जाफराबाद-सीलमपुर में महिलाओं का धरना जोरों पर आगे बढ़ रहा है

CAA-NRC के ख़िलाफ़ सीलमपुर – जाफराबाद की औरतों का इंकलाब
दिल्ली के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में से एक, सीलमपुर- वेलकम में जाफराबाद बस स्टैंड के करीब तंबू गाड़े बैठी महिलाओं के धरने का आज पांचवां दिन पूरा होगा। दिन ब दिन यहां और भी भारी तादाद में जाफराबाद, सीलमपुर, चौहान बांगर, वेलकम, जनता कॉलोनी और आस पास के क्षेत्रों से औरतें CAA-NRC-NPR के विरोध में धरनें में शामिल हो रही हैं। शाम ढलते तक धरना स्थल पर महिलाओं की तादाद सैकड़ों से हज़ारों की गिनती में आ जाती है। हवाओं में “सीएए-एनआरसी-एनपीआर नाहिं चलेगा” और “सीलमपुर की औरटन कैलाबिला जिंदाबाद” की गूंज दूर तक फैल रही है।
CAA-NRC-NPR की साज़िश से नाराज़, शहर भर में 12 दिसंबर से हर दिन चल रहे विरोध प्रदर्शनों से ऊर्जा और शाहीन बाग़ की औरतों से प्रेरणा लेते हुए 29 दिसंबर से क्षेत्र की महिलाओं और युवतियों ने अपनी अपनी गलियों में जुलूस, और फिर कैंडल मार्च निकालना शुरू किया। गलियों को भरती औरतों की तादात चंद ही दिनों में 15-20 से बढ़ कर 3-400 तक पहुंच गई। गुस्सा और बेचैनी तो सभी के दिल में थी, एकता का बल मिलने से इसने बगावत का रूप ले लिया। 15 जनवरी से महिलाओं ने जाफराबाद बस स्टैंड के आगे की जगह में अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया।

धरना शुरू होने से अब तक प्रदर्शनकारियों की हौसला अफजाई के लिए यहां कई लोग आते रहे हैं। क्षेत्र के विधायक, पूर्व विधायक के साथ साथ जमिया में चल रहे आंदोलन के कार्यकर्ता, शाहीन बाग़ से औरतें, चंद्रशेखर आजाद के अधिवक्ता महमूद प्राचा, लखनऊ के कला कर्मी दीपक कबीर, महिला आंदोलन की नेत्री कविता कृष्णन और किरण शाहीन, फिल्म निर्माता सबा दीवान, दिल्ली विश्वविद्यालय अध्यापक संघ की पूर्व अध्यक्ष नंदिता नारायण, और अध्यापिका नाजमा रहमानी, शायर आमिर अजीज, रिहाई मंच यूपी के कार्यकर्ता रविश आलम, सांस्कृतिक मंडली संगवारी व अन्य समर्थक प्रदर्शन में शामिल होते रहे हैं।
धरने पर बैठी औरतों ने केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत दिल्ली पुलिस को कार्यकारी शक्तियां नवाज़ने के कदम की भी घोर निंदा की। चल रहे विरोध को इस तरह के सभी हमलों का सामना करते हुए और भी मजबूती से आगे ले जाने का इरादा हर महिला के मन में दृढ़ता से बना हुआ है। दिल्ली और देश के विभिन्न हिस्सों में औरतों के धरनों की खबरों के आने से सभी औरतों का हौसला और हिम्मत भी लगातार बढ़ रही है। महिलाओं के प्रदर्शनों की संख्या सुबह शाम बढ़ती जा रही है और फिलहाल दिल्ली में ही शाहीन बाग़, सीलमपुर, तुर्कमान गेट, खुरेजी, वजीराबाद, चांद बाग़ में महिलाओं के धरने चल रहे हैं।

हामरे समाज में उंच नीच का एक बड़ा आधार समाज में, समुदायों में, वर्गों में बनने विभाजन हैं, जो हर इंसान को उंच नीच की सीढ़ी पर अपनी “सही जगह” को स्वीकार कर के, उस सिस्टम को बनाए रखने का काम करती है। धरना शुरू होने और विकसित होने के साथ साथ, धरना स्थल पर हर तबके की महिलाएं इक्कठा हो रही हैं और समाज में बने विभजनों दीवारों में संपर्क और एकता के नए सुराख़ पैदा हो रहे हैं। जीन्स और जैकेट की फैक्ट्रियों, विभिन्न प्रकार के छोटे कारखानों से भरे इस क्षेत्र में एक बड़ी मुस्लिम व दलित आबादी है। मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने के हिसाब से सरकार की विभिन्न नीतियों में CAA-NRC के ख़िलाफ़ नाराज़गी तो जनता में व्यापक है ही, पर साथ ही नोटबंदी जैसी सरकारी नीति के ख़िलाफ़ भी लोगों में भारी आक्रोश है, जो कुल मिला कर मोदी-शाह के शासन का विरोध पुख़्ता कर रहा है।
सीलमपुर में संघर्ष और प्रतिवाद का इतिहास बहुत लंबा है। 1992 में संघ परिवार द्वारा बाबरी मस्ज़िद ध्वंस के समय यहां हुए दंगे, इंदिरा गांधी के शासन काल में जबरन की गई नस बंदी, चंद सालों पहले दिल्ली में कम्पनियां सील करने के समय यहां हुआ प्रतिरोध, इन हर मौकों पर यहां लोगों ने राजसत्ता के हमले को चुनौती दी है और जाने भी गवाई हैं। CAA-NRC के विरोध में उठने में भी यह क्षेत्र दिल्ली के तमाम क्षेत्रों से आगे था, और सबसे बरबर पुलिस दमन का साक्षी रहा। अब तक यहां के कई नौजवान पुलिस की हिरासत में हैं, और अब बेल पर वापस लौट रहे हैं। यहां के एक निवासी का पुलिस द्वारा फेंके गए ग्रेनेड को आंसू बम समझ कर उठाने के कारण एक हांथ कट गया, जिनपर पुलिस ने बम बनाने का झूठा इल्ज़ाम लगा दिया है। आज जब यहां औरतें, CAA-NRC के ख़िलाफ़ आरपार की लड़ाई पर बैठी हैं, तब इतिहास की यह सारी ताहरीकें इनके नारों में एक बार फ़िर सांस ले उठी हैं, और एक दमन-शोषण मुक्त हिंदुस्तान के सपने में उड़ान भर रहीं है।