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चंडीगढ़ में घुसने से पहले सैकड़ों किसान हिरासत में; क्या है आगे की राह?

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March 6, 2025
in Home Slider, राजनीति / समाज
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चंडीगढ़ में घुसने से पहले सैकड़ों किसान हिरासत में; क्या है आगे की राह?
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पंजाब में संयुक्त किसान मोर्चा यानी एसकेएम के ‘चंडीगढ़ चलो’ प्रदर्शन को लेकर बुधवार को तनाव रहा। सैकड़ों किसानों को पुलिस ने तब हिरासत में ले लिया, जब वे अपनी मांगों को लेकर राज्य की राजधानी चंडीगढ़ की ओर बढ़ रहे थे। पुलिस ने चंडीगढ़ की ओर जाने वाली सड़कों पर भारी पुलिस बल की तैनाती कर दी और 25 से अधिक स्थानों पर किसानों को रोका गया। इसके बाद किसानों ने सड़कों पर धरना शुरू कर दिया। इस घटनाक्रम ने पंजाब सरकार और किसानों के बीच बढ़ते टकराव को उजागर किया है।

प्रदर्शन के दौरान कई प्रमुख किसान नेताओं को हिरासत में लिया गया। इनमें भारतीय किसान यूनियन यानी बीकेयू उगराहां के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहां, बीकेयू राजेवाल के राज्य उपाध्यक्ष मुकेश चंदर शर्मा और बीकेयू शादीपुर के अध्यक्ष बूटा सिंह शादीपुर शामिल हैं। उगराहां और उनके समर्थकों को संगरूर के छजली पुलिस स्टेशन में रखा गया। मंगलवार को भी कई एसकेएम नेताओं को हिरासत में लिया गया था, जिन्हें बाद में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की शांति भंग से संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज कर जेल भेज दिया गया।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार कीर्ति किसान यूनियन के प्रेस सचिव रामिंदर सिंह पटियाला ने कहा, ‘यह आपातकाल जैसी स्थिति है। सैकड़ों लोग पुलिस हिरासत में हैं, फिर भी पुरुष और महिलाएँ सड़कों पर उतरे और मुख्यमंत्री भगवंत मान के निर्देशों का विरोध किया।’ उन्होंने यह भी बताया कि हिरासत में लिए गए लोगों की सटीक संख्या अभी सामने नहीं आई है। बुधवार सुबह बीकेयू पंजाब के सदस्यों का पहला जत्था मंगलवार शाम फिरोजपुर के मखू ब्लॉक से ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के साथ चंडीगढ़ के लिए रवाना हुआ था, लेकिन उसे लुधियाना के समराला निर्वाचन क्षेत्र के पास हेड़ोन गांव में रोक दिया गया। पटियाला से आने वाले किसानों को भी पुलिस ने पटियाला-चंडीगढ़ रोड पर रेत के टिप्पर खड़े कर रोक दिया। क्रांतिकारी किसान यूनियन के राज्य महासचिव गुरमीत सिंह मेहमा ने बताया, ‘बीकेयू पंजाब की क़रीब 20 ट्रॉलियाँ समराला के पास रोकी गईं, जबकि मोगा से निकला एक और जत्था मोगा ज़िले के अजीतवाल के पास रोक दिया गया।’ इसी तरह फाजिल्का से 20 वाहनों का काफिला लुधियाना के जगराओं के पास रोक दिया गया।

किसान नेताओं ने बताया कि पुलिस की भारी तैनाती के चलते ट्रॉलियाँ अब मुख्य सड़कों के बजाय गांवों के रास्तों से जा रही हैं। मेहमा ने कहा, ‘जहां भी हमें रोका जाएगा, हम सड़क किनारे बैठ जाएंगे। हम यातायात में बाधा नहीं डालेंगे।’ समराला के पास रोके गए किसानों ने अपने वाहनों को सड़क किनारे खड़ा कर बैटरी वाले स्पीकरों से ‘सतनाम वाहेगुरु’ का जाप शुरू कर दिया। एसकेएम ने 18 सूत्रीय मांगें रखी हैं, जिनमें फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की क़ानूनी गारंटी और बटाईदार किसानों को मालिकाना हक देना शामिल है। सोमवार को मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इन मांगों पर चर्चा के लिए एसकेएम नेताओं के साथ बैठक की थी, लेकिन वह बीच में ही गुस्से में बाहर चले गए। मंगलवार को मान ने किसानों पर निशाना साधते हुए कहा कि वे पंजाब को “धरना राज्य” बना रहे हैं। इसके बाद पुलिस ने प्रदर्शन को दबाने के लिए सख्ती शुरू कर दी।

बीकेयू उगराहां के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां ने कहा, ‘हमारा प्रदर्शन का आह्वान बरकरार है। पूरे राज्य में भारी पुलिस बल तैनात है और हमें अपनी राज्य की राजधानी जाने से रोका जा रहा है।’

यह टकराव आम आदमी पार्टी सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। एक ओर सरकार किसानों की मांगों को लेकर संवाद की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर पुलिस कार्रवाई से उसकी मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्षी दल इसे आप का किसान विरोधी चेहरा करार दे रहे हैं। किसानों का कहना है कि यह सख्ती उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिश है, जबकि सरकार इसे कानून-व्यवस्था बनाए रखने का कदम बता रही है।

किसानों के इस प्रदर्शन ने पंजाब में लंबे समय से चली आ रही उनकी समस्याओं को फिर से सामने ला दिया है। सवाल यह है कि क्या सरकार और किसानों के बीच कोई बीच का रास्ता निकलेगा? अगर पुलिस की सख्ती जारी रही, तो यह आंदोलन और उग्र हो सकता है। दूसरी ओर, सरकार के लिए यह ज़रूरी है कि वह किसानों के साथ संवाद बढ़ाए और उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार करे। फिलहाल, सड़कों पर बैठे किसानों और पुलिस के बीच तनातनी जारी है, और आने वाले दिन इस टकराव की दिशा तय करेंगे। ‘चंडीगढ़ चलो’ प्रदर्शन ने पंजाब में एक बार फिर किसानों और सरकार के बीच गहरे मतभेद को उजागर किया है। यह सिर्फ़ एमएसपी या स्वामित्व अधिकारों की लड़ाई नहीं, बल्कि किसानों की आवाज़ और सरकार की जवाबदेही का सवाल है। सवाल वही है कि क्या भगवंत मान सरकार इस संकट को सुलझा पाएगी, या यह आंदोलन पंजाब की सियासत को नई दिशा देगा?

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

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