“चुनौतियाँ गम्भीर, संयुक्त रूप से आगे बढ़ने की जरूरत”

मज़दूरों के हालात और संघर्ष की स्थितिओं पर यूनियन नेताओं की सोच-1
आज के दौर में, जब श्रम क़ानूनी अधिकार छिन रहे हैं, ‘रखने-निकालने की छूट’ वाले रोजगार के नये रूप आ गये हैं और मज़दूर गैर मुद्दों पर भ्रमित हैं, तब मज़दूर आन्दोल की समस्याओं पर यूनियन नेता क्या सोच रहे हैं? ‘मेहनतकश’ टीम द्वारा कुछ यूनियन प्रतिनिधियों से उनकी राय जानी गई, जो ‘संघर्षरत मेहनतकश’ पत्रिका में प्रकाशित हुई, जिसे हम यहाँ क्रमशः प्रस्तुत कर रहे हैं। इस कड़ी में श्रमिक नेता गणेश मेहरा के विचार. . .
1- श्रम कानून बदल रहे हैं, इसे आप कैसे देखते हैं?
-वर्तमान में जिस तरह से श्रम कानूनों में बदलाव हो रहा है इससे आने वाले समय में स्थायी नौकरियाँ समाप्त हो जायेंगी, मज़दूर वर्ग को जो अधिकार मिले हैं वह सब समाप्त हो रहे हैं। वैसे पहले से श्रम विभाग, हाईकोर्ट, सुप्रीमकोर्ट पूँजीपतियों के पक्ष में खड़े हैं। श्रम कानूनों में बदलाव के कारण पूँजीपतियों को और खुली छूट मिल जायेगी। पढ़ा-लिखा जवान दिहाड़ी मज़दूर की तरह ही हो जायेगा। कुछ समय यहाँ काम करेगा और कुछ समय वहाँ काम करेगा। धीरे-धीरे यह भयंकर रोग की तरह हो जायेगा जो निम्न व मध्यम वर्ग के हर घर में मौजूद होगा।
2- रोजगार के नए रूपों फिक्सड टर्म व नीम ट्रेनी से आपके प्लांट में क्या फर्क़ पड़ रहा है?
-फिक्सड टर्म व नीम ट्रेनी का अभी हमारे प्लांट में कोई फर्क नहीं पड़ा है क्योंकि हमारे यहाँ पर अभी उपरोक्त के अनुसार भर्ती नहीं हो रही है, लेकिन एक-दो बार प्रबन्धन वर्ग द्वारा कहा गया है कि कम्पनी के स्थायी आदेश में उपरोक्त दोनों प्रावधानों को लिखना है पर हमारे द्वारा मना कर दिया गया है।
3- क्या इस दौर में छाँटनी व तालाबंदी बढ़ रही है?
-इस दौर में छँटनी व तालाबन्दी बिल्कुल बढ़ रही है।
4- आज मज़दूरों को संगठित होने की प्रमुख चुनौतियाँ क्या है?
-आज के दौर में मज़दूरों को संगठित होने की कई चुनौतियाँ हैं। यह देखना ज़रूरी है कि बेरोजगारी, शिक्षा, सामाजिक दायरा कैसा है? मानसिक सोच कैसी है? और विचार कैसे हैं?
5- आपको ठेका व स्थाई श्रमिकों को एक साथ संगठित करने की समस्या क्या लगती है?
-ठेका व स्थाई मज़दूरों को एक साथ संगठित करना कोई बड़ी समस्या नहीं थी लेकिन बड़ी समस्या बना दी गयी है। यह श्रमिकों की मानसिक सोच के कारण अलग-अलग हो गयी है। श्रमिकों के वर्गीकरण से श्रमिकों के मन में अलग-अलग प्रकार की भावना उत्पन्न हो रही है जिस कारण स्थाई श्रमिक व ठेका श्रमिक संगठित नहीं हो पा रहे हैं।
6- आज मज़दूरों को क्या प्रभावित कर रहा है- पाकिस्तान, राष्ट्रवाद, गोरक्षा जैसे मुद्दे या श्रमिक अधिकारों पर बढ़ते हमले, छाँटनी-तालाबंदी जैसी समस्या?
-आज मज़दूरों की अपनी ज़िन्दगी से सम्बन्धित प्रभावित करने वाली बात तो श्रमिक अधिकारों पर बढ़ते हमले, छँटनी-तालाबन्दी आदि-आदि समस्याएं हैं, लेकिन आजकल इससे श्रमिकों को मतलब नहीं रह गया है। जिस पर समस्या आ रही है वही यह बात करता है परन्तु ज्यादातर मज़दूर वर्ग को राष्ट्रवाद, गोरक्षा, पाकिस्तान से ही मतलब है। यह स्थिति चिंतनीय है।
7- यूनियनों को आज के समय की चुनौतियों को किस प्रकार हल करना चाहिए?
-यूनियनों को आज के समय की चुनौतियों को हल करने के लिए यूनियनों को संयुक्त रुप से मिलकर गोष्ठियाँ करनी चाहिए, श्रमिक अधिकारों के लिए सचेत करना चाहिए, तर्कशील जवाब होने चाहिए, एक-दूसरे यूनियनों को आपस में सहयोग, समर्थन, भागीदारी व सम्पर्क कर वार्तायें करनी चाहिए, देश की वास्तविक राजनीति व हो रही गतिविधियों पर गहराई से विचार करना चाहिए। यह कार्य पूरी कार्यकारिणी को करना चाहिए न कि एक-दो प्रतिनिधियों को। और साथ-साथ आपसी विश्वास भी होना चाहिए, न कि मेरा संगठन, मेरा समूह, मेरा महासंघ, मेरी कम्पनी, मेरा क्षेत्र, मेरी जाति, मेरा धर्म होना चाहिए।
-गणेश मेहरा
अध्यक्ष, ब्रिटानिया श्रमिक संघ, पन्तनगर व महासचिव श्रमिक संयुक्त मोर्चा, ऊधमसिंहनगर
‘संघर्षरत मेहनतकश’ पत्रिका, नवम्बर-दिसम्बर, 2019 में प्रकाशित