कि जब इंटरार्क कंपनी मालिक सहित अन्य कंपनी मालिकों/पूंजीपतियों को अदालत से स्टे मिलता है तो जिला प्रशासन सैंकड़ों की तादाद में पुलिस और पीएसी बल के साथ में कंपनी में हाजिर होकर न्याय मांग रहे मजदूरों को कंपनी गेट से तुरंत खदेड़ देता है। संगीन मुकदमे दर्ज कर जेल भेज देता है।

जब रुद्रपुर सहित उधमसिंह नगर जिले के विभिन्न हिस्सों में, नगीना कालोनी सहित नैनीताल जिले के अन्य हिस्सों में बसे गरीब लोगों की बस्तियों को ध्वस्त करने, दुकानदारों को हटाने का उच्च न्यायालय आदेश पारित करता है तो उत्तराखंड सरकार और प्रशासन तुरंत सक्रिय हो उठते हैं। और बूढ़े-बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं, बीमार और विकलांग लोगों की परवाह किए बिना ही लोगों के घरों पर उस आदेश का हवाला देकर बुलडोजर चलाकर उन्हें बेघर कर दिया जाता है।

किंतु जब उसी उच्च न्यायालय द्वारा इंटरार्क कंपनी के पीड़ित मजदूरों के पक्ष में और कंपनी मालिक के खिलाफ आदेश जारी किया जाता है तो जिला प्रशासन और सरकार करीब एक माह का समय बीत जाने के बाद भी इस आदेश को लागू नहीं करा रही है। उच्च न्यायालय के आदेशों की दुहाई देकर गरीबों के घरों को ध्वस्त करने वाली उत्तराखंड सरकार और प्रशासन का बाहुबल इंटरार्क कंपनी मालिक जैसे पूंजीपतियों के खिलाफ कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा है।

ऐसा प्रतीत हो रहा कि उत्तराखंड सरकार और प्रशासन उच्च न्यायालय के उन्हीं आदेशो को लागू कराने में दिलचस्पी ले रहा हैं जो सिर्फ मजदूरों, गरीबों, दुकानदारों और आम जनता की बस्तियों, दुकानों को उजाड़ने को दिए गए हों। ऐसे आदेशों को लागू कराने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहा है जो कंपनी मालिकों और पूंजीपतियों के खिलाफ हों और मजदूरों/आम जनता के हित में हों।

वर्ना क्या वजह है कि एक माह का समय होने पर भी इंटरार्क कंपनी मालिक के खिलाफ हाईकोर्ट के उक्त आदेशों को शासन प्रशासन लागू नहीं करा रहा है?

यूनियन द्वारा आम जनता से अपील की गई कि उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेशों को लागू कराने में की जा रही उक्त मनमानी और भेदभाव के खिलाफ सामुहिक रूप से आवाज उठाने की जरूरत है। तभी सरकार, प्रशासन और पूंजीपतियों की मनमानी पर अंकुश लगाया जा सकता है।

सवाल उठाया कि जब शासन प्रशासन उच्च न्यायालय के उक्त आदेशों को लागू कराने में कोई भी दिलचस्पी नहीं ले रहा है तो फिर इंटरार्क कंपनी के पीड़ित मजदूरों के पास आंदोलन करने और सड़कों पर उतरने के अलावा अन्य कोई दूसरा विकल्प कहा बचता है? ऐसे में इस सवाल पर उत्तराखंड की आम जनता को सामुहिक रूप से अवश्य ही विचार करना चाहिए।

ज्ञापन देने वालों में सौरभ, वीरेंद्र, हृदेश, वीर सिंह, विनय कुमार, रियाजउद्दीन, नरेंद्र मणी त्रिपाठी, जीत लाल, किशन गिरी, वासुदेव सिंह, पूरनसिंह मेहरा, राजेश शर्मा, उदय सिंह, रविंद्र सिंह, मृत्युंजय कुमार, विशाल पटेल, मंगल सिंह, भूपेंद्र सिंह आदि श्रमिक शामिल थे।

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