नए साल में मोदी सरकार मज़दूर विरोधी श्रम कोड लागू करने को प्रतिबद्ध; लड़ते रहो धर्मांधता में!

‘‘नव वर्ष के मुहाने पर हमारी प्रतिबद्धता दृढ़ है… हम श्रम संहिताओं को लागू करने में तेजी लाने और परिवर्तनकारी नीतियां लागू करने के लिए संकल्पबद्ध हैं!” -केन्द्रीय श्रम मंत्री
केंद्र की मोदी सरकार द्वारा मौजूदा श्रम कानूनों को बदलकर मालिकों के हित में चार लेबर कोड यानी श्रम संहिताएं बनाए पाँच साल हो गए। उसको लागू करने में वह लगातार जुटी हुई है। इधर मज़दूर आंदोलनों का एक हद तक दबाव और कुछ राज्य सरकारों का असहयोग इसमें बाधा बनती रही है। पूर्ण बहुमत की सरकार न बन पाने से भी इसमें रुकावट बनी।
इधर भाजपा-आरएसएस द्वारा धार्मिक जुनून और नफ़रत का आक्रामक माहौल बनाकर पूँजीपतियों के हित में मोदी सरकार की सक्रियता आसान हुई। रेल, कोल, बीमा, बैंक, बिजली, अस्पताल आदि सभी सरकारी-सार्वजनिक संस्थानों के निजीकरण की गति बेलगाम है। पुराने आपराधिक कानूनों को बदलकर नए जन विरोधी आपराधिक क़ानून पारित करने के बाद मोदी सरकार अब मज़दूरों को बंधुआ बनाने वाले चार लेबर कोड को हर कीमत पर लागू करने में जुटी हुई है।
नए वर्ष में श्रम कोड होंगे लागू!
केंद्रीय श्रम एवं रोजगार तथा युवा मामले एवं खेल मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ बातचीत में कहा, ‘‘नव वर्ष के मुहाने पर हमारी प्रतिबद्धता दृढ़ है..” उन्होंने कहा कि ‘‘भविष्य की बात करें तो हम श्रम संहिताओं को लागू करने में तेजी लाने और परिवर्तनकारी नीतियां लागू करने के लिए संकल्पबद्ध हैं, जो प्रत्येक नागरिक को राष्ट्र की विकास गाथा में सार्थक योगदान देने के लिए सशक्त बनाएंगी।’’
स्पष्ट है कि देशी-विदेशी पूँजीपतियों को बेलगाम मुनाफे के लिए जिस ‘नए कार्यबल’ की जरूरत है, उसके लिए श्रम संहिताओं को जल्द से जल्द लागू करना है। मोदी सरकार की यही ‘प्रतिबद्धता’ है।
राज्य सरकारों को भी नियम बनाना ज़रूरी
बीते दिनों श्रम मंत्रालय द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 31 मार्च, 2025 तक चार श्रम कोडों के नियम का मसौदा तैयार करना है।
श्रम, कपड़ा और कौशल विकास पर संसद की एक स्थायी समिति ने 16 दिसम्बर को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा कि केंद्र सरकार और कई राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने चार श्रम संहिताओं (मजदूरी, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियां) के तहत नियम पहले से प्रकाशित कर रखे हैं।
समिति ने कहा कि श्रम संविधान की समवर्ती सूची में आता है और श्रम संहिताओं के तहत केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्यों की सरकारों द्वारा भी नियम बनाए जाने की आवश्यकता है।
दरअसल, श्रम कानून संविधान की समवर्ती सूची में आते हैं। इसलिए, केंद्र और राज्य दोनों को नियम बनाने का अधिकार है। लेकिन राज्य और केंद्रीय कानूनों के बीच टकराव की स्थिति में, केंद्रीय कानून को आम तौर पर प्राथमिकता दी जाती है, जब तक कि राज्य के कानून को राष्ट्रपति की मंजूरी न मिली हो।
समिति ने कहा कि 2019/2020 में अधिसूचित चार श्रम संहिताओं को अभी तक लागू नहीं किया गया है। जबकि अधिकांश राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने इन संहिताओं के तहत मसौदा नियम पहले से प्रकाशित कर रखे हैं। लेकिन कुछ राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ने नियम प्रकाशित नहीं किए हैं।
वेतन संहिता, 2019 पर तीन दिसंबर तक तीन राज्यों (मेघालय, नागालैंड और बंगाल) और एक केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप नियमों को प्रकाशित नहीं किया है।
वहीं, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020 पर मेघालय, बंगाल, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप और दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ने नियमों को प्रकाशित नहीं किया है।
सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 पर मेघालय, तमिलनाडु, बंगाल, लक्षद्वीप और दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ने नियमों को प्रकाशित नहीं किया है। समिति को इस बात से अवगत कराया गया कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मसौदा नियम जल्द ही तैयार हो जाएंगे।
श्रम कोड लागू करने का मंच तैयार
श्रम मंत्रालय द्वारा 28 दिसंबर को जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा 31 मार्च, 2025 तक चार श्रम संहिताओं के तहत मसौदा नियमों को पूरा कर लिए जाने की उम्मीद है। इससे अगले साल तक चार संहिताओं के लागू होने के लिए मंच तैयार हो गया है।
श्रम मंत्रालय के अनुसार, सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 31 मार्च, 2025 तक चार श्रम संहिताओं के तहत नियमों के मसौदे के सामंजस्य तथा पूर्व-प्रकाशन पूरा करने की उम्मीद है।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि श्रम मंत्रालय लगातार राज्यों में चार श्रम संहिताओं के तहत नियमों के सामंजस्य के लिए काम कर रहा है। इस साल राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नियम बनाने में सुविधा देने के लिए अगस्त और अक्टूबर के बीच छह बैठकें की गईं।
क्यों घातक हैं चार श्रम कोड?
चार श्रम संहिताओं के मूल में है ‘हायर एण्ड फायर’ यानि मालिकों की मर्जी, जब चाहो काम पर रक्खो, जब चाहो निकाल दो! काम के घंटे मालिक की मनमर्जी होगी। अवकाश, कार्य के घंटों आदि की हेरा फेरी की गई है। ठेका प्रथा कानूनी बन जाएगा। ट्रेनी के नाम पर ‘फोकट के मज़दूरों से काम करना वैध होगा। छाँटनी-बंदी आसान होगी, यूनियन बनाना, आंदोलन और समझौता लगभग असंभव होगा; श्रम न्यायालय खत्म होंगे और श्रम अधिकारी फैसिलिटेटर होंगे, जिनका काम सलाह देना होगा। असंगठित क्षेत्र के मज़दूर और असुरक्षित होंगे!
नए श्रम कोड की कुछ बानगी देखें-
★ नए श्रम कोड में मज़दूर, उद्योग एवं कार्य दिवस की नई परिभाषा है।
★ मालिक/नियोक्ता की भी परिभाषा को बदल दिया गया है। अब ठेकेदार भी मालिक होगा। यानी ठेका मज़दूरों के लिए कंपनी की पीएफ, वेतन, अवकाश आदि की कोई जवाबदेही नहीं होगी।
★ मज़दूर की परिभाषा को बदला गया है जिसमें ₹18000 से कम मासिक वेतन पाने वाले को ही मजदूर कहा गया है और इसके ऊपर कमाने वालों को कर्मचारी कहा गया है। इससे तमाम मज़दूर यूनियन बनाने के अधिकार सहित अपने तमाम अधिकारों से वंचित हो जाएगा।
★ स्थाई रोजगार की जगह फिक्स्ड टर्म इम्पालाइमेन्ट (नियत अवधि रोजगार) होगा। ट्रेनी के बहाने क़ानूनन मालिकों को ‘फ़ोकट के मज़दूर’ मिलेंगे।
★ नए कानून से श्रमिकों का बड़ा वर्ग कानून के दायरे से बाहर हो जाएगा। पहले जिस संस्थान में 20 लोग काम करते थे, उन्हें भी संरक्षण था। अब यह संख्या 50 करने का प्रावधान है। गैर कानूनी ठेका प्रथा को कानूनी रूप भी मिल जाएगा क्योंकि ऐसे संस्थान में ठेकेदार को लाइसेंस लेने की अनिवार्यता भी खत्म कर दी गई है।
★ अन्य कई बाधाओं के अलावा यूनियन बनाने से पहले सभी सदस्यों के नामों का सत्यापन करवाना अनिवार्य होगा जो प्रबंधन द्वारा नियुक्त अधिकारी करेगा।
★ यदि माँगपत्र या किसी मुद्दे पर यूनियन और नियोक्ता के बीच बातचीत फेल हो जाती है तो जानकारी सरकार को दी जाएगी। इसके बाद मामला ट्रिब्यूनल भेज दिया जाएगा। जब तक वहां अंतिम फैसला नहीं हो जाता, तब तक हड़ताल की इजाजत नहीं होगी। हड़ताल अवैध मानी जाएगी। यही नहीं, सामूहिक छुट्टी को भी हड़ताल की श्रेणी में रखा गया है।
★ सामूहिक समझौते की जगह मालिक एक व्यक्ति से भी समझौता कर सकता है। यह किसी भी मज़दूर के लिए समझना कठिन नहीं है, विशेष रूप से मांग पत्र देने के बाद की स्थितियों को।
★ ज्यादातर मामलों में अब लेऑफ, छँटनी, बंदी या तालाबंदी के लिए नियोक्ता को अनुमति लेने की जरूरत नहीं रहेगी। इस दायरे में मज़दूरों की एक बड़ी आबादी आ जाएगी।
★ आर्टिफिसियाल इंटीलीजेंस (एआई) द्वारा कार्य कराने का प्रचलन बढ़ने से मज़दूरों की संख्या और भी कम होती जाएगी।
★ नए नियम लागू होने के बाद श्रमिक के हाथ में वेतन कम आएगी। क्यों कि मूल वेतन हर माह की CTC से 50% या अधिक होगी।
★ नया श्रम कानून आने के बाद सिर्फ दो दिन में श्रमिकों का पूरा और अंतिम भुगतान हो जाएगा। मतलब तुरत-फुरत कुछ भुगतान देकर छँटनी का रास्ता साफ़ होगा।
★ वेतन निर्धारण के लिए काम की जगह और मज़दूर के कौशल को आधार बनाया गया है। न्यूनतम वेतन निर्धारण के लिए आबादी के अनुसार देश को तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बांटने की बात है।
★ न्यूनतम मज़दूरी तय करने वाले बोर्ड का प्रारूप स्पष्टतः मालिकों के पक्ष में बना दिया गया है। मज़दूरी तय करने का वह फार्मूला पूरी तरह से बदल दिया गया है। यानी मालिक मनमर्जी न्यूनतम वेतन निर्धारित करने के लिए कानूनी रूप से मजबूत हो जाएंगे।
★ ईएसआई के तहत पहले की तरह सुरक्षा की गारंटी समाप्त कर दी गई।
★ ईपीएफ में पहले की सुरक्षा को कम कर दिया गया है। ईपीएफ जमा राशि को निकालने में कई रुकावटें बनाई गई है, क्योंकि अब इपीएफ शेयर मार्केट पर आधारित कर दिया गया है।
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