फ़्रांस की जनता क्रांति की राह पर

France-General-Strike-December-5-2019.jpg

फ्रांस में कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन के बावजूद वहां की जनता फ्रांस के राष्ट्रपति की जनविरोधी नीतियों, पुलिसिया दमन स्वास्थ्य व्यवस्था की खराब हालत और तमाम नस्लीय और दक्षिणपंथी प्रवृत्तियों के खिलाफ सड़कों पर संघर्षरत हैं।

स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली के ख़िलाफ़ आक्रोश

17 जून को फ़्रांस में 220 से ज्यादा रैलियां हुई। कोरोना वायरस महामारी के दौरान फ़्रांस में अस्पतालों और स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली और स्वास्थ्य कर्मियों, नर्सिंग होम एम्पलाई, नर्स के साथ ही रहे दुर्व्यवहार और पुलिसिया दमन के खिलाफ लॉकडाउन के बावजूद हजारों लोग सड़कों पर उतरे। स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की मांग कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों के इस प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों की स्वास्थ्य मंत्रालय के सामने पुलिस से झड़प भी हुई।

नस्लीय हिंसा और भेदभाव के ख़िलाफ़ है फ़्रांस की जनता

अमेरिका में 28 मार्च को एक अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की एक स्वेत पुलिसकर्मी द्वारा जानबूझ की गई हत्या के बाद नस्लीय भेदभाव और हिंसा के ख़िलाफ़ उग्र हुए आंदोलन की आग पूरे यूरोप में फ़ैल गई है और फ़्रांस भी इससे अछूता नहीं है। वहां की जनता का कहना है कि फ़्रांस की पुलिस और अभिजात वर्ग के सामाजिक व्यवहार में नस्लीय भेदभाव शामिल है और अश्वेत और प्रवासियों के साथ भेदभाव किया जाता है।

2 जून को करीब 20 हज़ार लोग नस्लीय भेदभाव के ख़िलाफ़ और अमेरिकी जनता के संघर्ष के समर्थन में पेरिस की सड़कों पर उतरे। 2016 में पेरिस में भी एक अश्वेत अदमा ट्राओर की पुलिस वालों की पिटाई की वजह से हुई मौत हुई थी। आई कांट ब्रीथ और ब्लैक लाइव्स मैटर के नारे यहां भी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान पुलिस द्वारा की गई ज्यादतियां और अत्याचार भी इस विरोध प्रदर्शन लोगों के बड़ी संख्या में शामिल होने की वज़ह हैं।

आंदोलनकारियों का कहना है कि पेरिस की सड़कों पर अभी भी सामंती, नस्लीय सोच और रंगभेद को मानने वाले लोगों की मूर्तियां, स्मारक और गलियों के नाम मौजूद हैं। प्रदर्शकारियों की मांग है कि इनको सार्वजनिक स्थानों से हटाया जाए।

वहीं पुलिसकर्मियों के एक हिस्से ने भी बेहतर कार्य परिस्थितियों की मांग को लेकर पेरिस पुलिस मुख्यालय के सामने हथकड़ियां रखकर प्रदर्शन किया। दरअसल इससे पहले भी राष्ट्रपति मॉरोकों की एकीकृत पेंशन योजना के ख़िलाफ़ नवंबर से जारी ट्रेड यूनियनों के आंदोलन के दौरान भी कुछ पुलिस संघों ने इस हड़ताल का समर्थन किया था और बेहतर कार्य परिस्थितियों की मांग की थी।

फ़्रांस में जनविद्रोह रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं

फ़्रांस में 2016 में श्रम कानूनों में संशोधन के ख़िलाफ़ शुरू हुआ जनआंदोलन जो नवउदारवादी नीतियों के ख़िलाफ़ सचेतन संघर्ष की शुरुआत थी वो 2018 में फ्रांस में पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि के ख़िलाफ़ पैदा हुए येलो वेस्ट आंदोलन और उसके बाद 2019 में पेंशन रिफॉर्म्स को लेकर परिवहनकर्मियों और ट्रेड यूनियनों की लंबी हड़ताल तक तीखे वर्ग संघर्ष का रूप ले चुकी है।

प्रदर्शनकारियों और नेतृत्व कर रहे संगठनों का मानना है कि यह लड़ाई अभिजात और मजदूर वर्ग के बीच है। अमीर लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि उनके उनका मुनाफा मजदूरों के पसीने से बनता है। आज जितने भी सामाजिक सुरक्षा कानून और श्रम कानून जनता को हासिल हुए हैं उसके लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है। हम इन अधिकारों को यूंही नहीं गवां सकते हैं।

2019 में पेंशन रिफॉर्म के खिलाफ शुरू हुए आंदोलन ने फ्रांस के विभिन्न हिस्सों में उठ रहे असंतोष की आवाज को संगठित कर दिया। फ़्रांस में मौजूदा वर्ग संघर्ष हिंसक रूप ले चुका है हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शनों में लगातार पुलिस के साथ प्रदर्शनकारियों की झड़प हुई है।

आंदोलन के अंदर सक्रिय दक्षिणपंथी खेमा उग्र प्रदर्शन को अराजकता के नाम पर ख़ारिज करने की कोशिश करता रहा है। लेकिन फ़्रांस के शहरी क्षेत्रों से दूर ग्रामीण क्षेत्र के लोग इन तमाम आंदोलनों से जुड़े। ग्रामीण क्षेत्रों में आंदोलन को व्यापकता मिली और वहां के लोगों को भी सामाजिक सुरक्षा में कटौती, सरकारी उदासीनता, नस्लीय हिंसा, प्रवासियों के दमन और पुलिसिया बर्बरता के खिलाफ आवाज उठाने के लिए एक प्लेटफार्म मिला। जनता की सीधी मांग थी कि सरकार 42 पेंशन नियमावलीयों को एक पॉइंट बेस्ड पेंशन स्कीम में बदलने के अपने फैसले को वापस ले और अभी तक इस को लेकर आंदोलनरत यूनियनों और सरकार के बीच में कोई सहमति नहीं बन पाई है।

राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक अधिकारों को लेकर सचेत है फ़्रांस और यूरोप की जनता

फिलहाल फ्रांस की जनता जिस तरह से लगातार पूंजीवादी नीतियों के पैरोकार राष्ट्रपति मैक्रों की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलनरत और समानता के अधिकार के लिए मुखर है इसने यूरोप के कई देशों में असमानता के खिलाफ संघर्ष को प्रेरित किया है और ट्रेड यूनियन की लड़ाई को वर्ग संघर्ष की समझ के साथ राजनीतिक लड़ाई में बदलने की भी कोशिश की है।