कैसा था भगत सिंह और साथियों की सहयोगी क्रांतिकारी दुर्गा भाभी का स्कूल: एक अनुभव

स्मृति दिवस (15 अक्टूबर): क्रांतिकारी धारा की कर्मठ सिपाही दुर्गा भाभी का लखनऊ मांटेसरी इंटर कॉलेज और उनकी संवेदनशीलता पर वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता साथी आदियोग की जुबानी…
शहीद भगवती चरण बोहरा की पत्नी दुर्गा भाभी एचएसआरए की सक्रिय भागीदार रहीं। वही दुर्गा भाभी जो भगत सिंह की मेम साहिब बनकर उनको अंग्रेजों के चक्रव्यूह से निकालने की जांबाजी दिखलाई थी। उसी दुर्गा भाभी द्वारा आज़ादी के बाद लखनऊ में एक मांटेसरी स्कूल और शहीद शोध केन्द्र स्थापित किया गया था। आजीवन सक्रिय रहते हुए 15 अक्टूबर, 1999 को उन्होंने गाजियाबाद में अंतिम सांस ली थी।
लखनऊ मांटेसरी इंटर कॉलेज और उनकी संवेदनशीलता पर वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता साथी आदियोग का अनुभव हम यहाँ साझा कर रहे हैं।

गर्व है कि दुर्गा भाभी द्वारा स्थापित लखनऊ मांटेसरी इंटर कॉलेज में मैंने 12वीं तक पढ़ाई की। मैंने उन्हें बहुत करीब से देखा जाना। समझा कि कितनी ग़ज़ब किरदार थीं दुर्गा भाभी।
लखनऊ मांटेसरी स्कूल के नाम के साथ अभी इंटर कालेज जुड़ा ही था। हम 11वीं के छात्र थे। हमने मांग नहीं की थी लेकिन एक दिन दुर्गा भाभी ने घोषणा कर दी कि कालेज में छात्र संघ का चुनाव होगा। दो दिन चुनाव प्रचार किया जा सकेगा। हाथ के बने पोस्टर लगाये जा सकेंगे। नारों से कालेज के अंदर और बाहर भी दीवार रंगे जाने की मनाही होगी। मैंने भी अध्यक्ष पद के लिए परचा भरा था। प्रचार में बहुत मेहनत की लेकिन हार गया।
मुझे यह भी गर्व है कि दुर्गा भाभी के सामने कितनी ही बार भाषण दिया था मैंने और उनकी तारीफ़ भी बटोरी थी। 15 अगस्त, 26 जनवरी जैसे मौकों पर भाषण देने को तैयार रहता था, पहले से भाषण देने का पूर्वाभ्यास में लगा रहता था।
ऐसा ही वाकया 5 सितंबर शिक्षक दिवस का याद है। इस मौके पर फड़कते भाषण के लिए सूत्र की तलाश में था। अचानक कहीं से यह लाइन हाथ लगी कि ‘जिस देश का बच्चा भूखा है फिर उसकी जवानी क्या होगी, जिस देश का शिक्षक भूखा है फिर उसकी कहानी क्या होगी।’ मैंने इसी के सहारे भाषण को विस्तार दिया कि तमाम शिक्षक किस तरह अभाव में जीते हैं, कि उन्हें जीवन चलाने के लिए कितना कम मिलता है, कि यह देश और समाज के लिए ठीक नहीं। वगैरह, वगैरह।
अगले दिन पता चला कि यह सब बक कर मैंने ठीक नहीं किया। पीटी टीचर ने मुझे बुलाया, दोनों हाथ आगे करने को कहा और उस पर सटाक सटाक छड़ी रिसीद कर दी। कहा कि बहुत हीरो बनते हो, तुमने पूरे कालेज में सबके सामने मेरी बेइज्जती की। मैं कुछ समझ नहीं पाया। दोबारा पिटने के डर से चुप रह गया। कुछ दिनों बाद उसी टीचर ने मुझे बुलाया। प्यार से मेरी पीठ थपथपाई। कहा कि तुमने मेरा भला कर दिया। फौरन नहीं समझ सका कि अचानक यह बदलाव कैसे, यह मेहरबानी क्यों?
पता चला कि शिक्षक दिवस के तुरंत बाद दुर्गा भाभी ने पूछताछ की थी और उन्हें पता चला था कि पीटी के टीचर का वेतन बहुत कम है और शायद इसीलिए बच्चों को पीटने की उनकी शिकायतें बहुत आती हैं। उनका वेतन तो बढ़ा ही, उन्हें स्थाई भी कर दिया गया।
अनजाने में दिये गये मेरे भाषण ने कमाल कर दिया। उस टीचर के प्रति मेरा ग़ुस्सा काफ़ूर हो गया। दया जैसा भाव भी उमड़ आया।
इस कदर संवेदनशील थीं दुर्गा भाभी।
दुर्गा भाभी जब तब कालेज का राउंड लगाती थीं। और तब छड़ी साथ रखनेवाले शिक्षक झटपट छड़ी हटा दिया करते थे। छड़ी देखते ही आग बबूला हो जाया करती थीं। छड़ीबाज शिक्षक बच्चों की तरह सफ़ाई देने लगते थे। बच्चों की मारपिटाई के खिलाफ़ इतनी सख़्त थीं अपनी दुर्गा भाभी।
कालेज परिसर में ही उनका आवास भी था और उसके बड़े हिस्से में शहीद शोध केंद्र भी था और उसका पुस्ताकालय भी। यह आज भी है लेकिन उसकी रौनक नहीं।
उसके लान में थीं दुर्गा भाभी। कालेज के राउंड पर निकलने को थीं। अचानक कोई साहब आ गये। पूछा, कैसे आना हुआ, कोई काम है मुझसे? उन साहब ने जवाब दिया- नहीं, बस आपके दर्शन को आ गया। दुर्गा भाभी ने तपाक से कहा- आपको मेरे नाम से ग़लतफ़हमी हुई शायद। मैं कोई देवी नहीं। दर्शन करना हो तो किसी मंदिर में जायें। यह तो बस कालेज है। शहीद शोध केंद्र भी है। चाहें तो घूम लें। इतना कह कर तेज़ क़दमों के साथ दुर्गा भाभी कालेज के राउंड पर निकल गयीं।