कोल माइंस की 3 दिवसीय हड़ताल सफ़ल

कोयला खनन क्षेत्र को निजी हाथों में सौंपने के फैसले के खिलाफ कोल माइंस में 5 सेंट्रल ट्रेड यूनियनों की तीन दिवसीय संयुक्त हड़ताल सफल और शांतिपूर्ण रही है। यूनियन नेताओं के अनुसार हड़ताल के दौरान कोयला खनन और कोयले का परिवहन बिल्कुल ठप्प रहा। हड़ताल 2 तारीख से शुरू होकर 4 जुलाई तक चली।
कोयला खनन क्षेत्र को निजी हाथों में सौंपने के बाद कोयले का व्यवसायिक खनन किया जाएगा।हालांकि कोविड-19 महामारी से ठीक पहले दिसंबर से जनवरी के बीच पूरे देश में पावर सेक्टर मांग की कमी से जूझ रहा था और कॉल आधारित पावर सेक्टर के संचालन में धीरे-धीरे कमी आ रही है। ऊर्जा के परंपरागत स्त्रोतों से हटकर लोग अब गैर परंपरागत स्रोतों की तरफ ज्यादा ध्यान दे रहे हैं ऐसे में कोल माइंस को निजी हाथों में सौंपना ना सिर्फ़ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएगा बल्कि आर्थिक रूप से भी घाटे का सौदा होगा।
कोल खदानों में मज़दूरों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। मौत, रिटायरमेंट, बर्खास्तगी आदि से भारी पैमाने पर होने वाली रिक्तियों पर स्थाई भर्ती बंद है। हालत ये हैं कि मौजूदा करीब तीन लाख मज़दूरों में से अगले तीन सालों में करीब 64 हजार कोल इंडिया कामगारों की सेवानिवृत्त होने तक स्थिति और भयावह हो जाएगी।
ट्रेड यूनियनों का कहना है कि वह केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ विभिन्न कोल माइंस पर गेट मीटिंग करना शुरू करेंगे और सरकार अगर 100% एफडीआई के फैसले को वापस नहीं लेती है तो 18 अगस्त को फिर से एकदिवसीय हड़ताल की जाएगी।
ज्ञात हो कि कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 18 जून को 41 कोयला ब्लॉक के वाणिज्यिक खनन को लेकर नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत की थी। इस कदम के साथ देश के कोयला क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया गया है।
इसके बाद कोयला क्षेत्र से जुड़े श्रमिक संगठनों ने सरकार के फैसले के विरोध में कोल इंडिया और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) में दो जुलाई से तीन दिन की देशव्यापी हड़ताल पर जाने का निर्णय करते हुए नोटिस दिया था.