पाँच राज्यों का चुनावी समर : लुभावने नारों के बीच कहाँ गए जनता के “अच्छे दिन”

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महंगाई-बेकरी-तबाही झेलती, दम तोड़ती, अधिकारविहीन होती जनता क्या मोदी-योगी के कारनमें भूल जाएगी? या वह मुद्दाविहीन पार्टियों द्वारा जनता को बांटने के खेल का शिकार बनेगी?

पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में चुनाव की घोषणा के साथ ही एक तरफ तमाम चुनावी राजनीतिक दलों के बरसाती मेंढक उछल कूद मचाना शुरू कर दिए, वहीं दूसरी ओर संकटग्रस्त आम मेहनतकश जनता के सामने मुद्दा विहीन भाजपा-कांग्रेस-सपा सहित तमाम पार्टियां जनता को बांटने के खेल में मशगूल हो गई।

संघ-भाजपा की मोदी-योगी सरकार अपने कारनामों को छिपाने और जन विरोधी नीतियों से तंग आम मेहनतकश जनता को बांटने के लिए खतरनाक सांप्रदायिक खेल तेज कर दिया। उधर बीते वर्षों में जिल्लत, धोखा और संकट झेलती आम जनता का एक तबका अभी भी मदारियों का अंधभक्त बना बैठ है।

पांच राज्यों के यह चुनाव ऐसे समय हो रहे हैं, जब देश की आम मेहनतकश जनता ही नहीं मध्यम तबका भी तबाह और बेहाल है। दूसरी ओर 13 महीने के जुझारू संघर्ष के बाद किसानों ने एक शानदार जीत हासिल की है और धर्म-जाति के बंटवारे की दीवार को तोड़कर एक मजबूत एकता की मिसाल पेश की है।

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बांटो और लूटो – फिरकापरस्ती का खेल तेज

इस चुनाव में एक बार फिर मुख्य मुद्दों को पीछे धकेलने का काम किया जा रहा है।

उत्तराखंड के रुद्रपुर में गोकशी की घटना के बहाने दंगे का माहौल बनाया गया। विवादास्पद धर्मगुरु यति नरसिंहानंद ने हरिद्वार ‘धर्म संसद’ में भड़काऊ बयान और नरसंहार का आह्वान किया तो वसीम रिजवी से जितेंद्र नारायण त्यागी बने नए भगवाधारी ने खतरनाक बयान से माहौल ख़राब करने में भूमिका निभाई।

उधर हिन्दू जागरण मंच के नेता ने हरिद्वार के लक्सर-रुड़की चौराहे पर मंदिर तोड़ने की अफवाह फैलाई, तो केदारनाथ मंदिर को बम से उड़ाने की धमकी का मामला उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में सामने आया। इससे पूर्व मथुरा में लगातार सांप्रदायिक माहौल बनाने से लेकर तमाम हथकंडे जारी हैं।

जनता को बांटने के इस नफरती दौर में भड़काऊ बयान से लेकर मुस्लिम महिलाओं के प्रति “सुल्ली डील्स”  के बाद “बुल्ली बाई” एप्प के बहाने जारी सांप्रदायिक खेल बीमार मानसिकता की हद तक पहुंचाने का घिनौना नमूना है।

इन पाँच सालों में जनता पर बरपता रहा कहर

पिछले 5 वर्षों के दौरान उत्तर प्रदेश की योगी सरकार हो, उत्तराखंड की भाजपा सरकार या अन्य राज्य सरकारें, सबने एक के बाद एक मज़दूर-मेहनतकश की तबाही वाली नीतियों को अमल में लाने का ही काम किया है। दमन का पाटा लगातार तेज होता रहा है। ये राज्य सरकारें केंद्र की मोदी सरकार की कॉरपोरेट परस्त नीतियों को ही तेजी से लागू करने में मोदी से तेज गति से दौड़ लगाती रही हैं।

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छिनते रहे मज़दूरों के क़ानूनी अधिकार

मोदी सरकार की सरपरस्ती में मज़दूरों के लंबे संघर्षों के दौरान हासिल श्रम कानूनी अधिकारों को खत्म करके जो मालिक पक्षीय चार श्रम संहिताएं तैयार हुई हैं, उसको और तेजी से लागू करने में ये राज्य सरकारें, विशेष रूप से भाजपा शासित राज्यों ने तेजी से लागू किया। इन राज्यों ने संहिताओं की नियमावलियां भी तैयार कर दी हैं। ये पार्टियां चुनाव जीत कर इन्हें ही लागू करेंगी।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इस दिशा में तेज कदम बढ़ाते हुए उत्तरप्रदेश में 3 साल तो उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने 1000 दिनों के लिए श्रम कानूनों पर पाबंदी लगाई। केंद्र की नई श्रम संहिताओं के अनुरूप उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में मालिकों के मनमुआफ़िक बदलाव किए है।

योगी सरकार ने तमाम तरीकों से हड़ताल के संवैधानिक अधिकार को कुचला और कई क्षेत्रों में प्रतिबंध भी लगाए। स्थाई रोजगार की जगह फिक्स टर्म को कानूनी मान्यता दे दी और पूंजीपतियों के लिए पलक पावडे बिछा दिए।

यही खेल उत्तराखंड की तीन मुख्यमंत्रियों की भाजपा सरकारें भी करती रही और मज़दूरों के अधिकारों को कुचलती रही। मज़दूर-कर्मचारी सहित हक़ के हर आंदोलन का दमन किया। छँटनी-बंदी को बेलगाम बनाया। बिजली से लेकर तमाम सरकारी संस्थाओं-उद्यमों को बेचने, निजीकरण करने की दिशा में तेजी से कदम आगे बढ़ाया।

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कोरोना के बहाने जनता पर कहर, इलाज बिना बेमौत मरे लोग

कोरोना के बहाने जनता के सीमित अधिकारों को भी पाबंद कर दिया गया और पुलिस राज को बेलगाम बनाया गया। हजारों की संख्या में मज़दूर अपने छोटे-छोटे बच्चों और सामानों को लादे हुए मरते-कटते, घर वापसी की त्रासदपूर्ण यात्रा करते रहे। जिन्हें मुआवजे के नाम पर भी कुछ नहीं मिला।

योगी सरकार के कार्यकाल की शुरुआत में ही गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में दर्जनों बच्चों ने ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ दिया था। यह सिलसिला कोरोना काल में और भयावह रूप से सामने आया

यह याद रखना होगा कि देश और प्रदेश विशेष रुप से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कोरना महामारी से जितने लोग नहीं मरे, उससे ज्यादा दवा और इलाज के अभाव में बेमौत मारे गए। सार्वजनिक चिकित्सा व्यवस्था की पोल पूरी तरीके से खुल गई। ऑक्सीजन और वेंटिलेटर जैसी बेहद बुनियादी सुविधाओं के अभाव में लोग मरते रहे। नदियों में लाशें उतराती रहीं।

उत्तर प्रदेश में एनीमिया की कमी वाले बच्चे सर्वाधिक हैं, कुपोषण शीर्ष पर है, बाल मृत्यु दर की स्थिति चिंताजनक है, जबकि पूरे राज्य के सरकारी अस्पतालों में 60 फीसदी डॉक्टर कम हैं।

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महंगाई बेलगाम, जनता त्रस्त, अमीराजादों की चांदी

यह भी ध्यान रहे कि बेइन्तेहाँ बढाती महँगाई के दौर में मोदी-योगी राज में खुली लूट-खसोट के बीच पेट्रोल डीजल की कीमत ₹100 के पार तो खाने के तेल की कीमत ₹200 के पार पहुंच गई। इस बेलगाम लूट का ही परिणाम है की लॉकडाउन में देश के अरबपतियों की दौलत 35 फ़ीसदी की रफ्तार से बढ़ गई।

अडानी-अंबानी की संपत्तियां कुलांचे भरने लगी। और ठीक इसी दौरान लोगों की नौकरियां छिनती गईं। अप्रैल 2020 में हर घंटे लगभग 20 लाख लोगों के रोजगार छीन गए। बेरोजगारी बिकराल रूप लेती गई।

योगी राज में आंदोलनों का दमन तेज, विरोधियों को जेल

योगी सरकार ने विशेष सुरक्षा बल का गठन करके अपनी तानाशाही को बेलगाम बनाया। इस पूरे कार्यकाल में रोजगार सेवक, बेरोजगार छात्र नौजवान, रसोईया, शिक्षामित्र, आशा वर्कर, आंगनवाड़ी वर्कर, स्वास्थ्य मिशन कर्मी आदि के आंदोलनों का दमन किया। इसी कार्यकाल में एक लाख से ज्यादा स्थाई शिक्षकों को नौकरी से हटाया गया जिन्हें बाद में शिक्षामित्र बना दिया। राज्य कर्मचारियों के आंदोलन को दबाने के लिए दमनकारी एस्मा थोपा गया।

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महिला हिंसा शीर्ष पर; दलित-मुस्लिम विरोधी मुहिम तेज

महिलाओं के प्रति हिंसा लगातार आगे बढ़ती रही और महिला अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर पहुंच गया। चिन्मयानंद, कुलदीप सेंगर, नित्यानंद, कैलास आदि के कारनामे जगजाहिर हुए। उन्नाव की लड़की से लेकर हमीरपुर, हरदोई, हाथरस की दलित लड़की के साथ बलात्कार, हत्या; सहारनपुर की शब्बीरपुर में दलितों पर हुए हमले आदि महज बानगी हैं।

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक पूरे देश भर में उत्तर प्रदेश में साल 2020 में दलितों के खिलाफ सबसे अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए गए।

आम जनता को मूल मुद्दे से भटकाने के लिए गोरक्षा, लव जिहाद आदि के बहाने हमले बेलगाम रहे; सत्ता की सरपरस्ती में रहने वाले अपराधियों को खुली छूट मिली और सत्ता के विपरीत बोलने वालों की आवाज को कुचलने और निर्देशों को जेलों में ठूंसने का काम भी तेजी से चलता रहा।

यह वही योगी हैं जिन्होंने हठधर्मिता से अपने ऊपर पूर्व में लगे आपराधिक मुकदमों को स्वयं ही खत्म कर दिया था। और निर्दोषों पर फर्जी मुक़ादमें थोपने, हिरासत द्वारा सत्ता का खुला दुरुपयोग करते रहे।

पूरा योगीराज हिंदू फासीवाद की प्रयोगशाला बना हुआ है।

उत्तराखंड : भाजपा राज में 3 मुख्यमंत्री, जनता का दमन तेज, लूट बेलगाम

उत्तराखंड में पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार का एक भी मुख्यमंत्री 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सक। जब त्रिवेंद्र सिंह रावत के भ्रष्टाचार और कारनामों से जनता में नाराजगी बढ़ी तो तीरथ सिंह रावत और फिर पुष्कर सिंह धामी के रूप में महज 4 महीने के अंतराल पर तीन मुख्यमंत्री थोपकर जनता में फिर से साख बनाने की कोशिश की।

लेकिन इस पूरे दौर में मुख्यमंत्री का चेहरा कोई भी रहा हो ‘डबल इंजन’ की इन सरकारों का मुख्य एजेंडा देसी-विदेशी पूंजीपतियों से लेकर खनन माफियाओं के लूट को बेलगाम बनाना रहा।

मजदूरों-कर्मचारियों-महिलाओं का दमन करना, छँटनी-बंदी को बेलगाम बनाना, गैर कानूनी ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा देना, भोजन माता, आंगनवाड़ी, आशा वर्कर, संविदा कर्मियों तक के जायज संघर्षों को कुचलने का काम ही तेजी से बढ़ता रहा।

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मेहनतकश जनता से ठगी, युवाओं से धोखा

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की आम जनता के दुख दर्द को समझने की जगह पिछले 22 सालों से भाजपा और कांग्रेस की सरकारों ने और तबाह किया है। जल-जंगल-जमीन पर अपना हक और दूसरे राज्यों में पलायन रोककर रोजगार के अवसर मिलने का सपना भी तिरोहित हो गया।

सरकारी महकमों में छँटनी-बन्दी-निजीकरण के दौर में रोजगार समाप्त प्राय है। रोजगार के नाम पर सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र में जो मिला वह भी भयावह है।

ठेका-ट्रेनी के नाम पर ठगी के साथ तमाम कंपनियों में यह एक खेल बन गया है कि भारी सब्सिडी, टैक्स की रियायतओं आदि को लेकर राज्य में उद्योग लगाओ और रियायतों को हड़पने के बाद मज़दूरों के पेट पर लात मार कर पलायन कर जाओ। चाहे वह भास्कर, एस्कॉर्ट, ब्रुशमैन हो चाहे ताजा घटना में भगवती-माइक्रोमैक्स, आमूल ऑटो, एचपी इंडिया।

सरकारें छँटनी-बन्दी-बर्खास्तगी के ख़िलाफ़ संघर्षरत मज़दूरों का दमन ही करती रही हैं।

इलाज के नाम पर लूट बेहिसाब

उत्तराखंड देश में अकेला ऐसा राज्य है जहां पर स्वास्थ्य के नाम पर अंधी लूट है। सरकारी अस्पतालों में सबसे महंगी पर्ची व जांचें है, और जिसमें हर साल 10 फीसदी की और वृद्धि होती है। हालात ये हैं कि राज्य के सरकारी अस्पतालों से ज्यादा सस्ता इलाज झोलाछाप डॉक्टरों के पास मिलती है। कोरना महामारी में पूरे स्वास्थ्य महकमे का चेहरा पूरी तरह बेनकाब हो गया।

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तो आम जनता क्या करे?

ऐसे समय में आम जनता के सामने एक बार फिर यह सवाल खड़ा है कि आखिर विकल्प क्या है? यह साफ उजागर हो चुका है कि चुनाव में जो विकल्प मौजूद हैं उनसे जनता का कुछ भी भला होने वाला नहीं है। विभिन्न रंग-रोगन की ये सरकारें आम जनता को कुछ दे तो सकती नहीं लेकिन जाति के नाम पर, धर्म के नाम पर, क्षेत्र के नाम पर खून खराबे में जरूर धकेल सकती हैं। आज सबसे पहले मज़दूर-मेहनतकश साथियों को इससे सचेत होना होगा ।

यह सोचना होगा कि आजादी के 75 साल बाद भी देश-समाज के क्या हालात हैं और क्या इसी आजादी का सपना शहीदे आजम भगत सिंह और क्रांतिकारी विरासत के साथियों ने देखा था?

नहीं, उन्होंने एक ऐसे समाज का सपना देखा था, जहां हर हाथ को काम मिले हर पेट को रोटी, चौतरफा अमन चैन हो, उत्पादन बाजार की लिए नहीं बल्कि आम जनता की आवश्यकताओं के लिए हो। जहां आदमी द्वारा आदमी का शोषण ना हो।

जाहिरा तौर पर यह चुनाव भी गुजर जाएगा, लेकिन शहीद-ए=आजम भगत सिंह के सपने का समाज बनाने के लिए संघर्ष बाकी रहेगा, जिसके लिए मज़दूर-मेहनतकश को आगे आना होगा!

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