क़ानून वापसी पर किसान दृढ़, 26 को ट्रैक्टर रैली तय

लंबी लड़ाई के लिए कमर कस चुके हैं किसान
26 जनवरी को दिल्ली में किसान ट्रैक्टर जुलूस निकाल कर शक्ति प्रदर्शन करेंगे। प्रस्तावित ट्रैक्टर जुलूस या ऐसे किसी अन्य प्रदर्शनों पर रोक की मांग को लेकर दिल्ली पुलिस समेत विभिन्न प्राधिकारों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है और रोक लगाने की अपील की है। इस बारे में अदालत में 19 को सुनवाई होगी। किसान नेताओं ने स्पष्ट किया कि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के सामने पेश नहीं होंगे।
किसान नेताओं ने साफ किया है कि वे लंबी लड़ाई को तैयार हैं और दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किसानों का धरना-प्रदर्शन ‘वैचारिक क्रांति’ है। दिल्ली में बैठे किसान नेताओं ने इस आशय के बयान दिए, वहीं नागपुर की यात्रा पर गए किसान नेता राकेश टिकैत ने वहां मीडियाकर्मियों से कहा, ‘हम मई 2024 तक प्रदर्शन करने को तैयार हैं। हमारी मांग है कि तीनों कानूनों को वापस लिया जाए और सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी गारंटी प्रदान करे।’
इससे पहले दिल्ली में सिंघू सीमा पर किसान यूनियन के नेता योगेंद्र यादव ने कहा, ‘हम गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में बाहरी रिंग रोड पर ट्रैक्टर परेड करेंगे। गणतंत्र दिवस परेड में कोई भी व्यवधान नहीं होगा। किसान अपने ट्रैक्टरों पर राष्ट्रीय ध्वज लगाएंगे।’ किसान नेता दर्शन पाल सिंह ने कहा, ‘50 किलोमीटर लंबी इस परेड में 1,000 ट्रैक्टर हिस्सा लेंगे और इन ट्रैक्टरों पर तिरंगे झंडे लगाए जाएंगे। हम आशा करते हैं कि दिल्ली और हरियाणा पुलिस इसमें सहयोग करेंगी। परेड शांतिपूर्ण होगी।’
मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हजारों किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने नए कृषि कानूनों को किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से प्रमुख कृषि सुधारों के रूप में प्रस्तुत किया है, लेकिन प्रदर्शनकारी किसान चिंता जता रहे हैं कि इससे वे कॉरपोरेट घरानों के मोहताज हो जाएंगे। सरकार का कहना है कि ये आशंकाएं गलत हैं। सरकार कानूनों को निरस्त करने से इनकार कर चुकी है। किसानों ने आशंका जताई है कि नए कानून एमएसपी के सुरक्षा घेरे को समाप्त करने और मंडी प्रणाली को बंद करने का रास्ता साफ करेंगे।
दूसरी ओर, भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) नेता राकेश टिकैत ने रविवार को कहा कि किसान केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ ‘मई 2024 तक’ प्रदर्शन करने के लिए तैयार हैं और दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किसानों का आंदोलन ‘वैचारिक क्रांति’ है। नागपुर में मीडिया से टिकैत ने कहा कि वे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानूनी गारंटी चाहते हैं।
उन्होंने कहा, ‘यह दिल्ली से शुरू हुई किसानों की वैचारिक क्रांति है और विफल नहीं होगी। गांवों में किसान चाहते हैं कि हम तब तक नहीं लौटें जब तक तीनों कृषि विधेयकों को वापस नहीं लिया जाता। सरकार विधेयकों को वापस नहीं लेने के अपने रुख पर अड़ी है और आंदोलन लंबे समय तक चलता रहेगा।’ उन्होंने नए कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया लेकिन कहा कि शीर्ष अदालत लारा गठित समिति में जो सदस्य हैं, उन्होंने कृषि विधेयकों का समर्थन किया था। टिकैत ने कहा, ‘हम अदालत द्वारा गठित समिति के समक्ष नहीं जाना चाहते। सरकार ने भी कहा है कि सरकार और किसान इस मुद्दे पर समाधान खोज लेंगे।’
हम मई 2024 तक प्रदर्शन करने को तैयार हैं। हमारी मांग है कि तीनों कानूनों को वापस लिया जाए और सरकार एमएसपी को कानूनी गारंटी प्रदान करे। यह दिल्ली से शुरू हुई किसानों की वैचारिक क्रांति है और विफल नहीं होगी। गांवों में किसान चाहते हैं कि हम तब तक नहीं लौटें जब तक तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं लिया जाता।
-राकेश टिकैत, किसान नेता
नए कृषि कानूनों को लेकर 19 जनवरी को होने वाली दसवें दौर की वार्ता से पहले कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने रविवार को किसान नेताओं से फिर आग्रह किया कि वे अपना ‘अड़ियल’ रुख छोड़ दें और कानूनों की हर धारा पर चर्चा के लिए आएं। तोमर ने मध्य प्रदेश में अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र मुरैना रवाना होने से पहले पत्रकारों से कहा, ‘अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इन कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है तो ऐसे में अड़ियल रुख अपनाने का कोई सवाल हीं नहीं उठता है।’ उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि किसान नेता 19 जनवरी को होने वाली अगली बैठक में कानून की हर धारा पर चर्चा के लिए आएं। उन्होंने कहा कि कानूनों को निरस्त करने की मांग को छोड़कर, सरकार ‘गंभीरता से और खुले मन के साथ’ अन्य विकल्पों पर विचार करने के लिए तैयार है।
तोमर ने कहा कि सरकार ने कुछ रियायतों की पेशकश की थी, लेकिन किसान नेताओं ने लचीला रुख नहीं दिखाया और वे लगातार कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने दोहराया कि सरकार पूरे देश के लिए कानून बनाती है। कई किसानों, विशेषज्ञों और अन्य हितधारकों ने कानूनों का समर्थन किया है।
जनसत्ता से साभार