ऐतिहासिक अखिल भारतीय किसान सम्मेलन सम्पन्न; 25 सितंबर को होगा ‘भारत बंद’

एसकेएम के अखिल भारतीय सम्मेलन के दूसरे दिन किसान आंदोलन को देश के गांव-गांव तक फैलाने के संकल्प के साथ 25 सितंबर को ‘भारत बंद’ व 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर किसान रैली का आह्वान हुआ।
जनविरोधी नीतियाँ रद्द करो! 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर किसान रैली सफल बनाओ!
किसान आंदोलन के 274वें दिन संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) का दो दिवसीय अखिल भारतीय सम्मेलन आज संपन्न हो गया। सिंघु बॉर्डर पर आयोजित सम्मेलन में किसान आंदोलन को देश के गांव-गांव तक विस्तार देने का संकल्प पारित किया गया। इसके साथ ही एसकेएम ने मुज़फ्फ़रनगर में 5 सितंबर की संयुक्त किसान रैली को सफल बनाने की अपील की।
अखिल भारतीय सम्मेलन ने आज सर्वसम्मति से देश के कोने-कोने तक किसान आंदोलन का विस्तार करने और 25 सितंबर, 2021 को एक दिवसीय भारत बंद का आह्वान करने के बाद संपन्न हुआ। इसने किसानों से यह भी आह्वान किया कि वे मुज़फ्फ़रनगर में संयुक्त किसान मोर्चा की रैली को विरोध का एक विशाल प्रदर्शन बनाने के लिए पूर्ण प्रयास करें।

सम्मेलन के दूसरे दिन शुक्रवार को 2 सत्र हुए। पहले और अहम सत्र में महिलाओं, छात्रों, युवाओं और अन्य श्रमजीवी वर्गों से संबंधित मसलों पर यहां चर्चा हुई। अंतिम समापन सत्र में कई प्रस्ताव पारित हुए। इसी के साथ 25 सितंबर को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया गया।
इससे पूर्व सम्मेलन के पहले दिन, 26 अगस्त को काले कानूनों के साथ, औद्योगिक श्रमिकों, कृषि श्रमिकों, ग्रामीण गरीबों और आदिवासी मुद्दों पर गहन चर्चा हुई थी और किसान आंदोलन को देश के कोनों तक पहुंचाने की योजनाओं पर गहन मंथन हुआ।
विभिन्न किसानों, कृषि श्रमिकों, ट्रेड यूनियनों, महिलाओं, छात्रों, युवाओं, व्यापारी निकायों के 90 वक्ताओं को, 2000 से अधिक प्रतिनिधियों ने 3 कृषि अधिनियमों को रद्द करने, सी2+50 प्रतिशत के एमएसपी पर सभी कृषि उपज की खरीद की कानूनी गारंटी के लिए, नए बिजली बिल को निरस्त करने और एनसीआर में वायु गुणवत्ता के नाम पर किसानों पर मुकदमा चलाने पर प्रतिबंध लगाने के नारे लगाए और हवा में बंधी मुट्ठी लहराते हुए उन्हें प्रोत्साहित किया।
सम्मेलन के दौरान अल्पसंख्यकों पर सांप्रदायिक हमलों करने और देश की प्राकृतिक संपत्ति और सार्वजनिक क्षेत्र को कॉर्पोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बेचने के खिलाफ भी नारे लगाए। इन तथा अन्य संबंधित विषयों पर प्रस्तावों को मंजूरी दी गई।
सम्मेलन के दो दिन आंदोलन के विविध पहलुओं पर चर्चा
शुक्रवार को संपन्न हुए किसानों के अखिल भारतीय सम्मेलन के समन्वयक ने कहा कि दो दिवसीय कार्यक्रम सफल रहा और 22 राज्यों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें न सिर्फ कृषि संघों के बल्कि महिलाओं, मजदूरों, आदिवासियों के साथ-साथ युवाओं और विद्यार्थियों के कल्याण के लिए काम करने वाले संगठनों के सदस्य भी शामिल हुए।
सम्मेलन के दौरान, पिछले नौ महीनों से चल रहे किसानों के संघर्ष पर चर्चा और विचार-विमर्श हुआ, और कृषि कानूनों के खिलाफ उनके आंदोलन को अखिल भारतीय आंदोलन बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
आंदोलन को विस्तारित करने का संकल्प
दो दिवसीय सम्मेलन ने तीन कानूनों, एमएसपी और अन्य की मांग पर चर्चा की और प्रत्येक पहलू पर एक विस्तृत प्रस्ताव को मंजूरी दी। इसने किसानों से एसकेएम की राज्य व जिला इकाइयों का गठन करने और सभी सहायक संगठनों के साथ राज्यों और जिलों में संघर्ष करने, सम्मेलनों, रैलियों का आयोजन करने, टोल वसूली का विरोध करने और किसानों की देशभक्ति मांगों को स्वीकार करने से इनकार करने के लिए भाजपा और एनडीए नेताओं के खिलाफ विरोध करने का आह्वान किया।
कन्वेंशन ने देखा कि जहां किसानों ने सरकार को सच्चाई दिखाने के लिए एक विशाल, लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण आंदोलन का निर्माण किया था, वहीं कॉरपोरेट मुनाफे के हितों की सेवा करने के लिए अपनी अंधी प्रतिबद्धता में, सरकार हठ पर अड़ी रही और उसने मांगें मानने से इनकार कर दिया।
कन्वेंशन ने समझा कि सरकार द्वारा सुझाए गए, ‘समाधान’ के सभी प्रस्ताव, कृषि के कॉर्पोरेट अधिग्रहण, किसानों की भूमि और आजीविका के नुकसान और पर्यावरण, पारिस्थितिकी और जैव विविधता को नुकसान की किसानों की आशंका में कोई राहत नहीं देते हैं।
सम्मेलन ने, किसानों को, आरएसएस-भाजपा के सभी उकसावों, सरकार द्वारा निराधार और झूठे आरोप लगाने, कठोर कानूनों के तहत फर्जी रूप से पाबंध करने के बावजूद, देश को लूट से बचाने हेतु, नागरिकों को पेरित करने के लिए, शांतिपूर्ण विरोध जारी रखने का आह्वान किया।
कन्वेंशन ने समझा कि इस आंदोलन ने सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के लोगों को एकजुट करने में एक महत्वपूर्ण काम किया है और कॉरपोरेट लूट से मुक्त आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में, सबसे उत्पीड़ित वर्गों के विश्वास और भागीदारी को प्रेरित किया है।
यह भारत के मेहनतकशों के सभी वर्ग पर हमला है
आयोजन समिति के संयोजक, डॉ. आशीष मित्तल ने कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि आज पूरा किसान समुदाय कृषि, खाद्य भंडारण और कृषि बाज़ार के सभी पहलुओं पर कॉर्पोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नियंत्रण से लड़ने के लिए मजबूर है। किये जा रहे इन परिवर्तनों से किसान ऋण, आत्महत्या और भूमि से विस्थापन में व्यापक वृद्धि होगी।
उन्होंने कहा कि यह हमला किसानों और खेतिहर मजदूरों तक सीमित नहीं है। यह भारत के मेहनतकश लोगों के सभी वर्गों पर चौतरफा हमला हैं।
उन्होंने निजीकरण का जिक्र करते हुये कहा कि देश की संपत्ति, जो अपने लोगों को रोजगार और सुरक्षा प्रदान करने के लिए है, जैसे रेलवे, पावर ट्रांसमिशन लाइन, प्राकृतिक गैस संसाधन, दूरसंचार परियोजनाएं, खाद्य भंडारण, बीमा, बैंक, आदि, को बेचे जा रहा है। 4 श्रम कोड के माध्यम से औद्योगिक श्रमिकों के मूल अधिकारों पर हमला किया जा रहा है।

गरीबों के लिए कल्याण और सेवा क्षेत्र, विशेष रूप से सब्सिडी और राशन पर निशाना साधा जा रहा है। आवश्यक वस्तुओं, विशेषकर ईंधन की कीमतों में भारी वृद्धि की जा रही है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा क्षेत्र का निजीकरण किया जा रहा है और इन क्षेत्रों के विकास में केवल कॉरपोरेट का वर्चस्व है।
उन्होंने कहा कि – “अर्थव्यवस्था के विकास के नाम पर, हिंदुत्व की आड़ में, जो लोगों की चेतना को सुन्न करने का काम करती है, और लोगों की स्वतंत्रता पर फासीवादी हमलों के माध्यम से, आम लोगों को आतंकित करके, कॉर्पोरेट की लाभ वृद्धि में मदद की जा रही है जिसके लिए मानव जीवन के हर पहलू का मुद्रीकरण किया जा रहा है।“
इस ऐतिहासिक आंदोलन ने सरकार के हमलों को चुनौती दी है
डॉ. मित्तल ने कहा कि – “यह ऐतिहासिक किसान संघर्ष, जिसने अपने ऊपर सरकार के हमले को चुनौती दी है, केवल अपने अस्तित्व की लड़ाई नहीं है। यह देश को भारतीय और विदेशी कॉरपोरेट्स द्वारा पूरी तरह से अपने कब्जे में लेने से बचाने की लड़ाई है। यह वास्तविक आत्म-निर्भर विकास का मार्ग है, जो अपने देशभक्त नागरिकों के जीवन और आजीविका की रक्षा करता है। इसने करोड़ों लोगों के विश्वास को प्रेरित किया है और आने वाले दिनों में भी ऐसा करती रहेगी।“
25 सितंबर को ‘भारत बंद’ का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा, “यह पिछले साल इसी तारीख को आयोजित इसी तरह के ‘बंद’ के बाद हो रहा है और हम उम्मीद कर रहे हैं कि यह पिछले साल के बंद की तुलना में ज्यादा सफल रहेगा, जो कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के बीच हुआ था।”
650 से ज्यादा किसानों की कुर्बानी
जन विरोधी तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के विरोध प्रदर्शन को बृहस्पतिवार को नौ महीने पूरे हो गए। आंदोलन में 650 किसान कुर्बानी दे चुके हैं। 37 हजार से अधिक लोगों पर केस हो चुके हैं।