यूपी पुलिस द्वारा ‘द वायर’ के ख़िलाफ़ एफआईआर

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जायज़ अभिव्यक्ति और तथ्यात्मक जानकारी पर भी खफा हो जाती है योगी सरकार
नई दिल्ली: योगी सरकार सही आलोचना से इस कदर डरती है कि जायज बात कहने पर भी अखबारों व पत्रकारों के खिलाफ बेवजह मानहानि का मुकदमा लिखवा देती है। ताजा मामला द वायर का है। बीते बुधवार को उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक व्यक्ति की शिकायत पर द वायर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 188 और 505(2) के तहत केस दर्ज किया. धारा 188 के तहत सरकारी आदेश की अवहेलना और धारा 505 (2) के तहत विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता, घॄणा या वैमनस्य की भावनाएं पैदा करने के उद्देश्य से सूचना प्रसारित आरोप में सजा का प्रावधान है.
एफआईआर में खबर के एक पैराग्राफ का उल्लेख किया गया, जिसके आधार पर ये आरोप लगाए गए हैं. हालांकि एफआईआर में खबर की हेडलाइन और डेटलाइन का कहीं कोई जिक्र नहीं है.
इस पैराग्राफ के आधार पर द वायर के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया है.

द वायर के संस्थापक संपादकों ने इसे लेकर एक बयान जारी किया है जो कि नीचे दिया जा रहा है.
हमें सोशल मीडिया के माध्यम से पता चला है कि फैजाबाद में यूपी पुलिस द्वारा द वायर के खिलाफ आईपीसी की धारा 188 और 505 (2) के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई है.
एफआईआर में दी गईं दलीलें दर्शाती हैं कि इन आरोपों से दूर-दूर तक हमारा कोई नाता नहीं है. ये तथ्यात्मक सूचना और जायज अभिव्यक्ति पर हमला करने की कोशिश है.
ऐसा प्रतीत होता है कि यूपी पुलिस का काम मुख्यमंत्री की आलोचना करने वालों के पीछे पड़ना ही रह गया है. एफआईआर दर्ज करना प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है.
ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने पिछले साल जून 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित किए गए निर्देशों से कुछ सीखा नहीं है जिसमें कोर्ट ने एक ट्वीट के कारण यूपी पुलिस द्वारा की गई एक पत्रकार की गिरफ्तारी को खारिज किया था और तुरंत रिहा करने का आदेश दिया था.
कोर्ट ने कहा था कि स्वतंत्रता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता है.
एफआईआर में जो कहा गया है कि हमने कहा है कि- मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने 25 मार्च को, प्रधानमंत्री द्वारा कोरोनावायरस से निपटने के लिए घोषित किए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बाद अयोध्या में एक सार्वजनिक धार्मिक कार्यक्रम में भाग लिया था- एक प्रमाणित बात है.