मनरेगा मज़दूरों को लॉकडाउन के दौरान पूरा पारिश्रमिक भुगतान

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किसान संगठन द्वारा उच्चतम न्यायालय में दाख़िल याचिका

नई दिल्ली: मज़दूर किसान शक्ति संगठन द्वारा उच्चतम न्यायालय में दाख़िल याचिका में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों को दिए गए उस निर्देश की आलोचना की गई है, जिसमें कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान जहां भी संभव हो, मनरेगा मज़दूरों को काम की अनुमति होगी.कोरोना वायरस की वजह से देश में हुए लॉकडाउन की अवधि के दौरान मनरेगा मजदूरों को पूरे पारिश्रमिक के भुगतान के लिए उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है.यह जनहित याचिका मजदूर किसान शक्ति संगठन के कार्यकर्ता अरुणा रॉय और निखिल डे ने दायर की है. इसमें कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए घोषित 21 दिन के लॉकडाउन की अवधि के पूरे पारिश्रमिक का मनरेगा श्रमिकों को भुगतान करने का केंद्र और अन्य प्राधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

याचिका में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों को दिए गए उस निर्देश की आलोचना की गई है, जिसमें कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान जहां भी संभव है मनरेगा मजदूरों को काम की अनुमति होगी.अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर इस याचिका में कहा गया है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून के तहत इस योजना के लिये सात करोड़ से ज्यादा श्रमिक पंजीकृत हैं और उन्हें लॉकडाउन की अवधि के दौरान अन्य कर्मचारियों की तरह ही काम पर माना जाना चाहिए. इन श्रमिकों को पूरी अवधि के पारिश्रमिक का भुगतान किया जाना चाहिए.याचिका में रोजगार गारंटी योजना के तहत 7.6 करोड़ से ज्यादा ऐसे श्रमिकों के स्वास्थ्य और आजीविका के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए.

याचिका में यह भी दलील दी गयी है कि राष्ट्रीय आपदा कानून के तहत 24 मार्च को दिया गया आदेश केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के सभी मंत्रालयों और प्रतिष्ठानों पर लागू होता है.याचिका के अनुसार, केंद्र सरकार ने अपने आदेश के तहत इस संक्रमण से बचाव के लिए सामाजिक दूरी बनाए रखने के मकसद से नागरिकों की जिंदगी बचाने के लिए आवश्यक सेवाओं के अलावा समूचे देश में लॉकडाउन किया है.याचिका में कहा गया है कि मनरेगा श्रमिकों को काम करने की अनुमति देने के बारे में ग्रामीण विकास मंत्रालय के दिशानिर्देश लॉकडाउन के आदेश के खिलाफ हैं और इससे मनरेगा श्रमिकों के जीवन और स्वास्थ को खतरा हो सकता है, क्योंकि उनके काम को देखते हुए सामाजिक दूरी बनाए रखना संभव नहीं होगा.

याचिका के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान मनरेगा श्रमिकों से काम करने के लिए कहने से संविधान के अनुच्छेद 14 में प्रदत्त समता के अधिकार का हनन होता है.बता दें कि कोरोना वायरस के कारण देश में लागू 21 दिनों के लॉकडाउन की वजह से प्रवासी मजदूरों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है. बीते दिनों विभिन्न राज्यों से मजदूर पैदल ही अपने घरों की तरफ पलायन शुरू कर दिया था.मजदूरों के पलायन से जुड़ी एक अन्य याचिका पर सुनवाई करते हुए बीते 30 मार्च एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भय एवं दहशत कोरोना वायरस से बड़ी समस्या बनती जा रही है.

शीर्ष न्यायालय ने इन लोगों के पलायन को रोकने के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में केंद्र से रिपोर्ट देने को कहा था.बीते दिनों पलायन करने वाले मजदूरों के पारिश्रमिक को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल एक अन्य जनहित याचिका में कहा गया था कि देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से रोज़गार गंवाने वाले लाखों कामगारों के लिए जीने के अधिकार लागू कराने की आवश्यकता है. सरकार के 25 मार्च से 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा के बाद ये कामगार बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.इसमें दलील दी गई थी कि लॉकडाउन की वजह से इन कामगारों के सामने उत्पन्न अप्रत्याशित मानवीय संकट को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को आपदा प्रबंधन कानून, 2005 के प्रावधानों के अनुरूप पर्याप्त उपाय करने होंगे.

द वायर से साभार

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