कॉमरेड नगेंद्र मज़दूर आंदोलन के सक्रिय व जुझारू नेता थे

एक कठिन समय में मज़दूर आंदोलन की यह बड़ी क्षति है!
यह एक अजीब दौर है, जब कई सहयात्री असमय बिछड़ते जा रहे हैं। तमाम चुनौतियों के बीच आज जब क्रांतिकारी मज़दूर आंदोलन नए संघर्षों से जूझ रहा है, तब यह और पीड़दाई बन गया है। ऐसे ही समय में बीते 10 जून की रात मज़दूर नेता कॉमरेड नगेंद्र नहीं रहे। महज 47 साल के युवा साथी नगेंद्र बीते 2 साल से कैंसर जैसी असाध्य बीमारी से जूझ रहे थे।
साथी नगेंद्र मज़दूर आंदोलन की क्रांतिकारी धारा के अहम हिस्सा थे। वे ‘इंक़लाबी मज़दूर केंद्र’ के उपाध्यक्ष व ‘नागरिक’ अखबार के संपादक थे। वे युवा अवस्था में ही क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ गए और अपने अंतिम सांस तक मज़दूर वर्ग की मुक्ति और समाजवादी समाज के निर्माण के संघर्ष से जुड़े रहे।
अपने छात्र जीवन से ही क्रांतिकारी आंदोलन में सक्रिय कॉमरेड नगेंद्र की 28 साल की यात्रा एक सच्चे क्रांतिकारी की तरह रही। वे परिवर्तनकामी छात्र संगठन (पछास), क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन (क्रालोस), इंक़लाबी मज़दूर केंद्र (आईएमके) में सक्रिय रहे और नेतृत्वकारी भूमिका अदा की। उन्होंने छात्र पत्रिका ‘परचम’ फिर ‘नागरिक’ अख़बार के संपादन में अहम भूमिका निभाई। ‘मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान’ (मासा) में भी उनका जुड़ाव बेहद महत्वपूर्ण रहा।

उत्तराखंड के नैनीताल जिले में जन्में साथी नगेंद्र ने छात्रों से लेकर मज़दूरों तक के कई अहम आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी निभाई और तमाम आंदोलनों को नेतृत्व दिया, लाठियाँ खाईं, जेल गए। इस दौरान उन्होंने राजकीय दमन एवं गुंडों के हमलों का निर्भीकता से मुकाबला किया।
1997-98 में नैनीताल में फड़-खोखे वालों का जबरदस्त आंदोलन रहा हो, कुमाऊं विश्वविद्यालय में फीस वृद्धि के विरुद्ध छात्र आंदोलन हो या 2005 में ईस्टर (खटीमा) का बेहद जुझारू मज़दूर आंदोलन सबमें उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में सक्रियता के बीच उन्होंने फ़रीदाबाद में लखानी मज़दूरों, हाई पॉलीमर के ठेका मज़दूरों समेत कई फैक्ट्री के मज़दूर आंदोलनों को भी नेतृत्व दिया।
जमीनी संघर्षों से जुड़कर ही उन्होंने विचारों की स्पष्ट समझदारी बनाई थी। उनका व्यक्तित्व बेहद सरल व सहज था। इसीलिए छात्र-छात्रा हो या मज़दूर, महिलाएं हों अथवा बच्चे, बुजुर्ग, जिनके बीच भी रहे, काम किया, वे सबके सर्वप्रिय रहे।
आज के दौर में जहाँ मज़दूर वर्ग पर पूँजीपति वर्ग के आक्रामक हमले बढ़ रहे हैं और मज़दूर वर्ग उनसे जूझ रहा है। वहीं आंदोलन के कई जुझारू साथी एक के बाद एक असमय मौत के शिकार हो रहे हैं। पिछले एक साल के दौरान मासा के घटक संगठनों से जुड़े कॉमरेड पाशा (आइएफटीयू), कॉमरेड शिवराम (टीयूसीआई) के बाद कॉमरेड नगेंद्र का जाना बेहद पीड़ादायी और अहम क्षति है!
क्रांतिकारी साथी के विचार और कर्म मज़दूर आंदोलन की थाती है। मज़दूर आंदोलन के पराभव व बिखराव के इस कठिन चुनौतीपूर्ण दौर में शोक की इस घड़ी को परिवर्तनकामी मेहनतकश आवाम के संघर्ष की ताक़त में बदलना और मेहनतकश-मज़दूर वर्ग की मुक्ति के संघर्ष को नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ाना ही क्रांतिकारियों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी!
इंक़लाबी सलाम के साथ मज़दूर सहयोग केंद्र की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि!