उत्तराखंड बाढ़ आपदा पीड़ितों को राहत व मुवावजे की माँग को लेकर नैनीताल में प्रदर्शन

आपदा से पूरी तरह रोजगार विहीन, घर विहीन होने के साथ सैकड़ों परिवार प्रभावित हैं, जबकि सरकारी राहत बेहद कम है। मंत्री और पक्ष-विपक्ष के विधायक-सांसद बेपरवाह व उदासीन हैं।
नैनीताल। उत्तराखंड बाढ़ आपदा पीड़ितों को राहत व मुवावजे की मांग को लेकर आज 9 नवंबर को उत्तराखंड स्थापना दिवस के अवसर पर विभिन्न जन संगठनों ने तल्लीताल डांट नैनीताल में एक दिवसीय धरना दिया, सभा की और कुमाऊँ आयुक्त के माध्यम से ज्ञापन भेजा।
कार्यक्रम की शुरुआत बाढ़ में अकाल मौत का ग्रास बने मृतकों के शोक में मौन धारण करने से हुई। प्रदर्शन में इंकलाबी मजदूर केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, मजदूर सहयोग केंद्र, ठेका मजदूर कल्याण समिति पंतनगर, प्रगतिशील भोजनमाता संगठन उत्तराखंड व भगवती श्रमिक संगठन सिडकुल पंतनगर के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।

सभा को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि बीते अक्टूबर माह की 18-19 तारीख को प्रदेश मे तेज बारिश से आयी आपदा ने नैनीताल, उधम सिंह नगर सहित कुमाऊं मंडल के सभी जिलों में भारी तबाही मचाई। आपदा के कारण जान माल की काफी क्षति हुई है।
करीब 80 लोग असमय काल के ग्रास बन गये। पहाड़ी जिलों मे कई स्थानों पर लोगों के खेत, मकान, दुकान, पालतू जानवर आदि सब कुछ बह गया, पानी मे बहने व मलबे के नीचे दबने से कई लोगों की जान चली गई तो कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए। राज्यमार्ग सहित गांवों को जोडऩे वाली संपर्क सड़कें क्षतिग्रस्त हो गई।
वक्ताओं ने कहा कि शासन-प्रशासन की अपेक्षित सक्रियता न होने व सड़कों के क्षतिग्रस्त होने के कारण पहाड़ी इलाकों मे पीड़ितों तक समय पर राहत सामाग्री नहीं पहुंच सकी और घायलों को समय पर चिकित्सा सुविधा नहीं मिल सकी। मैदानी इलाकों में बाढ़ के हालात पैदा हो गए। नैनीताल के मैदानी इलाकों व उधम सिंह नगर के कई इलाकों मे पानी दुकानों व रिहायशी इलाकों के घरों में भर गया। दुकानों और घरों का सारा सामान खराब हो गया। खेतों में खड़ी फसलें नष्ट हो गई, भू कटान के कारण लोगों की जमीन भी नदियों में बह गई।
वक्ताओं ने कहा कि आपदा के कारण कई परिवारों में काम करने वालों की मौत होने से परिवार के सामने जिंदा रहने का संकट पैदा हो गया। आपदा के कारण पीड़ितों के सामने रोजगार का संकट पैदा हो गया है। सरकार द्वारा जारी की गई तात्कालिक राहत ऊंट के मुंह में जीरे की तरह ही साबित हुई है, वह भी सभी पीड़ितों तक नहीं पहुंची है। यदि समय यथोचित सहायता न मिली तो आने वाला समय आपदा पीड़ितों के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण व कष्टदायक होगा ।
वक्ताओं ने कहा कि मजदूरों, छोटे दुकानदारों, स्वरोजगार करने वाले लोगों, छोटे किसानों व अन्य मेहनत करने वाले पीड़ितों के सामने जीवन चलाने का संकट उत्पन्न हो गया है। पूरी तरह रोजगार विहीन, घर विहीन हो जाने के अलावा भी सैकड़ों परिवार ऐसे हैं जो आपदा से प्रभावित हैं, जिनके घर में पानी भर जाने से घर का सारा सामान बाढ़ में बह गया है। प्रभावित क्षेत्रों के छात्रों की पाठ्यपुस्तक एवं अन्य सामग्रियां बाढ़ में बहने से छात्रों के सामने शिक्षा प्राप्त करने का संकट पैदा हो गया है।
उत्तराखंड में भू-राजस्व के तहत मिलने वाला मुआवजा राशि काफी कम है। अपने वेतन व भत्तों में पूरी मुस्तैदी के साथ समय समय पर भारी वृद्धि करने वाली राज्य सरकार के मंत्रीगण और पक्ष-विपक्ष के विधायक व सांसद उपरोक्त ज्वलंत व आम जनता से जुड़े मुद्दे के प्रति तुलनात्मक रूप में उतने ही अधिक बेपरवाह व उदासीन हैं। पुराने भू-राजस्व कानून को बदल कर वर्तमान समय के हिसाब से सम्मान जनक मुआवजा राशि का प्रावधान कर पहाड़ी क्षेत्रों के पीड़ितों को राहत प्रदान की जाए।
वक्ताओं ने कहा कि तमाम भूगर्भ शास्त्रियों द्वारा पूर्व में ही चेताया गया है कि हिमालयी क्षेत्रों के पहाड़ काफी कमजोर हैं और उनमें छोटी से छोटी आपदा भी भंयकर जान माल की तबाही ला सकती है। प्रदेश के कुमाऊं व गढ़वाल क्षेत्र के कई पहाड़ी क्षेत्र इस लिहाज से काफी संवेदनशील क्षेत्र हैं। स्थानीय स्तर पर लोगों की लम्बे समय से पुनर्वास की मांग के बावजूद सरकार द्वारा उनको मैदानी इलाकों में पुनर्वास न करना सरकार की लापरवाही को दिखाता है।

कार्यक्रम के अंत में कुमाऊँ आयुक्त के माध्यम से मुख्यमंत्री उत्तराखंड को ज्ञापन प्रेषित कर एक स्वर में निम्नलिखित मांग की गई-
- आपदा के मृतक आश्रितों को ₹20 लाख का मुआवजा दिया जाए ।
- आपदा प्रभावित छात्रों की शिक्षा की जिम्मेदारी सरकार उठाएं ।
- जिन पीड़ितों की आजिविका बर्बाद हो गई है उन्हें न्यूनतम वेतनमान के बराबर बेरोजगारी भत्ता दिया जाए।
- आपदा में अनाथ हुए बच्चों की परवरिश व शिक्षा की व्यवस्था सरकार करें।
- जिन पीड़ितों के घर क्षतिग्रस्त हो चुके हैं उनका पुनर्वास (घर व जमीन निशुल्क देकर) कराया जाए।
- फसलों, मवेशियों के नुकसान का वर्तमान समय के हिसाब से उचित मूल्यांकन कर प्रभावितों को तुरंत आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाए ।
- आपदा प्रभावितों को प्रशासन द्वारा दी गई आर्थिक राशि काफी कम है। प्रत्येक पीड़ित को ₹20000 तुरंत तत्कालिक राहत उपलब्ध कराई जाए।
- सभी आपदा प्रभावितों को मुफ्त राशन की व्यवस्था की जाए।
- चूंकि जाड़े का मौसम शुरू हो चुका है अतः सरकार द्वारा पीड़ितों को जाड़े के मौसम के लिए गर्म कपड़े व बिस्तर की तुरंत व्यवस्था कर आपदा प्रभावितों को वितरित किया जाए।
प्रदर्शन में रुद्रपुर, पंतनगर, हल्द्वानी, काशीपुर, कालाढूंगी आदि स्थानों से कार्यकर्ता नैनीताल पहुंचे थे।