कृषि कानूनों जैसा असंवैधानिक है समुद्री मात्स्यकी विधेयक 2021
दिल्ली में तेज बारिश के बावजूद भारत की संसद के समानांतर जंतर-मंतर पर बुधवार को पांचवें दिन भी ”किसान संसद” जारी रहा। बरसते पानी और जलभराव के बीच किसानों का कहना है कि हम ठंड हो बारिश पीछे हटने वाले नहीं है।
‘किसान संसद’ की कार्यवाही के बीच चले सत्र में अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक तरीके से केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2020 में लाए गए कॉन्ट्रेक्ट खेती कानून पर चर्चा हुई। आज 200 किसानों का एक और जत्था पहले की तरह अनुशासित और शांतिपूर्ण तरीके से सिंघू बॉर्डर से दिल्ली पहुंचा।
किसानों की लड़ाई कॉर्पोरेट और कॉर्पोरेटपरस्त सरकार से
दो सत्रों में चली चर्चा में यह बात आई कि चुनिंदा कॉरपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए मोदी सरकार कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का कानून लेकर आई है। भाजपा सरकार कॉरपोरेट घरानों के साथ मिलकर काम करती है। इन्हीं घरानों के दबाव में वे ऐसे काले कृषि कानून लेकर आई है। सरकार छोटे और गरीब किसानों की जमीन अंबानी और अडानी को देना चाहती है।
किसानों ने कहा कि आज सरकार संसद के अंदर और बाहर किसानों से चर्चा करने से बचते हुए दिखाई दे रही है। मोदी सरकार आज डब्ल्यूटीओ और चुनिंदा उद्योगपतियों की गुलाम बन चुकी है। आज किसानों की लड़ाई देश के प्रमुख कॉरपोरेट घरानों, डब्ल्यूटीओ से है। शाम को सरकार के इस काले कानून के खिलाफ प्रस्ताव भी पेश किया गया।
देश की संसद बार-बार स्थगित, किसान संसद बारिश में भी जारी
किसानों ने कहा कि संसद की कार्यवाही तो बार-बार स्थगित हो रही है लेकिन किसान संसद बारिश के बाद भी चलती रही। देश की संसद में सभी सांसद एसी में बैठे हैं लेकिन देश का अन्नदाता खुले में बैठकर अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है।
बीते आठ महीनों से किसान दिल्ली की सीमाओं पर धूप, वर्षा और ठंड झेल रहे हैं, अब तक 600 से ज्यादा किसान शहीद हो गए हैं, लेकिन केंद्र सरकार कोई सुध नहीं ले रही है। ऐसे में जमीन, खेती और किसानी को बचाने के लिए लड़ाई आगे भी जारी रहेगी।

विचार-विमर्श और बहस अनुशासित तरीके से जारी
संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि बहस में भाग लेने वाले कई सदस्यों ने कॉन्ट्रैक्ट खेती के साथ अपना निजी अनुभव भी साझा किया। इसमें किसानों के पूरे सत्र की मेहनत के बाद कंपनियों द्वारा उपज को एक या दूसरे बहाने की आड़ में अस्वीकार कर देना शामिल था। उन्होंने इस बारे में बात की कि कैसे यह केंद्रीय कानून कॉर्पोरेट खेती और संसाधन हथियाने के बारे में है। पर्यावरणीय गिरावट के अलावा, कॉन्ट्रैक्ट खेती से खाद्य सुरक्षा पर संभावित खतरे पर प्रकाश डाला गया।
सदस्यों ने किसानों के साथ क्रूर मजाक और कानून (“मूल्य आश्वासन”) के नाम में विडंबना की ओर भी इशारा किया, जबकि यह कुछ और ही था। कॉन्ट्रैक्ट खेती कानून पर बहस कल भी जारी रहेगी।
जबकि किसान संसद ने विस्तृत विचार-विमर्श और बहस के अपने अनुशासित तरीके को जारी रखा, भारत की संसद ने एक और तस्वीर पेश की। लेकिन वहां भी कृषि आंदोलन का विषय-वस्तु परिलक्षित हुआ। एसकेएम यह संज्ञान में लेता है कि प्रश्नकाल ने किसानों की चिंताओं और वर्तमान संघर्ष को दर्शाया। भवन में प्ले-कार्ड ले जाकर प्रदर्शित की गई।
संसद के सातवें दिन, सदन को बार-बार स्थगित करना पड़ा। एसकेएम यह भी संज्ञान में लेता है कि जहां सात विपक्षी दलों ने कृषि कानूनों सहित महत्वपूर्ण मामलों पर भारत के राष्ट्रपति को एक संयुक्त पत्र भेजा, वहीं 14 दलों ने अपनी अगली कार्रवाई की योजना बनाने के लिए एक संयुक्त बैठक की, जब सांसद स्थगन प्रस्ताव नोटिस भी दे रहे थे।

समुद्री मात्स्यकी विधेयक 2021 खतरनाक
जहां लाखों किसान जो फसलों और बागों की खेती करते हैं, या पशुपालन करते हैं, असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक कृषि कानूनों के खिलाफ आठ महीने से अधिक समय से 3 कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीँ किसानों की एक अन्य श्रेणी भारतीय समुद्री मात्स्यकी विधेयक 2021 के खतरे का सामना कर रहे हैं। यह विधेयक वर्तमान सत्र में संसद में पेश करने के लिए सूचीबद्ध है। विधेयक का प्रारूपण गैर-भागीदारी वाला रहा है जिसमें मछुआरों से परामर्श या उन्हें प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया है।
मछुआरों के संगठन इस ओर इशारा कर रहे हैं कि यह भारत सरकार द्वारा मछुआरे समुदायों की उपेक्षा और गैर-मान्यता है। वे इस ओर भी इशारा कर रहे हैं कि एक बार फिर समुद्री मात्स्यकी विधेयक राज्य सरकार की शक्तियों का उल्लंघन और उनकी वित्तीय स्थिति को भी कमजोर करता है। इस विधेयक में पंजीकरण और लाइसेंस प्रक्रिया बनाई गई है जो पारंपरिक मछुआरे समुदायों के लिए बेहद कष्टमय है और उनके जीवन और आजीविका के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है।
मछुआरे संगठन इस ओर भी इशारा कर रहे हैं कि कैसे यह विधेयक समुद्र के मछली पकड़ने के संसाधनों को कॉर्पोरेट के द्वारा अधिग्रहण की सुविधा प्रदान करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि विधेयक में और भी कई गंभीर खामियां हैं, और मछुआरे संगठनों की मांग है कि इसे संसद में न लाया जाए। तमिलनाडु जैसी राज्य सरकारें भी इस मुद्दे को केंद्र सरकार के सामने उठा रही हैं।
बारिश के बीच किसानों की दिनचर्या और लंगर सुचारु
किसानों के विरोध स्थलों पर तेज़ बारिश हो रही है। इन ‘विरोध बस्तियों’ में किसान खुशी-खुशी और बिना किसी शिकायत के अपनी दिनचर्या जारी रखे हुए हैं। जंतर-मंतर पर किसान संसद में भी बारिश से कार्यवाही बाधित नहीं होने दी गई है। सदस्यों ने समय सीमा का पालन करते हुए विषय पर विस्तार से चर्चा की। इस संसद में गीले फुटपाथ पर बैठकर किसान दोपहर का भोजन खुशी-खुशी खा रहे हैं।
प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सरकारी सुरक्षात्मक तंत्र नहीं
पिछले सप्ताह की रिपोर्टों के अनुसार, इस तरह की कमी और असमान वर्षा के कारण महाराष्ट्र (जो कुछ स्थानों पर बाढ़ और अन्य में वर्षा की कमी से जूझ रहा है), राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश आदि में बुवाई में कमी आई है। हमेशा की तरह, ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में किसानों के लिए सरकार की ओर से कोई सुरक्षात्मक तंत्र नहीं है।
संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी (244वां दिन, 28 जुलाई 2021) विज्ञप्ति के साथ
जारीकर्ता –बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मोल्ला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी), युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव