एससी-एसटी और महिला फिल्मकारों को फंड देने की आलोचना कर घिरे गोपालकृष्णन, दलित गायिका ने जताया विरोध

प्रसिद्ध फिल्मकार अडूर गोपालकृष्णन ने एससी-एसटी और महिला फिल्म निर्माताओं को सरकारी फंड देने की योजना की आलोचना की, जिसका दलित गायिका पुष्पावती ने विरोध किया है. मंत्री साजी चेरियन ने अडूर की टिप्पणियों को खारिज करते हुए योजना को आवश्यक और सफल बताया है.
नई दिल्ली: केरल के केआर नारायणन संस्थान में जातिवाद के खिलाफ छात्रों के विरोध प्रदर्शन को नीचा दिखाते हुए, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और महिला फिल्म निर्माताओं को वित्त पोषित करने की सरकारी परियोजना की आलोचना करते हुए प्रसिद्ध फिल्म निर्माता अडूर गोपालकृष्णन ने 3 अगस्त को तिरुवनंतपुरम में फिल्म नीति सम्मेलन के समापन पर एक विवादास्पद भाषण दिया.
द न्यूज मिनट की रिपोर्ट के अनुसार, अडूर ने कहा, ‘मैंने अभी तक दो करोड़ रुपये से ज़्यादा की कोई फिल्म नहीं बनाई है, फिर भी सरकार एससी/एसटी फिल्म निर्माताओं को डेढ़ करोड़ रुपये दे रही है. इससे भ्रष्टाचार का रास्ता खुलेगा, मैंने उन्हें चेतावनी दी थी, लेकिन फिर भी कोई बदलाव नहीं आया. इरादा भले ही नेक हो, लेकिन फिल्म निर्माताओं को फिल्म बनाने से पहले महीनों के गहन प्रशिक्षण की ज़रूरत होती है.’
उन्होंने आगे कहा कि फिल्म निर्माताओं को दी जाने वाली राशि को 1.5 करोड़ रुपये से घटाकर 50 लाख रुपये कर दिया जाना चाहिए. अडूर ने कहा, ‘इस परियोजना के तहत चुने गए सभी फिल्म निर्माताओं को शिकायतें हैं. उन्हें लगता है कि वे बस पैसा लेकर अपनी फिल्में बना सकते हैं. उन्हें बताया जाना चाहिए कि यह जनता का पैसा है. दी जाने वाली राशि कम की जानी चाहिए ताकि उन्हें फिल्म बनाने की सभी मुश्किलों का पता चल सके. यह पैसा व्यावसायिक या सुपरस्टार फिल्में बनाने के लिए नहीं, बल्कि अच्छा सिनेमा बनाने के लिए है. यही बात महिलाओं पर भी लागू होती है. आप सिर्फ़ इसलिए पैसा नहीं देते क्योंकि वे महिला हैं, बल्कि उन्हें प्रशिक्षित भी किया जाना चाहिए.’
जब वह बोल रहे थे, दलित गायिका पुष्पावती अपना विरोध जताने के लिए खड़ी हुईं, लेकिन उनके आसपास मौजूद किसी व्यक्ति ने उन्हें चुप करा दिया और माइक भी नहीं दिया. अपने भाषण को जारी रखते हुए अडूर ने कुछ और विवादास्पद बयान दिए. उन्होंने के.आर. नारायणन संस्थान के छात्रों द्वारा निर्देशक शंकर मोहन के कथित जातिवादी कार्यों के खिलाफ की गई हड़ताल का ज़िक्र किया, जिसके परिणामस्वरूप अंततः उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. अडूर, जो उस समय संस्थान के अध्यक्ष थे और शंकर के बचाव में आगे आए थे, ने भी इस्तीफा दे दिया था. सम्मेलन में उन्होंने अपना रुख दोहराया और शंकर को एक महान व्यक्ति और हड़ताल को अनावश्यक बताया. उन्होंने दावा किया कि उन दोनों ने एक उपेक्षित फिल्म संस्थान का स्तर ऊंचा उठाया था, लेकिन जब वह वास्तव में अच्छा प्रदर्शन करने लगा था, तब उन्हें संस्थान छोड़ना पड़ा.
इससे पहले उनके भाषण में एक अभिजात्य भाव भी झलक रहा था जब उन्होंने श्री थिएटर में एक फिल्म देखने के अपने अनुभव का ज़िक्र किया और कहा कि कैसे ‘चाला के मज़दूरों का एक गिरोह’ पिछले दरवाज़े को तोड़ रहा था, जो ‘सेक्स सीन’ देखना चाहते थे. अडूर ने कहा, ‘इसके बाद हमने तय किया कि फिल्म समारोह सबके लिए नहीं, बल्कि सिर्फ़ उन लोगों के लिए खुले होने चाहिए जो सिनेमा की कद्र करते हैं, जो फिल्मों का अध्ययन या लेखन करते हैं. इसीलिए हमने प्रतिनिधि शुल्क लेना शुरू किया और समारोह को सदस्यों के लिए बंद कर दिया. लेकिन अब, आधे प्रतिनिधि समारोह के लिए थिएटर के बाहर खड़े रहते हैं. अब प्रतिनिधि शुल्क बढ़ाने का समय आ गया है.’ सम्मेलन में हुई चर्चाओं के बारे में अपनी रिपोर्ट में सांस्कृतिक मामलों के मंत्री साजी चेरियन ने अडूर द्वारा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और महिला फिल्म निर्माताओं को वित्त पोषण देने की परियोजना के बारे में की गई टिप्पणी का उल्लेख किया.
मंत्री साजी ने कहा, ’98 सालों से (पहली मलयालम फिल्म बनने के बाद से) एससी/एसटी समुदाय के फिल्म निर्माताओं को मुख्यधारा में आने का मौका नहीं मिला. और मलयालम सिनेमा में कितनी महिलाओं ने फिल्में बनाई हैं? यह सरकार द्वारा शुरू की गई सर्वश्रेष्ठ परियोजनाओं में से एक है. विशेषज्ञों की एक समिति द्वारा उनके काम की बारीकी से जांच करने और उसे सराहनीय पाए जाने के बाद फिल्म निर्माताओं का चयन किया गया. इस परियोजना से बनी सभी फिल्में असाधारण रही हैं. हम लैंगिक और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ-साथ विशेष रूप से सक्षम लोगों के काम को भी मान्यता देना और उन्हें जगह देना चाहते हैं.’
गायिका पुष्पावती, जिन्हें विरोध करने पर चुप करा दिया गया था, ने बाद में कहा कि मंत्री का जवाब सटीक था. उन्होंने कहा, ‘मुझे बुरा लगा कि मंच पर कोई भी (अडूर की बात पर) प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था. जब उन्होंने ये टिप्पणियां कीं, तो कई लोगों ने तालियों से उनका स्वागत किया. मैं उनका और उनके काम का सम्मान करती हूं, लेकिन मुझे यह कहना होगा. एससी/एसटी समुदाय सैकड़ों वर्षों से उत्पीड़ित रहा है. हमारे पूर्वज बिना किसी आय के गुलामों की तरह जीवन जीते रहे. हमें दशकों पहले ही शिक्षा मिली. फिल्म नीति का उद्देश्य ऐसी सभी चिंताओं को दूर करना है, लेकिन उनका दृष्टिकोण प्रगति-विरोधी लग रहा था. इसका विरोध होना चाहिए और हमारी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि उन्होंने उनकी राय को अस्वीकार कर दिया है.’