‘हाउडी’ से मोदी- ट्रंप दुनिया को क्या दिखाना चाहते हैं

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अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और डेलावेयर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मुक्तदर ख़ान का नज़रिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदा अमरीका यात्रा काफी चर्चा में है. करीब एक हफ़्ते की इस यात्रा के एक-एक कार्यक्रम पर मीडिया की नज़रें बनी हुई हैं.

इसकी एक वजह है रविवार को अमरीका के ह्यूस्टन में होने वाला ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम जिसमें नरेंद्र मोदी भारतीय समुदाय के लोगों को संबोधित करेंगे.

इस कार्यक्रम के लिए बड़े स्तर पर तैयारियां की गई हैं और करीब 50 हजार लोगों के इसमें आने की संभावना है.

ये कार्यक्रम इसलिए भी ख़ास माना जा रहा है क्योंकि ऐसा पहली बार होगा कि कोई अमरीकी राष्ट्रपति ऐसे कार्यक्रम में शामिल होंगे जिसे किसी और देश के प्रमुख संबोधित करेंगे.

पीएम मोदी की अमरीका यात्रा की चर्चा इसलिए भी है क्योंकि इसे भारत-अमरीकी संबंधों में बढ़ती नज़दीकी भी माना जा रहा है.

इस दौरान नरेंद्र मोदी डोनल्ड ट्रंप से दो बार मुलाक़ात करेंगे. पहले वो ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में उनसे मिलेंगे और फिर संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के इतर दोनों की मुलाक़ात होगी.

लेकिन, दोनों नेता ऐसे समय पर मिल रहे हैं जब भारत-पाकिस्तान के बीच भारत प्रशासित कश्मीर को लेकर विवाद बना हुआ है.

जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा वापस लेने के बाद पाकिस्तान कश्मीर के मसले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है.

अमरीका में हो रहे ‘हाउडी मोदी’ के पीछे की कहानी क्या है

भारत में अर्थव्यवस्था के हालात भी अच्छे नहीं हैं. मुश्किल दौर से गुज़र रही अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए सरकार लगातार राहतें दे रही है. वहीं, भारत और अमरीका के बीच टैरिफ़ दरों के लेकर तनाव भी बना हुआ है.

भारत ने जून में 28 अमरीकी उत्पादों पर टैरिफ़ दरें बढ़ाई थीं. इससे पहले अमरीका ने भारत को दिए जाने वाले व्यापार के विशेषाधिकारों को वापस ले लिया था.

दोनों बड़े नेताओं की मुलाक़ात का शोर तो बहुत है लेकिन इस अमरीकी यात्रा से भारत के लिए क्या निकल कर आ पाएगा. इस बारे में बता रहे हैं अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और डेलावेयर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मुक्तदर ख़ान. पढ़ें उनका नज़रिया-

व्यापार को लेकर उम्मीद

ह्यूस्टन में नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम को लेकर जो चर्चा है उससे भारतीय प्रवासियों पर उनका प्रभाव साबित होता है. उम्मीद की जा रही है कि करीब 50 हजार लोग इस कार्यक्रम में मौजूद होंगे.

डोनल्ड ट्रंप भी वहां आ रहे हैं और ऐसा करने के उनके अपने राजनीतिक कारण हैं. उन्हें इसके ज़रिए आने वाले राष्ट्रपति चुनावों के लिए भारतीय समुदाय को प्रभावित करने का एक मौक़ा मिल गया है.

दूसरी बात ये है कि जहां दोनों देशों के बीच व्यापारिक घाटे का तनाव बना हुआ है और ट्रंप भारत की कुछ नीतियों से नाराज़ हैं तो हो सकता है कि दोनों नेता मिलकर इसे हल कर पाएं और उस मौक़े पर कुछ घोषणाएं हो जाएं. भारत के लिए ये सकारात्मक हो सकता है.

अमरीका को भारत की ओर से 100 अरब डॉलर का नुकसान हो गया है. भारत का निर्यात अमरीका के मुकाबले ज़्यादा है. ऐसे में दोनों के बीच टैरिफ़ के तनाव का असर भी कश्मीर के मसले पर पड़ेगा.

अगर ट्रेड के मसले पर अमरीका से कोई समझौता होता है, भारत शुल्क कम करता है और नियमों में कोई ढील देता है तो उसका फ़ायदा यूएनजीसी की बैठक में कश्मीर के मसले पर भारत को हो सकता है.

एक तरह से नरेंद्र मोदी को यह मौक़ा मिल रहा है कि वो यूएनजीसी की बैठक से पहले डोनल्ड ट्रंप का समर्थन हासिल कर लें.

सोमवार को डोनल्ड ट्रंप पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से भी मुलाक़ात करेंगे. इसके बाद वो मंगलवार को फिर पीएम नरेंद्र मोदी से मिलेंगे.

लेकिन, पाकिस्तान की तरफ़ अमरीका का झुकाव होना मुश्किल है. अमरीका की नज़र में पाकिस्तान का महत्व कम हुआ है.

दरअसल अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान से शांति वार्ता को लेकर अमरीका के लिए पाकिस्तान बहुत अहम बना हुआ था.

अमरीका अफ़गानिस्तान से बाहर निकलना चाहता है और तालिबान की पाकिस्तान से नज़दीकी के कारण उसे पाकिस्तान के सहयोग की ज़रूरत है.

पाकिस्तान को भी अपने आर्थिक हालात से निपटने के लिए अमरीकी मदद चाहिए. ऐसे में तालिबान के मसले पर पाकिस्तान से एक सकारात्मक भूमिका निभाने की उम्मीद थी. यही वजह हो सकती है कि इमरान ख़ान से मुलाक़ात के बाद ट्रंप ने कश्मीर मसले पर मध्यस्थता की पेशकश कर दी थी.

लेकिन, तालिबान से वार्ता विफल होने के बाद फिलहाल उसका इतना महत्व नहीं रहा. ऐसे में अमरीका के लिए पाकिस्तान की स्थिति कमज़ोर हो गई है. पर यहां हिंदुस्तान की स्थिति मजबूत हो सकती है अगर वो व्यापार में अमरीका के साथ सहयोग करे.

साथ ही नरेंद्र मोदी को भारत में भी इसका फ़ायदा मिलेगा. अमरीका से अच्छे संबंध होना न सिर्फ़ भारतीय बाज़ारों में एक अच्छा माहौल बनाएगा बल्कि लोगों में भी मोदी की एक मजबूत छवि बनाएगा.

भारत के लिए एक समस्या ये भी है कि कश्मीर मसला फिर से चर्चा में आ गया है. मानवाधिकार संगठनों से लेकर विदेशी मीडिया वहां लगी पाबंदियों पर चर्चा कर रहे हैं. ये मुद्दा इतना ज़ल्द ख़त्म होने वाला नहीं है.

बीजेपी की हिंदुत्वादी राजनीति भी देश में लोकतंत्र को कमज़ोर करती महसूस होती है. अगर मोदी अल्पसंख्यक समुदाय के ख़िलाफ़ हो रही घटनाओं को रोक पाएं और अपने ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे को सच करें तो उन्हें सही मायनों में जीत मिल सकती है.

दूसरी तरफ़ ह्यूस्टन में नरेंद्र मोदी का सिर्फ़ स्वागत ही नहीं हो रहा है बल्कि उनके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन भी हो सकते हैं.

ऐसे में अगले दिन के अख़बारों में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के साथ-साथ उनके विरोध की ख़बरें भी होंगी. एक तरह से ये नरेंद्र के लिए पूरी जीत तो नहीं होगी लेकिन मिलीजुली जीत होने वाली है.

कमलेश

बीबीसी संवाददाता ( बीबीसी हिंदी से साभार )

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