तालाब और जलाशय मत्स्यजीवी मछुआरा समुदाय के जीविकोपार्जन का मुख्य केन्द्र हैं और खेती व पीने के पानी का बड़ा स्रोत हैं। इसके बावजूद ये निजीकरण, सरकारी उपेक्षा व दुर्दशा के शिकार हैं।
देश में 55.2 फीसदी जल निकाय जैसे तालाब, झीलें, चेक डैम आदि निजी हाथों में है। इन जल निकायों की कुल संख्या 13,38,735 है। वहीं 44.8 फीसदी जल निकाय सार्वजनिक क्षेत्र में हैं, जिनपर ग्राम पंचायत या राज्य सरकार का स्वामित्व है।
यह जानकारी भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जल निकायों की पहली गणना पर जारी रिपोर्ट में सामने आई है। रिपोर्ट में सरकार ने जल निकायों से जुड़े सभी महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे उनके आकार, स्थिति, उपयोग, जल भंडारण क्षमता आदि को शामिल किया है।
रिपोर्ट में इन जल निकायों पर हुए अतिक्रमण से भी जुड़ी जानकारियों को साझा किया गया है।

97.1 फीसदी जल निकाय ग्रामीण क्षेत्रों में
गौरतलब है कि इस रिपोर्ट में 24.2 लाख से ज्यादा जल निकायों का अध्ययन किया है, जिनमें से 97.1 फीसदी यानी 23,55,055 जल निकाय ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, जबकि केवल 2.9 फीसदी झीलें और तालाब शहरों में स्थित हैं, जिनकी कुल संख्या 69,485 है।
आंकड़ों के मुताबिक 9.6 फीसदी (2,32,637) जल निकाय आदिवासी बहुल इलाकों में हैं।
रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल जल निकायों में से 59.5 फीसदी तालाब है, जबकि 15.7 फीसदी टैंक, 12.1 फीसदी जलाशय और 9.3 फीसदी चेक डैम हैं। वहीं केवल 0.9 फीसदी झीलें हैं। 16.3 फीसदी यानी करीब 3,94,500 जल निकाय ऐसे हैं जिन्हें उपयोग नहीं किया जा रहा है। ऐसे में यदि उनपर ध्यान न दिया गया तो वो जल्द खत्म हो सकते हैं।
केवल 1.7 फीसदी ऐसे हैं जो 50 हजार या उससे ज्यादा लोगों की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं, जबकि 90 फीसदी से ज्यादा ऐसे हैं जो केवल 100 लोगों की जरूरतों को ही पूरा कर पा रहे हैं।
अतिक्रमण की जद में 1.6 फीसदी जल निकाय
देश में कई झीलें अतिक्रमण का सामना कर रही हैं। रिपोर्ट में इन जल स्रोतों पर बढ़ते अतिक्रमण की गंभीर तस्वीर प्रस्तुत की गई है। जारी आंकड़ों के मुताबिक देश में करीब 1.6 फीसदी (38,496) जल निकाय अतिक्रमण का सामना कर रहे हैं। इनमें से 95.4 फीसदी जल स्रोतों पर अतिक्रमण ग्रामीण क्षेत्रों में हुआ है, जबकि अतिक्रमण को झेल रहे 4.6 फीसदी जल निकाय शहरों में है।
अतिक्रमण किए गए 62.8 फीसदी जल निकायों के 25 फीसदी से कम हिस्से पर अतिक्रमण हुआ है। वहीं 11.8 फीसदी जल निकाय ऐसे हैं जिनके 75 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर अतिक्रमण हो चुका है। ऐसे अनेक उदाहरण है जिनमें इनके बचाव के लिए कई बार कोर्ट को भी सामने आना पड़ा है।
देश में 78 फीसदी जल निकाय मानव निर्मित हैं, जबकि केवल 22 फीसदी (5,34,077) प्राकृतिक हैं। यदि इनकी क्षमता को देखें तो 50 फीसदी जल निकायों की भण्डारण क्षमता एक हजार से दस हजार क्यूबिक मीटर के बीच है।
वहीं 12.7 फीसदी यानी करीब 3,06,960 की भण्डारण क्षमता दस हजार क्यूबिक मीटर से ज्यादा है। पता चला है कि 23,37,638 जल निकायों में से केवल 3.1 फीसदी का क्षेत्रफल पांच हेक्टेयर से ज्यादा है जबकि 72.4 फीसदी का विस्तार 0.5 हेक्टेयर से भी कम है।
यदि राज्यों के लिहाज से देखें तो पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा तालाब और जलाशय हैं, जबकि आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक टैंक हैं। वहीं तमिलनाडु में सबसे ज्यादा झीलें हैं, जबकि महाराष्ट्र जल संरक्षण योजनाओं के मामले में सबसे आगे हैं।
जनविरोधी नीतियाँ व सरकारी उपेक्षा का शिकार
उल्लेखनीय है कि तालाब और जलाशय मत्स्यजीवी मछुआरा समुदाय के जीविकोपार्जन का मुख्य केन्द्र हैं और कृषि के लिए भी अहम हैं। जो बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं और लगातार तबाह हो रही हैं।
साथ ही ये जल स्रोत, देश में साफ पानी का बड़ा स्रोत हैं। दुनिया की 18 फीसदी आबादी भारत में बसती है, लेकिन दुनिया का केवल चार फीसदी साफ पानी भारत में है।
इसके बावजूद जल स्रोत, तालाब, पोखरे और विभिन्न जलाशय निजीकरण, सरकारी उपेक्षा व दुर्दशा के शिकार हैं। प्राकृतिक जलस्रोतों की बाडेबन्दी, सिलटिङ, गंदगी, जलकुंभी, खरपतवार आदि इन जलाशयों का अस्तित्व ही समाप्त कर रही हैं।
इसके विपरीत केन्द्र व राज्य सरकारें जनहित में इन्हें विकसित करने, साफ-सुथरा बनाने की जगह मुनाफे के हित में पर्यटन उद्योग के हवाले कर रही हैं। उद्योगों का कचरा पानी को विषाक्त बना रही हैं तथा जलस्रोतों के अंधाधुंध दोहन से जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है, जो भी गंभीर संकट को बढ़ा रहा है।
ललित मौर्या की रिपोर्ट के इनपुट के साथ; साभार ‘डाउन टू अर्थ’