न्याय के लिए संघर्षरत मज़दूरों की कैसे मनेगी दिवाली?

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एक तरफ पटाखे की शोर है, चाइनीस झालरों की चमक है, बाजार लकदक है व सामान खरीदने के लिए धक्का-मुक्की मची हुई है और पूरा पर्यावरण दूषित है। वहीं दूसरी ओर देश के अलग-अलग हिस्सों में मजदूर हक़ के लिए, न्याय और इंसाफ के लिए लगातार संघर्षरत हैं।

लेकिन सरकारें, शासन-प्रशासन-पुलिस-श्रम अधिकारी खामोश हैं। न्याय देने की जगह मज़दूरों के दमन पर उतारू हैं। असल में मज़दूरों के लिए यह काली दिवाली है!

कैसी दिवाली: न्याय की जगह दमन

दार्जिलिंग हिल्स में बोनस के लिए संघर्षरत और अनशन को मजबूर मज़दूरों के लिए दशहरा दुख में गुजर, वहीं आंदोलन की नेतृत्वकारी हिल प्लांटेशन इंप्लाइज यूनियन (एचपीईयू) के दो साथियों को दीपावली से ठीक 2 दिन पहले पुलिस ने उठा लिया और न्यायालय ने उनको जमानत भी नहीं दी।

वही उत्तराखंड सरकार की पुलिस ने अनशनरत डॉल्फिन महिला मज़दूरों के साथ भारी बदसलूकी की, मारपीट की, उनके कपड़े तक फाड़ दिए और जबरिया अनशन स्थल से उठाकर अस्पताल पहुंचा दिया। ऐसे में डॉल्फिन मज़दूर काली दिवाली मना रहे हैं।

उधर गुड़गांव मानेसर में 12 वर्षों से संघर्षरत मारुति के मज़दूर भारत में जापानी संविधान लागू होने के खिलाफ जूझ रहे हैं। वे संघर्षों की दिवाली मानते हुए धरना स्थल पर 1 नवंबर को विविध कार्यक्रम करेंगे।

क्यों संघर्षरत हैं मज़दूर?

हरियाणा: संघर्षरत मारुति मानेसर के मज़दूर

12 साल से संघर्षरत मारुति सुजुकी मानेसर के मज़दूरों का संघर्ष नए तेवर के साथ आगे बढ़ रहा है। आईएमटी मानेसर (गुड़गांव) तहसील पर 18 सितंबर 2024 से मज़दूरों का अनिश्चितकालीन धरना और क्रमिक अनशन जारी है।

मारुति के मज़दूर सन 2012 में फर्जी तरीके से निकाले गए 556 स्थाई और करीब 1800 ठेका मज़दूरों की कार्यबहाली तथा ठेका और अस्थाई मज़दूरों के उचित वेतन वृद्धि और स्थाईकरण की मांग को लेकर संघर्षरत हैं। वे भारत में लागू जापानियों के क़ानून का भी विरोध कर रहे हैं।

दार्जिलिंग: चाय बागान श्रमिकों का संघर्ष

दार्जिलिंग हिल्स के चाय बागान मज़दूर बोनस की न्यायसंगत माँग को लेकर जुझारू संघर्ष कर रहे हैं। इस बीच लॉन्गव्यू चाय बागान मज़दूरों का रिले अनशन 8 अक्टूबर से जारी है। पूरे संघर्ष और अनशन में महिला मज़दूरों की भागीदारी जोरदार और जुझारू है।

इससे कुछ दिनों पूर्व चाय बागान मालिक के अत्याचार व लूट के खिलाफ दार्जिलिंग स्थित लॉन्गव्यू चाय बागान के श्रमिक-कर्मचारियों ने महत्वपूर्ण संघर्ष के माध्यम से प्राथमिक जीत हासिल की थी। इसी बीच चाय बागान में बोनस भुगतान की मनमानी का एक बड़ा मुद्दा सामने आ गया, जिससे पहाड़, तराई, डुअर्स के सभी चाय बागान मज़दूर आंदोलन की राह पर निकल पड़े।

लॉन्गव्यू चाय बागान मज़दूर करीब 17 करोड़ रुपये के अपने बकाया की मांग कर रहे हैं, जिसमें पीएफ बकाया, ग्रेच्युटी और यहां तक ​​कि दैनिक वेतन, बोनस आदि का बकाया भी शामिल है।

उत्तराखंड: डॉल्फिन, लुकास टीवीएस, हेंकल मज़दूरों का संघर्ष

डॉल्फिन कंपनी (पंतनगर) के मज़दूर प्रबंधन और शासन-प्रशासन-सरकार की मिली भगत से न्यूनतम वेतन, बोनस जैसे मूल अधिकारों में डकैती आदि के खिलाफ लंबे समय से संघर्षरत हैं। प्रबंधन ने मनमाने तरीके से सैकड़ों स्थाई मज़दूरों से जबरिया इस्तीफा लेकर ठेके में नियोजित कर दिया और 48 स्थाई मज़दूरों का अवैध रूप से गेट बंद कर दिया। उधर प्रशासन ने 6 मज़दूरों व सहयोगियों पर गुंडा ऐक्ट थोपा दिया।

वर्तमान में प्रबंधन की मनमानी और श्रम कानूनों के खुले उल्लंघन और सरकार-प्रशासन के दमन के खिलाफ स्थानीय गाँधी पार्क में धरनारत हैं और महिला मज़दूरों सहित 6 मज़दूर अनिश्चितकालीन अनशन पर हैं, जबकि प्रशासन अपने ही कराए गए समझौते से भी मुकर जा रहा है।

यूनियन बनाने के कारण दमन के शिकार लुकास टीवीएस (पंतनगर) के मज़दूर विगत एक साल से संघर्षरत व धरनारत हैं। मज़दूरों की कार्यबहाली, मांग पत्र के निस्तारण, पूर्व में किए गए समझौते के अनुपालन, यूनियन की मान्यता जैसी उनकी मांगें बेहद बुनियादी और न्याय संगत हैं।

हेंकेल एड़हेसिब टेक्नोलॉजी इंडिया के मज़दूर यूनियन महामंत्री के गैरकानूनी गेटबंदी के खिलाफ और और माँगपत्र के समाधान के लिए स्थानीय गांधी पार्क में धरनारत हैं।

इसी तरह सिड़कुल पंतनगर स्थित करोलिया लाइटिंग में यूनियन के अध्यक्ष व महामंत्री गैरकानूनी बर्खास्तगी के शिकार हैं। इंटरार्क पंतनगर व किच्छा के कई मज़दूर अवैध बर्खास्तगी झेल रहे हैं। ऐसे ही तमाम कंपनियों के मज़दूर अवैध बर्खास्तगी के शिकार हैं, जिनकी दिवाली काली हो चुकी है।

यह एक ऐसी नंगी सच्चाई है जो केवल आन्दोलनरत मज़दूरों के लिए ही नहीं बल्कि कई अन्य मज़दूरों के लिए भी सवाल बनकर खड़ा है। कई कंपनियों ने तमाम मज़दूरों, विशेष रूप से ठेका मज़दूरों को बोनस तक नहीं दिया, महीने के अंत में त्यौहार होने के कारण कई जगह वेतन तक नहीं मिला। ऐसे में वे भी दिवाली कैसे मनाएं?

मज़दूर साथियों को सोचना होगा!

हर बार की तरह यह दिवाली भी दरअसल मुनाफाखोरों के मुनाफा बटोरने का ही पर्व है। जिन मज़दूरों के पॉकेट में बोनस या वेतन या उनकी गाढ़ी कमाई से जुटे हुए पैसे आ भी जाते हैं, वह भी इसी बाजार के हवाले हो जाते हैं। मज़दूर फैक्ट्री में खून पसीना बहाकर मालिकों का मुनाफा बढ़ाते हैं तो जो कुछ पैसा मिल जाता है वह बाजार से बादशाहों की हवाले हो जाता है।

हालांकि सबसे बड़ी समस्या उन मज़दूरों को होती है, जिनको न कोई वेतन मिला है, ना कोई बोनस है और वह अपने हक़ के लिए आंदोलन करने को मजबूर है। उनकी दिवाली संघर्षों की दिवाली है।

संघर्षरत उन मज़दूरों के दिलों में एक ख्वाब बसा हुआ है कि वास्तव में उनकी सच्ची दिवाली कब मानेगी, खुशियां उनके घर कब लौटेंगी?

दिवाली की खुशियों के शोर में डूबे मज़दूर साथियों को इसपर भी सोचना होगा!

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