गिग मज़दूर और गिग अर्थव्यवस्था शोषण की नई व्यवस्था

gig-worker-1

मज़दूरों के नई श्रेणी : क्या है गिग मज़दूर?

भारत सहित पूरी दुनिया में तमाम दिग्गज मुनाफाखोर कंपनियां आज इस रूप में काम कर रही हैं, जिसमें ‘हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा’। ऐसी ही अर्थव्यवस्था का नाम है गिग और यहाँ काम करने वाले गिग मज़दूर कहलाते हैं। वर्तमान दौर में बगैर किसी उत्पादन की प्रक्रिया से गुजरे बगैर कुछ बनाए सिर्फ ऑनलाइन माध्यम से मज़दूरी पर खटाने का नया धंधा है – गिग।

आज तकनीक और कम्युनिकेशन के माध्यमों से पूरी जिंदगी बदल गई है। इंटरनेट और स्मार्टफोन लोगों के अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं और इसका सबसे अधिक फायदा मुनाफाखोर कंपनियों को हो रहा है। इसी में नए नए तौर-तरीके निकालने की प्रक्रिया में बिग अर्थव्यवस्था का जन्म हुआ और गिग मज़दूर के शोषण करने की एक नई व्यवस्था पैदा हुई।

इसे औद्योगीकरण 4.0 का नाम दिया जा रहा है। गिग इकॉनमी में फ्रीलान्स कार्य और एक निश्चित अवधि के लिये प्रोजेक्ट आधारित रोज़गार शामिल हैं। दरअसल, औद्योगीकरण 4.0 मुख्य रूप से अनवरत इंटरनेट कनेक्टिविटी, रोबोटिक्स, आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, नैनो टेक्नोलॉजी और वर्चुअल रियलिटी पर आधारित है।

Gig Economy Explained | Thimble

आख़िर कौन हैं ये गिग वर्कर?

गिग वर्करों में शामिल हैं स्विग्गी, ज़ोमेटो, अमेज़ॉन, फ्लिपकार्ट जैसी कम्पनियों के होम-डिलिवरी बॉयज़, तमाम ई-कॉमर्स संस्थाओं व कूरियर सेवाओं के कर्मी, उबर और ओला जैसे वाहन के चालक। इनमें से एक हिस्से को ‘प्लैटफॉर्म वर्कर’ कहा जाता है, जैसे अमेज़ॉन कर्मचारी या अमेज़ॉन टर्क। इनमे फ्री लांसर, फील्ड नेशन, रॉकेट लायर, बार्ड जैसी तमाम कंपनियाँ शामिल हैं।

कई कर्मी ‘ऑन-कॉल’ कर्मी हैं, जो कई तरह की सेवाएं देने वाली कम्पनियों के लिए बुलावे पर काम करते हैं, जैसे पाइपलाइन, ऑडिटिंग, बिजली आदि का काम करने वाले या ऑटो मेकैनिक, जीएसटी फाइल करने वाले आदि। एचआर प्रोफेशनल भी अपनी मैनपावर प्लानिंग इसी आधार पर तैयार करने पर जोर दे रहे हैं।

The Uber-Zomato economy: India's gig workers struggle to make ends meet  with low pay, no benefits

इस व्यवस्था में कंपनियां शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, भोजन, खुदरा व्यापार, घर या प्लाट खरीद-बिक्री या किराए से संबंधित, लेखन, अनुवाद, तकनीकी सहायक और कानूनी सेवाओं जैसे क्षेत्रों में काम कराए जा रहे हैं।

ये औपचारिक रूप से कर्मकार की श्रेणी में नहीं आते। तकनीकी रूप से या कानूनी तौर पर कर्मचारी-मालिक वाला रिश्ता इनके साथ नहीं है। इन्हें ‘फ्रीलांसर’ करार दिया गया है। इन्हें जो पैसा मिलता है उसे ‘सर्विस चार्ज’ का नाम दिया जाता है।

फ्रीलांसर होने के नाते इन कर्मियों को भ्रम होता होगा कि वे स्वयं अपने मालिक हैं। पर अंत में तो पूँजीवाद ही उनका मालिक है।

Few rights, inadequate pay: A study reveals the plight of India's gig  economy workers

ना वेतन, ना सामाजिक सुरक्षा

शोषण  की इस नई व्यवस्था में काम करने वाले मज़दूर/कर्मचारी का ना तो कोई किसी प्रकार का कोई वेतन होता है, ना कोई साप्ताहिक छुट्टी, ना मेडिकल लीव, यहाँ तक कि काम के भी कोई घंटे निर्धारित नहीं है।

कार्य के दौरान किसी भी प्रकार की क्षति या चोट, अपंगता या मृत्यु तक पर किसी प्रकार के किसी क्षतिपूर्ति या मुआवजे का भी कोई प्रावधान नहीं है। इसके ठीक विपरीत वह मालिक कंपनी जिसके लिए मज़दूर खट रहा होता है, उसको वह अरबपति से खरबपति तक बना रहा होता है।

India's gig economy on rise; 70% firms used gig workers in 2018 - The Week

सबसे बड़ी बात यह है कि इन्हें कर्मकार का वास्तव में दर्जा भी नहीं प्राप्त है और अभी जो 44 श्रम कानूनों को समाप्त करके चार श्रम श्रम संहिताएँ आ रही हैं, उसमें भी यह लिखा है कि चूंकि इसमें मज़दूर और कंपनी के बीच में परंपरागत नियोक्ता और कर्मकार का रिश्ता नहीं है, इसलिए वे इन प्रावधानों से बाहर हैं।

हालांकि सामाजिक सुरक्षा संहिता में सुविधा व सुरक्षा के नाम पर झुनझुना पकड़ने का काम जरूर किया गया है। जो द्यावे हैं, वे भी इतने अस्पष्ट हैं कि असल में क्या सुरक्षा या लाभ मिलेगा, गोलमाल है। सरकार द्वारा जून, 2021 तक एक वेब पोर्टल शुरू करने कि बात कही जा रही है, जिसके तहत रजिस्ट्रेशन होगा।

दूसरों की कृपा पर निर्भरता, आमदनी अनिश्चित

इस तरह के कार्य में लगे श्रमिकों में लंबे समय तक बेरोजगारी तथा अनिश्चित आमदनी का भय सदैव बना रहता है। इस व्यवस्था में पेंशन व अन्य परिलब्धियाँ कंपनी द्वारा नहीं प्रदान की जाती हैं।

इसका सर्वाधिक प्रभाव अकुशल श्रमिकों पर पड़ता है, क्योंकि उनके लिए कुशल श्रमिकों की अपेक्षा अवसर की उपलब्धता कम है। सामाजिक-आर्थिक असमानता बढ़ने का खतरा सदैव बना रहता है, जिससे समावेशी विकास प्रभावित होता है।

श्रमिकों को अपनी जरूरतों के बावजूद किसी भी समय  काम आने पर खुद को उपलब्ध कराना पड़ता है और हमेशा अगले काम के लिए तैयार रहना मजबूरी होती है। इसमें नियमित वेतन, लाभ और एक दैनिक दिनचर्या के साथ एक स्थिर नौकरी की सुरक्षा जो पीढ़ियों के लिए काम करती है, तेजी से अतीत की बात बन रही है।

India gig workers, hit by Covid, need tech for financial resilience: Report  | Business Standard News

नए रोजगार के नाम पर धोखा

इस समय भारत में करीब तेरह करोड़ गिग मज़दूर हैं और यह संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। यहाँ तक कि मोदी सरकार जिन नए रोजगार पैदा होने के दावे कर रही है, उनमें 56% गिग मज़दूर हैं, जो गिग अर्थव्यवस्था से जुड़े हैं। 

मोदी सरकार जिस तरीके से मौजूदा श्रम कानूनों को खत्म करके 4 श्रम संहिताएँ लाई है, उसमें गिग और प्लेटफार्म मज़दूरों की भारी तादात को बढ़ाने की फंडे मौजूद है। फिक्सड टर्म (नियत अवधि के रोजगार) का फंडा भी इसी का एक हिस्सा है। 

मतलब देसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की जो माँग रही है कि वे जब चाहें, जितनी देर चाहें, मज़दूर को रखकर अपना काम निकाल ले और जब चाहें बाहर का रास्ता दिखा दें। इसी अर्थव्यवस्था के ही रूप के तौर पर मज़दूरी घंटे, आधे दिन साप्ताहिक आदि के आधार पर भी निर्धारित करने की व्यवस्था बनाई गई है।

https://mehnatkash.in/2021/03/22/experts-told-how-the-new-labor-codes-will-make-workers-bonded/

कैसे काम करता है गिग मज़दूर

आइए एक उदाहरण से समझते हैं।

ओला-उबैर जैसी टैक्सी प्रदाता कंपनियां देखें। इसमें गाड़ी का ड्राइवर एक स्मार्टफोन के माध्यम से ओला/उबर कंपनी से जुड़ा रहता है। ग्राहक ओला/उबर कंपनी को फोन करता है, ऑनलाइन कंपनी से सेवा मांगता है और ग्राहक के पास गाड़ी का नंबर और लिंक पहुंच जाता है। गाड़ी का ड्राइवर यानी वह मज़दूर ग्राहक के पास उपलब्ध हो जाता है। बदले में ग्राहक कंपनी को भुगतान करता है। कंपनी अपना कमीशन काट लेती है और ड्राइवर को भुगतान कर देती है।

Covid-19: Reimagining laws to provide adequate protection to gig workers |  Business Standard News

अब यहाँ ध्यान देने की जरूरत है। ग्राहक कंपनी से जुड़ा है, सेवा देने वाला कर्मचारी – ड्राइवर कंपनी का नहीं है। वह सिर्फ अपनी सेवा दे रहा है। बदले में उसे एक राशि मिल जाती है।

मालिक बनता खरबपती, गिग मज़दूर रहता है कंगाल

नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार एक मज़दूर को 8 घंटे से ज्यादा खटने के बावजूद न्यूनतम मज़दूरी जितने रुपए भी नहीं मिलते हैं।

इसके बदले उबेर का मालिक ट्राविस कॉर्डेल कैलिफोर्निया में बैठा-बैठा अरबपति बन जाता है। वर्तमान में उसकी घोषित संपत्ति ढाई अरब डालर (करीब 1 लाख 75 हजार करोड़ रुपए) से भी ज्यादा है। जबकि कार्यरत ड्राइवर अपनी गाड़ी की क़िस्त चुकाने में ही ज्यादा हिस्सा खपा देता है तंगहाली बनी रहती है।

gig economy: Gig Economy workers are far away from the financial ecosystem,  BFSI News, ET BFSI

महत्वपूर्ण बात यह है कि उबर-ओला में सेवादाता ड्राइवर को कंपनी ने नियुक्त नहीं किया है और वह किसी प्रकार से उसकी जिम्मेदारी का हिस्सा भी नहीं रहता। इसीलिए इस अर्थव्यवस्था और मज़दूरी के इस तरीके की शुरुआत करने वाले अमेरिका में सबसे तेजी से गिग अर्थव्यवस्था और गिग मज़दूरों की संख्या बढ़ी। अमेरिका में वर्तमान में 36 फ़ीसदी मज़दूर गिग अर्थव्यवस्था का हिस्सा है।

यही है गिग अर्थव्यवस्था और इसमें कार्यरत कर्मचारी को गिग मज़दूर कहते हैं।

Blog: Managing talent in the gig economy: Human capital implications —  People Matters

कौशल विकास यानी फोकट के मज़दूर

भारत में शुरू किए गए कथित कौशल विकास योजनाएं एक तरफ फैक्ट्रियों में नीम ट्रेनी के नाम पर फोकट के मज़दूर उपलब्ध कराती हैं, तो दूसरी ओर गिग मज़दूरों की संख्या और शोषण बढ़ाने में मददगार हैं। जो श्रमिक गिग अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह से निर्भर हैं, वे लगातार काम की तलाश में मानसिक उत्पीड़न के शिकार बने रहते हैं।

गौरतलब है कि दुनिया के शीर्ष पूँजीवादी देश आज माल उत्पादन पर आधारित अर्थव्यवस्था पर काम नहीं कर रहे हैं। हथियार उत्पादन और मीडिया कारोबार के आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में रुचि घटी है। इसके विपरीत वे तकनीक आधारित शोषण और मुनाफाखोरी की इस नई व्यवस्था को तेजी से बढ़ा रहे हैं, क्योंकि बगैर लाइबिलिटी और बेहद कम पूँजी में तेजी से भारी मुनाफा होता है। यह अर्थव्यवस्था उसी का हिस्सा है।

सच यह है कि गिग अर्थव्यवस्था में गिग मज़दूर का वास्तव में कोई लाभ नहीं है और ना ही कोई भविष्य है। इसके विपरीत गिग कंपनियों के अच्छे दिन आते हैं और लगातार आ रहे हैं।

भूली-बिसरी ख़बरे