जयपुर हाईकोर्ट में संविदाकर्मी ने की आत्महत्या; आक्रोशित साथी कर्मचारी बैठे धरने पर

मनीष पिछले 17 साल से विधि विभाग में संविदा पर कार्यरत थे और आर्थिक तंगी से परेशान थे। महज 5600 रुपए मानसिक मानदेय, पिछले पांच महीने से यह वेतन भी नहीं मिला था।
47 वर्षीय मनीष ने हाईकोर्ट परिसर की तीसरी मंजिल पर स्थित बी ब्लॉक के एक कमरे में फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। घटना सुबह करीब साढ़े 8 बजे की बताई जा रही है, जब साथी कर्मचारियों ने मनीष को पंखे से लटकते हुए देखा। मनीष पिछले 17 साल से विधि विभाग में संविदा पर कार्यरत थे और आर्थिक तंगी से परेशान थे।
मनीष कुमार सैनी को हर महीने 5600 रुपए का मानदेय मिलता था, लेकिन पिछले पांच महीने से उन्हें यह वेतन भी नहीं मिला था। वह सवा सौ किलोमीटर दूर से रोज हाईकोर्ट में अपनी नौकरी करने आते थे। परिवार के अनुसार, इतनी कम तनख्वाह में वे अपना परिवार चलाने में असमर्थ थे, और लंबे समय से आर्थिक तंगी का सामना कर रहे थे।
साथी कर्मचारियों ने बताया कि रोज की तरह मनीष शुक्रवार सुबह 7 बजे ऑफिस पहुंचे, लेकिन कुछ ही समय बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली। घटना के बाद उनके साथी संविदाकर्मियों और परिजनों ने हाईकोर्ट परिसर के बी ब्लॉक के सामने धरना शुरू कर दिया।
धरने पर बैठे संविदाकर्मियों का कहना है कि, ‘वे आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और पिछले 20 साल से नियमित करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार उनकी मांगों को अनदेखा कर रही है’। मनीष के साथ करीब 22 अन्य संविदाकर्मी भी हाईकोर्ट में कार्यरत हैं, जिन्हें बहुत कम मानदेय दिया जा रहा है।
चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को मात्र 4400 रुपए और लिपिक स्तर के कर्मचारियों को 5600 रुपए प्रति माह वेतन दिया जाता है, जो आज के समय में बेहद कम है। संविदाकर्मियों की नियमितीकरण की मांग को लेकर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक एसएलपी (स्पेशल लीव पिटीशन) दायर की हुई है, जिसमें सरकार ने नियमितीकरण का विरोध किया है। इस मामले की अगली सुनवाई 24 तारीख को होनी है, लेकिन उससे पहले मनीष ने आत्महत्या कर ली।
मनीष की आत्महत्या के बाद संविदाकर्मियों में आक्रोश बढ़ गया और उन्होंने धरना शुरू कर दिया। इस स्थिति को देखते हुए, सरकार ने देर रात उनके मानदेय में बढ़ोतरी करने का निर्णय लिया। संविदाकर्मियों का मानदेय अब 5600 रुपए से बढ़ाकर 14,000 रुपए कर दिया गया है। हालाँकि, यह कदम संविदाकर्मियों की आर्थिक परेशानियों का समाधान नहीं कर सका, क्योंकि उनकी मांग लंबे समय से नियमितीकरण की है।