छत्तीसगढ़: ख़त्म हुआ ‘सबसे बड़ा’ नक्सल विरोधी अभियान… पीछे छोड़ गया कई अनुत्तरित सवाल

छत्तीसगढ़ और तेलंगाना सीमा पर कर्रेगुट्टा की पहाड़ी पर चल रहा नक्सल विरोधी अभियान समाप्त हो चुका है. अधिकारियों का दावा है कि इस ऑपरेशन में उन्हें उम्मीद से ज्यादा सफलता मिली. लेकिन यह अभियान कई प्रश्न पीछे छोड़ गया है.
नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ पुलिस के अनुसार, पिछले तीन सप्ताह से चला आ रहा अब तक का ‘सबसे बड़ा’ नक्सल-विरोधी अभियान आधिकारिक रूप से समाप्त हो गया है. बुधवार छत्तीसगढ़ पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अरुण देव गौतम, सीआरपीएफ महानिदेशक श्री ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह एवं अन्य अधिकारियों ने बीजापुर में आयोजित एक संयुक्त प्रेस वार्ता में कहा कि यह अभियान 21 अप्रैल से 11 मई तक चला था.
इस अभियान के दौरान पुलिस सूत्र लगातार कह रहे थे कि छत्तीसगढ़ और तेलंगाना सीमा पर कर्रेगुट्टा की पहाड़ी पर सैकड़ों माओवादी छुपे हुए थे, जिनमें कई सर्वोच्च कमांडर शामिल थे. उन्हें हज़ारों सुरक्षा बलों ने चारों ओर से घेर लिया था. लेकिन पुलिस ने किसी बड़े नक्सल नेता के पकड़े जाने या मारे जाने की पुष्टि नहीं की. उन्होंने इतना कहा कि इस अभियान ने शीर्ष नेतृत्व को ‘तितर बितर’ कर दिया है.
छत्तीसगढ़ के एडीजी अमित कुमार ने कहा, ‘उन्हें अलग थलग कर दिया गया है..अब वह…कई खंडों में विभाजित हो चुके हैं.’
बीजापुर एसपी जितेंद्र यादव के अनुसार इस अभियान के दौरान हुई 21 मुठभेड़ों में 16 वर्दीधारी महिला माओवादी समेत 31 माओवादी मारे गए, और 35 हथियार बरामद किए गए. उन्होंने कहा, ‘अब तक 20 माओवादियों की शिनाख्त हो चुकी है. पुलिस का अनुमान है कि कई वरिष्ठ माओवादी या तो मारे गए हैं या गंभीर रूप से घायल हुए हैं. अभियान के दौरान 214 माओवादी ठिकानों एवं बंकरों को नष्ट किया गया है.’
लेकिन यह अभियान कई प्रश्न पीछे छोड़ गया है
पहला, सुरक्षा बल दावा कर रहे थे कि यह आर-पार की लड़ाई है, अंतिम लड़ाई है. इस ऑपरेशन में सीआरपीएफ, एसटीएफ एवं डीआरजी के अलावा तेलंगाना पुलिस भी शामिल थी. पुलिस सूत्रों की ओर से नियमित सन्देश आते थे कि सैकड़ों नक्सली पहाड़ी पर मौजूद हैं, जिन्हें हज़ारों जवानों ने घेर लिया है. इन सूत्रों के आधार पर स्थानीय मीडिया रिपोर्ट कर रहा था कि इस अभियान में 25,000 से अधिक सुरक्षाकर्मी तैनात थे.
स्थानीय मीडिया लगातार ख़बरें प्रकाशित कर रहा था कि पहाड़ी पर शीर्ष माओवादी नेता घिर चुके हैं और बचकर नहीं निकल सकते. लेकिन जब यह अभियान ख़त्म हो गया है, तो प्रश्न उठता है कि नक्सली आखिर कहां गए? सुरक्षा बलों ने घेराबंदी क्यों हटा दी? क्या वहां इतने नक्सली थे ही नहीं, जिनका दावा किया जा रहा था? क्या बेवजह अफ़वाहें उड़ाई जा रही थीं? या कोई ऐसा तथ्य है जिसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया?
पत्रकार वार्ता में यह पूछे जाने पर कि क्या माओवादियों के शीर्ष नेतृत्व का खात्मा हो पाया, एडीजी छत्तीसगढ़ अमित कुमार ने कहा, ‘उन्हें अलग-थलग कर दिया गया है और अब वह एक साथ नहीं हैं बल्कि कई खंडों में विभाजित हो चुके हैं.’ दूसरा, छत्तीसगढ़ सरकार और सुरक्षा बलों के बीच तालमेल की कमी. पुलिस लगातार इस अभियान से संबंधित बयान देती रही और पुलिस सूत्र नक्सलियों की घेराबंदी और उनके मारे जाने की सूचना देते रहे. 7 मई को एक पुलिस अधिकारी ने बताया था कि ‘ऑपरेशन संकल्प’ में 22 नक्सली मारे गए.
लेकिन पिछले सप्ताह 7 मई को छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री विजय शर्मा ने इन खबरों को नकार दिया.
विजय शर्मा ने बताया कि ‘विभिन्न समाचार माध्यमों में आज जो प्रकाशित समाचार है जिसमें यह कहा गया है कि बीजापुर के और तेलंगाना के जो बॉर्डर एरिया है उन बॉर्डर एरिया में कोई संकल्प नाम का अभियान चलाया गया…मैं इस बात का पूर्णतः खंडन करता हूं कि संकल्प नाम का कोई भी अभियान छत्तीसगढ़ की पुलिस अथवा संयुक्त टीम के द्वारा चलाया जा रहा है.. तो इसके माध्यम से होने वाली बाकी बातों की जानकारी भी गलत है. इसमें जो 22 का आंकड़ा दिया गया है यह आंकड़ा भी उचित नहीं है.’
कौन सच कह रहा था– पुलिस या गृह मंत्री?
ऐसा अंतर्विरोध छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी इंगित किया था जब उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने सुरक्षाबलों को बधाई देते हुए ट्वीट किया था, लेकिन उसे तुरंत हटा लिया. साथ ही उन्होंने यह भी कहा, मुख्यमंत्री या उप-मुख्यमंत्री (गृह मंत्री) किसका दावा सही है?
उन्होंने यह भी सवाल उठाया,‘ऐसा कैसे हो सकता है कि पुलिस कोई ऑपरेशन चला रही है और गृहमंत्री को इसकी जानकारी नहीं है?’
अब जब उच्च अधिकारी 31 माओवादियों के मारे जाने का दावा करते हैं, क्या इसका अर्थ है कि गृह मंत्री अब तक अंधेरे में थे? आखिर किस आधार पर गृह मंत्री ने ऑपरेशन संकल्प को नकार दिया था?
पीएम और गृह मंत्री ने इस अभियान को सफल करार दिया
इस बीच, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर लिखा :
अमित शाह के इस ट्वीट को साझा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा, ‘सुरक्षा बलों की यह सफलता बताती है कि नक्सलवाद को जड़ से समाप्त करने की दिशा में हमारा अभियान सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्रों में शांति की स्थापना के साथ उन्हें विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए हम पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं.’
तीसरा, स्थानीय ख़बरों के अनुसार जब शव सोमवार को उनके परिजनों को सौंपे गए, उन्हें देखकर साबित होता था कि उनकी मृत्यु कई दिन पहले हो चुकी थी. उन्हें शव इतने दिन बाद क्यों सौंपे गए? मारे गए 31 माओवादियों में से 20 की पहचान की जा चुकी है. लेकिन अब तक केवल 11 शव ही उनके परिजनों को सौंपे गए हैं. ऐसा क्यों?
अभियान से जुड़े एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने द वायर हिंदी को बताया, ‘हमने वह हासिल कर लिया जो हमारा लक्ष्य था. 31 नक्सलियों को मार दिया गया. लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि पुलिस से मुठभेड़ के दौरान उनके लगभग 90 प्रतिशत हथियार और गोलाबारूद खर्च हो गए. उनके कई ठिकानों को हमने तबाह कर दिया. वे पूरी तरह कमजोर हो चुके हैं. इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्हें मजबूर होकर जल्दबाजी में चार-पांच बार शांति वार्ता का प्रस्ताव देना पड़ा.’
पुलिस के इस बयान से एक अंतिम प्रश्न जन्म लेता है. जब नक्सली लगातार शांति वार्ता का प्रस्ताव दे रहे थे, सरकार इसे स्वीकार कर नक्सलवाद के शांतिपूर्वक समाधान की ओर बढ़ सकती थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. हिंसा का सिर्फ़ एक दौर ख़त्म हुआ है. शांति बस्तर के जंगल से अभी दूर है.