दमन : ट्रेड यूनियन नेताओं पर दिल्ली पुलिस द्वारा एफ़आईआर

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मज़दूर विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ 9 अगस्त को जंतर मंतर पर हुआ था प्रदर्शन

मोदी सरकार का दमनकारी चेहरा एकबार फिर उजागर हुआ है। दिल्ली पुलिस ने 9 अगस्त को दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन के लिए केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और आशा कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। आपदा के बहाने मुनाफाखोरों की सेवा और विरोध का स्वर दबाने की यह बानगी है, जिसकी मुखालफ़त ज़रूरी है।

दरअसल, आपदा की आड़ में श्रम क़ानूनी अधिकारों को कमज़ोर करने, सरकारी कम्पनियों के निजीकरण, किसान विरोधी अध्यादेशों, सहित तमाम मुद्दों के विरोध में 9 अगस्त क्रांति दिवस पर पूरे मुल्क में विरोध के स्वर मुखर हुए थे।

एक तरफ मासा ने मज़दूर संघर्ष अभियान के तहत अखिल भारतीय विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था वहीँ केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने भारत बचाओ का नारा दिया था और आशा कार्यकार्ता तीन दिनी हड़ताल पर थीं। ये कार्यक्रम राष्ट्रव्यापी विरोध श्रृंखला का हिस्सा थे।

कोविड-19 बहाना बना

दिल्ली पुलिस के अनुसार, दिल्ली में विरोध प्रदर्शन अनलॉक दिशा-निर्देशों का उल्लंघन था। डीसीपी नई दिल्ली के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर 11 अगस्त को किए गए एक ट्वीट में घोषणा की गई कि जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शनों पर सख्ती से रोक लगाई गई है क्योंकि वे कोविड-19 की स्थिति को और खराब कर सकते हैं। हालांकि, उन्होंने निर्दिष्ट नहीं किया है कि एफआईआर उसी कारण से है।

ट्रेड यूनियन नेताओं के अनुसार, ये बहुत ऐतिहासिक प्रदर्शन रहा क्योंकि पिछले चार महीने से मोदी सरकार की तानाशाहीपूर्ण नीतियों के ख़िलाफ़ किसी को भी प्रदर्शन नहीं करने दिया जा रहा था।

सबकुछ की छूट, विरोध पाबंद क्यों?

यह गौरतलब है कि कोरोना/लॉकडाउन/अनलॉक के बीच मुनाफे के हित में श्रम क़ानूनी अधिकारों को निष्प्रभावी बनाने, सरकारी/सार्वजानिक संपत्तियों को बेचने; छंटनी-बंदी की गति तेज करने का घोडा बेलगाम दौड़ाने लगा है। इसी दरमियान अयोध्या मंदिर शिलान्यास जैसे काम भी डंके की चोट पर हुए। लेकिन जनवादी विरोध के हरे रास्ते लॉकडाउन हैं।

हालत ये हैं कि इसी आपदा के समय में संविधान विरोधी नागरिकता संशोधन विरोधी कार्यकर्ताओं से लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां होती रही हैं। 9 अगस्त के प्रदर्शनकारियों पर मुक़दमे इसी श्रृंखला की कड़ी है।

इसके बावजूद मोदी सरकार की लॉकडाउन के तमाम प्रतिबंधों के बावजूद देश के विभिन्न हिस्सों में मज़दूर संगठनों, किसान संगठनों से लेकर छात्रों, महिलाओं और आम जनता के विरोध जारी हैं और लोग सड़क पर निकल कर विरोध करने लगे हैं।

इससे बौखलाई मोदी सरकार व राज्य सरकारें और उसकी पूरी मशीनरी दमन का पाटा तेजी से चलने लगी है।

मोदी सरकार के सभी तानाशाहीपूर्ण क़दम की मुखालफ़त ज़रूरी व अवश्यम्भावी है!

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