देहरादून: मलिन बस्तियों को उजाड़ने के विरोध में जन आक्रोश रैली, सचिवालय कूच

पुलिस ने रैली को रोका। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि ध्वस्तीकरण अभियान गैर क़ानूनी व जन विरोधी है। सरकार कानूनी प्रावधानों और अपने ही वादों का घोर उलंघन कर लोगों को उजाड़ रही है।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मलिन बस्तियों में चलाए जा रहे बुलडोजर अभियान के खिलाफ 30 मई को विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने जन आक्रोश रैली निकाली। इसके तहत अपनी मांगों और नारों के साथ लोगों ने गांधी पार्क से सचिवालय तक कूच किया गया।
इस दौरान नफरत नहीं, रोजगार दो, किसी को बेघर मत करो, आदि नारे लगाए गए। इस मौके पर मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित किया गया।
इस दौरान मौजूद भारी पुलिस बल ने सचिवालय से पहले प्रदर्शनकारियों को आगे बढ़ने से रोक दिया। प्रदर्शनकारी वहीं बैठ गए। इसके बाद प्रशासन की ओर से अपर तहसीलदार ने मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन लिया।

जन आक्रोश रैली क्यों?
देहरादून में रिस्पना नदी किनारे रिवर फ्रंट योजना की तैयारी रिस्पना नदी के किनारे वर्ष 2016 के बाद 27 मलिन बस्तियों में बने 504 मकानों को नगर निगम, एसडीडीए और मसूरी नगर पालिका ने नोटिस जारी किए थे। इसके बाद सोमवार 27 मई को मकानों को तोड़ने की कार्रवाई शुरू की गई।
504 नोटिस में से मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण ने 403, देहरादून नगर निगम ने 89 और मसूरी नगर पालिक ने 14 नोटिस भेजे थे।
अतिक्रमण विरोधी इस अभियान से पहले से ही विभिन्न राजनीतिक दल और संगठन की ओर से देहरादून में धरने और प्रदर्शन किए जा रहे थे। 27 मई से आरंभ हो चुकी ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के साथ ही प्रदर्शनों का सिलसिला भी तेज हो गया है।
बस्तियों को तोड़ने का विरोध
पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत विभिन्न राजनैतिक दलों तथा सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं के साथ ही मलिन बस्तियों के प्रभावित लोग गुरुवार की सुबह से ही गांधी पार्क में एकत्र होने लगे। इस दौरान आयोजित सभा में एक स्वर में सरकार की ओर से बस्तियों को तोड़ने का विरोध किया। साथ ही सरकार को चेतावनी दी कि आने वाले दिनों में इस सवाल पर बड़ा आन्दोलन छेड़ा जायेगा।
वक्ताओं ने कहा कि देहरादून में चल रहा ध्वस्तीकरण अभियान गैर क़ानूनी और जन विरोधी है। सरकार कानून के प्रावधानों और अपने ही वादों का घोर उलंघन कर लोगों को उजाड़ रही है। हरित प्राधिकरण के आदेश के बारे में गलत धारणा फैला कर अनधिकृत कर्मचारी बिना कोई क़ानूनी प्रक्रिया करते हुए निर्णय ले रहे हैं। साथ ही लोगों को बेदखल कर रहे है, जो गैर क़ानूनी अपराध है।
वक्ताओं ने कहा है कि कुछ ही महीनों में 2018 का कानून भी खत्म हो रहा है। इसके बाद सारी मलिन बस्ती में रहने वाले लोगों को उजाड़ा जा सकता है। चाहे वे कभी भी बसे हों। सरकार आठ साल में नियमितीकरण, पुनर्वास और घर के लिए कोई भी कदम नहीं उठा पाई है, तो लोग कहाँ रहे, इस पर सरकार को जनता को जवाब देना चाहिए।
प्रमुख मांगें-
- सरकार कोर्ट का आदेश का बहाना न बनाये और ध्वस्तीकरण अभियान पर रोक लगाई जाए,
- बगैर पुनर्वास किसी को बेघर नहीं किया जाए। इस पर कानूनी प्रावधान हो कि जब तक नियमितीकरण और पुनर्वास पूरा नहीं होता, तब तक बेदखली पर भी रोक रहेगी।
- दिल्ली सरकार की पुनर्वास नीति को उत्तराखंड में भी लागू किया जाए। रा
- ज्य के शहरों में उचित संख्या के वेंडिंग जोन को घोषित किए जाएं।
- पर्वतीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में वन अधिकार कानून पर अमल युद्धस्तर पर किया जाए।
- बड़े बिल्डरों एवं सरकारी विभागों के अतिक्रमण पर पहले कार्रवाई की जाए।
- बड़ी कंपनियों को सब्सिडी देने की प्रक्रिया को बंद किया जाए।
- 12 घंटे का काम करने के कानून सहित चार नई श्रम संहिता और अन्य मज़दूर विरोधी नीतियों को रद्द किया जाए।
- न्यूनतम वेतन को 26,000 किया जाए।
इस दौरान किसान सभा के राज्य अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह सजवाण, महामंत्री गंगाधर नौटियाल , समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डॉ. एसएन सचान, सर्वोदय मंडल से हरबीर सिंह कुशवाह, चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, सुनीता, सीपीएम के राज्य सचिव राजेंद्र नेगी, अनंत आकाश, इंटक के प्रदेश अध्यक्ष हीरा सिंह बिष्ट, कांग्रेस के राज्य प्रवक्ता शीशपाल बिष्ट, एटक के राज्य महामंत्री अशोक शर्मा, उत्तराखंड महिला मंच से कमला पंत, आरयूपी से नवनीत गुसाईं, उत्तराखंड आंदोलनकारी संयुक्त परिषद के प्रवक्ता चिंतन सकलानी, एसएफआई के प्रांतीय अध्यक्ष नितिन मलेठा, महामंत्री हिमांशु चौहान, बसपा के दिग्विजय सिंह ने विचार रखे। सीआईटीयू के लेखराज ने संचालन किया।
कृष्ण गुनियाल, रामसिंह भंडारी, रविन्द्र नौडियाल, एसएस नेगी, चेतना आन्दोलन के विनोद बडोनी, मुकेश उनियाल, संजय सैनी, रहमत, महिला समिति की बिंदा मिश्रा, एसएफआई के शैलेन्द्र परमार, एआइएलयू से अभिषेक भंडारी, सीपीआई से एसएस रजवार, भीम आर्मी के आजम खान, अर्जुन रावत, सुनीता चौहान, भोजन माता यूनियन से बबीता, सुनीता, ममता मौर्य, लक्ष्मी पन्त, एनएस पंवार, इन्द्रेश नौटियाल, विजय भट्ट, स्वाती नेगी, बिजेंद्र कनोजिया, देव राज, राजेन्द्र शर्मा, नरेंद्र सिंह सहित काफी संख्या में बस्तियों के प्रभावित लोग प्रदर्शन में शामिल हुए।