दार्जिलिंग: पहाड़ और तराई-डुवर्स चाय बाग़ानों के बोनस विवाद में संघर्ष से मिली जीत

चाय बागानों में बेहद कम मजदूरी मिलती है। बहुत मुश्किल से अपना जिंदगी चलाने वाले मज़दूरों और उनके परिवार के लिए साल में एक बार आने वाला बोनस अतिमहत्वपूर्ण होता है।
दार्जिलिंग पहाड़ और तराई डुवर्स के क्षेत्र की चाय दुनिया भर में मशहूर होने और देश के निर्यात में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद हर साल यहाँ दशहरा-दिवाली-दुर्गा पूजा के अवसर पर बोनस को लेकर गर्मागर्मी का माहौल रहता है। लेकिन इस बार बोनस को लेकर हुए संघर्ष में मजदूरों की विशेष रूप से जुझारू भूमिका देखने को मिली।
2014 से ही चाय बाग़ानों में न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम के लागू किए जाने की मांग पर जोरदार आंदोलन चला है। इसके बावजूद आज तक यहाँ न्यूनतम मज़दूरी लागू नहीं हुई है और मजदूर मात्र 250 रु दैनिक के दर पर काम करने को मजबूर हैं। बेहद कम मजदूरी की वजह से ही कई मजदूर पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं।
बहुत मुश्किल से अपना जिंदगी चलाने वाले मज़दूरों और उनके परिवार के लिए साल में एक बार आने वाला बोनस अतिमहत्वपूर्ण होता है। घर के बच्चों के लिए कुछ सामान खरीदना और सालभर से रुकी हुई एक-दो कीमती चीज़ों की ख़रीदारी बोनस के भरोसे ही होती है।
यूँ शुरू हुआ बोनस का जुझारू संघर्ष
इस बार सितंबर महीने से बोनस पर बैठकें होने लगीं लेकिन कई मीटिंगों के बाद भी मालिकों के संगठन तराई-डुवर्स और पहाड़ दोनों ही क्षेत्रों के लिए 9-10-11% से आगे बढ़ने से इनकार करते रहे। यह गौरतलब है कि पिछले कई सालों से चाय बागान मजदूरों को लगभग 20% बोनस मिल रहा है। 12 अक्टूबर को तराई – डुवर्स क्षेत्र की मीटिंग में बहुत बहस के बाद 19% बोनस देने का फैसला हुआ। लेकिन पहाड़ के चाय बागानों के विषय में अब भी कोई समझौता न हो सका था।
दुर्गा पूजा के ठीक पहले 16 अक्टूबर को सिलीगुड़ी के श्रमिक भवन में पहाड़ की बोनस बैठक के दौरान मजदूरों ने बाहर इकट्ठा होकर नारेबाजी करनी शुरू कर दी। मालिक 12% तक ही रुक गए। मजदूर संगठनों के सभी तर्कों के बाद भी जब मालिक नहीं माने तब लगभग रात 10 बजे मजदूर यूनियनों के प्रतिनिधि मीटिंग का बहिष्कार कर बाहर आ गए। उपस्थित मजदूरों के आक्रोश और बागानों में इस मुद्दे पर बने ग़ुस्से को देखते हुए राज्य सरकार ने उसी रात पहाड़ के चाय बागानों में भी 19% बोनस का नोटिस जारी कर दिया।

मालिकों की मनमानी, मज़दूर आंदोलित
बागानों में नोटिफिकेशन पहुंचने के बाद कई बागान 19% के हिसाब से बोनस देने लगे लेकिन कई बगानों ने 9%, 11%, 14% तक भी घटा कर बोनस दिया। ज़्यादा चालाक मालिकों में से कई बागान छोड़कर भागने लगे और बागान बंद करने का नोटिस लगा दिया। पहाड़ के पेशोक चाय बाग़ान व कुछ दिन पहले बन्सल के हाथ में रहने वाला कुछ चाय बागान और डुवर्स के सामसिंग व रायमाटांग चाय बागान में ताला लगा दिया गया।
वैसे तो इस बहानेबाजी से मज़दूर बखूबी वाक़िफ़ हैं। ठंड के महीनों में चाय बागानों में पत्ती कम आने के कारण उत्पादन घट जाता है। इसलिए मालिक इस मौसम में बगान बंद करके मजदूरों की मजदूरी देने के ‘बोझ’ से छुटकारा पाने के बहाने ढूँढते रहते हैं। बोनस के समय से ही लालच और अधिकारों का यह टकराव शुरू हो जाता है और फरवरी-मार्च के महीने में फर्स्ट-फ्लैश आने तक चलता है, जब मुनाफ़े की गंध पा कर मालिक ख़ुद बाग़ानों में लौट आते हैं।
लेकिन इस बार मजदूर चुपचाप नहीं रहे। 19% की सरकारी घोषणा को लागू कराने की मांग पर मजदूरों ने बुलंद आवाज़ उठायी। अपने बागानों की फैक्ट्री या ऑफिस के पास गेट मीटिंग, जुलूस नारेबाजी करते हुए बोनस की राशि अदा करने व अन्य माँगों को उठाने लगे। यहां तक कि बगान बंद करके भागे हुए मालिकों के पेट्रोल पम्प का भी घेराव करके उन्हें बगान में लौटने को मजबूर किया और बोनस का पैसा हासिल कर के ही माने।
मजदूरों के दबाव में आकर कुछ बगानों में पहले ही 20% बोनस देने की घोषणा हो गई थी। कहीं औपचारिक रूप में 19% की घोषणा के बाद कुछ अतिरिक्त बोनस भी दिया गया।