दार्जिलिंग: चाय बागान मज़दूरों का जुझारू संघर्ष; लॉन्गव्यू मज़दूरों का रिले अनशन जारी

अनशन में इलाके के मज़दूरों का सहयोग बढ़ रहा है। लॉन्गव्यू चाय बागान मज़दूरों को संघर्ष से पहली जीत मिली थी। फिर बोनस की धोखाधड़ी से मज़दूरों का जुझारू संघर्ष तेज हुआ।
दार्जिलिंग। दार्जिलिंग हिल्स के चाय बागान मज़दूर बोनस की न्यायसंगत माँग को लेकर जुझारू संघर्ष कर रहे हैं। इस बीच लॉन्गव्यू चाय बागान मज़दूरों का रिले अनशन 8 अक्टूबर से जारी है। हर दिन मज़दूरों का नया समूह भूख हड़ताल पर बैठ रहा है। पूरे संघर्ष और अनशन में महिला मज़दूरों की भागीदारी जोरदार और जुझारू है।
इससे कुछ दिनों पूर्व चाय बागान मालिक के अत्याचार व लूट के खिलाफ दार्जिलिंग स्थित लॉन्गव्यू चाय बागान के श्रमिक-कर्मचारियों ने महत्वपूर्ण संघर्ष के माध्यम से प्राथमिक जीत हासिल की थी। इसी बीच चाय बागान में बोनस भुगतान की मनमानी का एक बड़ा मुद्दा सामने आ गया, जिससे पहाड़, तराई, डुअर्स के सभी चाय बागान अंजदूर आंदोलन की राह पर निकल पड़े।
उल्लेखनीय है कि पूरे पश्चिम बंगाल सहित दार्जिलिंग क्षेत्र के चाय बागान मज़दूरों को भी दुर्गा पूजा से पहले बोनस का भुगतान होता है। बेहद कम वेतन में गुजारा करने वाले चाय बागान मज़दूरों के लिए यह बोनस अहम होता है। लेकिन हर बार मालिक इसमे बेईमानी करते हैं और मज़दूरों को संघर्ष के दौर से गुजरकर ही अपना हक़ मिलता है।
इसबर मालिक सत्ता के संरक्षण में और भी खुली बेईमानी पर उतारू हो गए। 20 फीसदी बोनस की माँग ठुकराकर वे न्यूनतम बोनस भी देने को तैयार नहीं थे। इस बीच पूजा का समय भी निकाल गया, लेकिन अबतक बोनस भुगतान नहीं हुआ है।
ऐसे में मज़दूर संघर्ष की राह पर हैं।

वास्तविक स्थिति और वर्तमान संघर्ष
दार्जिलिंग जिले में गाडिधुरा और कर्सियांग के बीच पंखाबारी रोड पर स्थित लॉन्गव्यू चाय बागान एक समय दार्जिलिंग के बडे बागानों में से एक प्रमुख और जानामान बागान था। इसकी उत्पादकता भी काफी उच्च थी। यह विशाल बागान पिछले कुछ सालों से बहुत ही दुखद स्थिति से गुजर रहा है।
- सन् 1879 में स्थापित, लॉन्गव्यू चाय बागान का कुल क्षेत्र 1020 हेक्टर है जबकि चाय के पौधों का क्षेत्र केवल 508 हेक्टर है। आजकल, देखरेख के अभाव से उस क्षेत्र के अधिकांश हिस्से जंगलों ने निगल लिए हैं।
- सन् 2019-20 तक भी लॉन्गव्यू चाय बागान में 1253 श्रमिक-कर्मचारी काम कर रहे थे, लेकिन मालिक गोविंद गर्ग की घातक नीति के कारण अन्य बागानों में ‘सुखा हाजिरी’ में काम व परदेश में पलायन से अभी श्रमिकों की संख्या लगभग केवल 350 हो गई है।
- विगत 3-4 साल से बागान की फैक्ट्री बंद है। ध्वंस हो रहा हैं स्टोर, अफिस, ……… और अन्य निर्माण। फैक्ट्री बंद करने के बाद मालिक ने कच्चे पत्तियां मधेस का फैक्ट्रियों में भेजने की अजीब प्रथा शुरू की।
- सन् 2013 से ही श्रमिक-कर्मचारियों के मज़दूरी-वेतनों से पीएफ काट कर भी वह राशि जमा नही करके, ग्रेच्युटी की रकम न देके, रिटायरमेंट की उम्र पार होने के बाद भी बहुत कर्मियों को पीएफ-ग्रेच्युटी न देने के लिए काम में लगा कर रखने का एक जंगलराज मालिक गोविंद गर्ग ने कायम किया।
अन्याय के खिलाफ लॉन्गव्यू में प्रारम्भिक संघर्ष
250 रुपये की गरीबी हाजिरी, मालिक के अत्याचार व लूट, घर-जमीन के मालिकाना बिना कैसे जीना! इसीलिए लॉन्गव्यू में पिछले समय बार-बार संघर्ष हुआ है। और कई बार द्विपक्षीय-त्रिपक्षीय समझौते हस्ताक्षर किए गए और बाद में सभी असफल हुए। आखिरकार, लॉन्गव्यू चाय बागान के मज़दूरों ने हिल प्लांटेशन एम्पालाइज यूनियन (एचपीईयू) के बैनर तले इस बार मजबूत संघर्ष की राह चुनी, क्योकि केवल आश्वासन से उनका पेट नही भरता।
17 अगस्त, 2024 से जो संघर्ष मैनेजर के पास बकाया मांगने के लिए जाने से शुरू हुआ था, वह दिन-ब-दिन बढ़ता गया। मज़दूरों की सक्रियता, सामूहिक निर्णय लेना, साहसी और ऊर्जावान कदम, और श्रमिक संघर्ष के हथियार के हिसाब से नए प्रयोग के कारण लॉन्गव्यू की चर्चा पहाड़ भर में फैल गई। मज़दूरों ने सूची प्रस्तुत करके उस अनुसार बकाया राशि भुगतान की मांग की।
लॉन्गव्यू मज़दूरों को मिली पहली जीत
श्रमिक-कर्मचारियों ने महत्वपूर्ण संघर्ष के माध्यम से प्राथमिक जीत हासिल की। मालिक की मौजूदगी में, 6 सितंबर की त्रिपक्षीय समझौता मे तय हुआ-
- वर्तमान वेतन का नियमित भुगतान और रखरखाव;
- पीएफ पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जस्टिस ए.एम. सुप्रीम कमेटी के निर्देशों का पालन करना;
- पीएफ पर अतिरिक्त श्रम आयुक्त करेंगे हस्तक्षेप;
- 58+ आयु वर्ग के कर्मचारियों की पीएफ-राशि कटौती बंद होगी;
- बागान के सुचारू संचालन पर सभी पक्षों द्वारा सहमति;
- कर्मचारी-वेतन, श्रमिक-मज़दूरी, पिछले वर्ष के बोनस का बकाया, पुरानी दो बार वेतन वृद्धि का बकाया और सेवानिवृत्त लोगों की ग्रेच्युटी का कुल बकाया, जो लगभग 2 करोड़ तक पहुंच गया है, जिसमें से-
- –2,38,879 रुपये सितंबर तक देने होंगे;
- –40 लाख अक्टूबर तक;
- –40 लाख नवंबर तक;
- –44 लाख दिसंबर तक; और
- दिसंबर में पेमेंट व अन्य विषयों पर रिव्यू मीटिंग रखा जाएगा।
फिर शुरू हुआ बोनस का संघर्ष
इसी दौरान बोनस का मामला आ गया। सैकड़ों अन्य मज़दूरों के साथ, लॉन्गव्यू के श्रमिकों ने भी दार्जिलिंग-कालिंपंग पहाड़ में गूंजने वाले 20% बोनस के शोर को सिलीगुड़ी श्रमिक भवन तक ले जाने में अहम भूमिका निभाई। समस्याओं को झेलते हुए तेज बने लॉन्गव्यू के श्रमिकों ने समस्त चाय बागानों के बोनस आंदोलन को बेसुमार उचाइँ पर ले जाने में भी काफी मदद की।
बुलंद संघर्ष के बाद भी बोनस नेगोसिएसन की त्रिपक्षीय वार्ता विफल रही। और सरकार द्वारा अनिवार्य रूप से 16% बोनस की एडवाइजरी जारी की गई। आर्थिक रूप से कमजोर बागानों में यूनियन एवं मालिकों के बीच द्विपक्षीय बैठक कर बोनस की राशि निर्धारित करने का भी निर्देश जारी हुआ।
लॉन्गव्यू के मालिक द्वारा 8.33% से अधिक बोनस नहीं देंगे कहने के बाद शोषित श्रमिकों ने प्रबंधन के साथ द्विपक्षीय वार्ता शुरू कर 16% बोनस की मांग रखने लगे। दो किस्तों में 5% देने की बातचीत कर मैनेजर बात अधूरी छोड़कर ‘रुपये खोजने जा रहा हूं’ कहकर नीचे के रास्ते की तरफ़ चला गया और गायब हो गया। इसके बाद किसी के खाते में 5% तो किसी के खाते में 10% आया। लेकिन किस आधार पर? कोई द्विपक्षीय समझौता तक नहीं हुआ! मालिक की मनमानी? जमिंदारी? समझौता बिना यह रकम क्या चुप कराने के लिए है?




मज़दूरों ने शुरू किया क्रमिक अनशन
ऐसे हालात में मज़दूरों का रिले अनशन 8 अक्टूबर से जारी है। हर दिन मज़दूरों का नया समूह भूख हड़ताल पर बैठ रहा है। अन्य मज़दूर, शुभचिंतक एवं संगठन सहयोग कर रहे हैं। बड़ा दशहरा पर्व का दिन रिले अनशन का पांचवा दिन था। वहीं पर दसै टीका लगाया गया। हर दिन अन्य बागानों के श्रमिक, विभिन्न संगठन या व्यक्ति इस लड़ाई के साथ एकजुटता दिखाने आ रहे हैं।
कुछ दिनों बाद, बागान के कार्यालय में ‘कार्य निलंबन’ नोटिस चिपका दिया गया।
लॉन्गव्यू मज़दूरों का ऐलान-
श्रमिकों का खून-पसीना और बागान के संसाधनों को बर्बाद कर भागने वाला मालिक वार्ता में आए। 16% बोनस और 17 करोड़ बकाया की मांग को पूरा करें, और बागान खुले। नहीं तो सरकार कोई विकल्प प्रदान करें। हमें लूटतंत्र स्वीकार नहीं है।
एचपीईयू का कहना है कि लॉन्गव्यू मज़दूर संघर्ष की खबर दार्जिलिंग की पहाड़ियों से शुरू होकर तराई-डुवर्स को पार करते हुए दिल्ली-कलकत्ता तक पहुंच गई है। हमारा संघर्ष बढ़ रहा है। हम लड़ रहे हैं और हम होंगे कामयाब।